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यूक्रेन में परमाणु आपदा से हुआ 'म्यूटेशन', सुपरडॉग बन गए कुत्ते

जीवविज्ञानी चेरनोबिल बहिष्करण क्षेत्र में रहने वाले कुत्तों में यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि दशकों तक विकिरण के संपर्क में रहने से जानवरों के जीनोम में किस तरह का बदलाव आया है।

Dogs of Chernobyl Nuclear Reactor

प्रतीकात्मक तस्वीर। Source- Freepik

उत्तरी यूक्रेन में चेरनोबिल परमाणु रिएक्टर प्लांट है। इस परमाणु रिएक्टर में साल 1986 में भयानक विस्फोट हो गया, जिसका असर ये हुआ कि आसमान में विकिरण का एक बड़ा गुबार फैल गया। विस्फोट के 38 साल बीत जाने के बाद भी यह क्षेत्र बियाबान है और यहां इंसान नहीं रहते।   

 

मगर, इंसानों की अनुपस्थिति में चेरनोबिल परमाणु रिएक्टर के आसपास कई अलग-अलग तरह के जानवरों का बसेरा हो गया है। यह जगह अब सौकड़ों कुत्तों का आशियाना है। चेरनोबिल परमाणु रिएक्टर प्लांट में विस्फोट के 38 साल बीत जाने के बाद वैज्ञानिक इस क्षेत्र में रहने वाले जानवरों पर करीब से नजर बनाए हुए हैं।   

जानवरों पर जांच कर रहे हैं जीवविज्ञानी 

 

जीवविज्ञानी चेरनोबिल बहिष्करण क्षेत्र (CEZ)  में रहने वाले कुत्तों में यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि दशकों तक विकिरण के संपर्क में रहने से जानवरों के जीनोम में किस तरह का बदलाव आया है। अगर बदलाव हुआ भी है तो यह कितनी तेजी से हुआ है।

302 जंगली कुत्तों के डीएनए की जांच 

 

साउथ कैरोलिना विश्वविद्यालय और नेशनल ह्यूमन जीनोम रिसर्च इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने चेरनोबिल परमाणु रिएक्टर में या उसके आस-पास पाए जाने वाले 302 जंगली कुत्तों के डीएनए की जांच शुरू कर दी है ताकि यह बेहतर ढंग से समझा जा सके कि परमाणु में हुए विकिरण ने उनके जीनोम को कैसे बदला है। इस रिसर्च को साइंस एडवांसेज पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

 

आवारा कुत्तों की जांच में दो अलग-अलग गुण वाले कुत्तों की आबादी पाई गई है जो आसपास के क्षेत्र के अन्य कुत्तों से आनुवंशिक रूप से अलग हैं। इससे पता चलता है कि वे इस विषैले वातावरण में लंबे समय तक रहने के लिए अनुकूल हो गए हैं। इस तरह से यहां एक अनोखे 'सुपरडॉग' विकसित हो गए हैं।

कुत्तों में सुपर पावर विकसित हुए

वैज्ञानिकों का कहना है कि इन कुत्तों में एंटी रेडिएशन और सामान्य से ज्यादा इम्युनिटी जैसे सुपर पावर विकसित हो गए हैं। चेरनोबिल एक्सक्लूजन जोन में रहने वाले कुत्ते लंबे समय से विषैले वातावरण में रहते हुए भी जिंदा हैं। इस क्षेत्र में रेडिएशन का स्तर मानव जीवन के लिए छह गुना ज्यादा खतरनाक है। इसके बावजूद यहां सैकड़ों कुत्ते रह रहे हैं।

मेंढकों का रंग बदला

 

वैज्ञानिक कई सालों से चेरनोबिल परमाणु रिएक्टर में रहने वाले जानवरों का विश्लेषण कर रहे हैं, जिनमें बैक्टीरिया, कृंतक और यहां तक ​​कि पक्षी भी शामिल हैं। 2016 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि पेड़ पर रहने मेंढक जो आमतौर पर हरे रंग के होते हैं, CEZ के भीतर आमतौर पर काले रंग के हो गए हैं। साथ ही उनमें रेडिएशन को झेलने की और लंबे समय तक जीवित रहने की क्षमता विकसित हो गई

 

वैज्ञानिक शोधकर्ताओं का मानना है कि कुत्तों के अनुकूलन की गहरी समझ से मनुष्यों पर विषैले वातावरण के प्रभाव को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है। बता दें कि 26 अप्रैल 1986 की चेरनोबिल त्रासदी उत्तरी यूक्रेन में हुई एक परमाणु आपदा थी। 26 अप्रैल 1986 को बिजली संयंत्र के रिएक्टरों में से एक के विस्फोट हो गया था। 

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