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जर्मनी का हमलावर इस्लामोफोबिक, यूरोप में बढ़ रहा 'इस्लामोफोबिया!'

जर्मनी में क्रिसमस मार्केट में लोगों को कार से रौंदने वाला इस्लामोफोबिक था। जर्मनी की गृह मंत्री ने इसकी पुष्टि की है। ऐसे में जानते हैं कि यूरोप में इस्लामोफोबिया कितनी तेजी से बढ़ रहा है?

(Creative Image)

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जर्मनी के मैग्डेबर्ग में शुक्रवार रात को क्रिसमस मार्केट पर हमला हुआ। एक सिरफिरे डॉक्टर ने कार से सैकड़ों लोगों को कुचल डाला। लोग क्रिसमस की खरीदारी कर रहे थे। हमले में 5 लोगों की मौत हो चुकी है। मारे गए लोगों में एक 9 साल की बच्ची भी है। 200 से ज्यादा घायल हैं। इनमें से 41 की हालत नाजुक है। इस हमले में 9 भारतीय भी घायल हुए हैं।


पुलिस ने तालेब अल-अब्दुलमोहसेन नाम के शख्स को गिरफ्तार किया है। तालेब पेशे से डॉक्टर है। पुलिस ने बताया कि अब्दुलमोहसेन मूल रूप से सऊदी अरब का निवासी और 2006 में जर्मनी आया था।


बताया जा रहा है कि हमलावर अब्दुलमोहसेन सऊदी में मोस्ट वांटेड था। सऊदी ने कई बार उसके प्रत्यर्पण की मांग की थी। हालांकि, जर्मनी ने ऐसा नहीं किया। इन सबके बीच जर्मनी की गृह मंत्री नैंसी फेसर ने बताया कि अब्दुलमोहसेन 'इस्लामोफोबिक' था। इस्लाम से नफरत करने वाले को 'इस्लामोफोबिक' माना जाता है। यूरोप में 'इस्लामोफोबिया' कुछ सालों में काफी तेजी से बढ़ा है। इस्लामोफोबिया असल में दो शब्दों से मिलकर बना है- इस्लाम और फोबिया। इसका मतलब होता है- 'इस्लाम का डर।'

इस्लामोफोबिक क्यों?

अब्दुलमोहसेन वैसे तो खुद मुस्लिम है लेकिन वह इस्लाम से नफरत करता है। वह खुद को 'नास्तिक' बताता है। उसके कुछ पुराने इंटरव्यू सामने आए हैं, जिसमें उसने इस्लाम को लेकर अपनी नफरत जाहिर की है।


अब्दुलमोहसेन ने एक वेबसाइट भी बनाई थी, जिसके जरिए वह सऊदी छोड़कर जर्मनी आने वालों की मदद करते थे। 2019 में एक इंटरव्यू में अब्दुलमोहसेन ने खुद को 'इतिहास में इस्लाम का सबसे कट्टर आलोचक' बताया था। एक इंटरव्यू में उसने कहा था, 'इस्लाम में कुछ अच्छा नहीं है।'


माना जा रहा है कि वह काफी समय से जर्मन अधिकारियों से नाराज था। उसकी वजह यह थी कि उसका मानना था कि जर्मन अधिकारी इस्लाम छोड़कर सऊदी से आने वालों से नफरत करते हैं। उसने एक पोस्ट में लिखा था, 'अगर जर्मनी हमें मारना चाहता है तो हम उनका नरसंहार करेंगे। हम मरेंगे या गर्व के साथ जेल जाएंगे।'


और तो और, अब्दुलमोहसेन अल्टरनैटिव फर डचलैंड (AfD) का समर्थक भी है। यह पार्टी इस्लाम विरोधी मानी जाती है।

क्या जर्मनी में बढ़ रहा है इस्लामोफोबिया?

दुनियाभर के मुल्कों में दक्षिणपंथी पार्टियों का रुतबा बढ़ रहा है। दक्षिणपंथ की वजह से इस्लामोफोबिया भी बढ़ रहा है। जर्मनी की एंटी-इस्लाम पार्टी AfD का जनाधार भी बढ़ रहा है। हाल ही में कुछ राज्यों में चुनाव हुए थे, जिसमें AfD ने बेहतर प्रदर्शन किया था। 


जर्मनी में सत्तारूढ़ गठबंधन की पार्टियों के नेता बार-बार इस्लाम विरोधी बयान देते सुनाई पड़ते हैं। कुछ महीने पहले ही ग्रीन पार्टी की नेता कैथरीना ड्रोगे ने कहा था, 'इस्लाम का जगह सिर्फ विदेश में ही नहीं, बल्कि यहां भी लोगों के दिमाग तक पहुंच रहा है।' हालांकि, बाद में उन्होंने खुद को सुधारते हुए कहा था कि उनका मतलब इस्लाम नहीं 'इस्लामवाद' से था।


इसी साल सितंबर में जर्मनी ने अपनी सीमा पर सख्ती बढ़ा दी थी। इसका मकसद अवैध प्रवासियों को रोकना था। गृह मंत्री नैंसी फेसर ने कहा था, 'इस कदम का मकसद न केवल अवैध प्रवासियों को रोकना है, बल्कि इस्लामी आतंकवाद और गंभीर अपराध को भी रोकना है।'


जर्मनी में काम करने वाली संस्था 'क्लेम' इस साल जून में एक रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि 2023 में जर्मनी में इस्लाम और मुस्लिमों के खिलाफ अपराध के 1,926 मामले दर्ज किए गए। यह आंकड़ा 2023 की तुलना में लगभग दोगुना था। इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि इजरायल-हमास की जंग ने इस्लामोफोबिया को बढ़ा दिया है।

क्या सिर्फ जर्मनी में ही बढ़ रहा इस्लामोफोबिया?

ऐसा नहीं है कि सिर्फ जर्मनी में ही इस्लामोफोबिया बढ़ रहा है। बल्कि यूरोप के कई देशों में यह तेजी से बढ़ रहा है। इसी साल अक्तूबर में 'यूरोपियन यूनियन एजेंसी फॉर फंडामेंटल राइट्स' की रिपोर्ट आई थी। एजेंसी ने यह रिपोर्ट 13 यूरोपीय देशों के मुस्लिमों पर सर्वे के आधार पर तैयार की थी। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि यूरोपीय देशों में रहने वाला हर 2 में से 1 मुस्लिम को भेदभाव का सामना करना पड़ता है।


रिपोर्ट में बताया गया था कि ऑस्ट्रिया में सबसे ज्यादा इस्लामोफोबिया है। यहां 71 फीसदी मुसलमानों को निशाना बना गया है। इसके बाद जर्मनी और फिनलैंड है। आमतौर पर सबसे ज्यादा निशाने पर युवा मुसलमान और महिलाएं हैं, जिन्हें उनके धार्मिक पहनावे के कारण भेदभाव या फिर अजीबोगरीब टिप्पणियां सुननी पड़ती हैं।


एजेंसी की डायरेक्टर सिरपा राउटियो ने कहा था, 'मध्य पूर्व में संघर्ष के कारण इस तरह की घटनाएं बढ़ी हैं। इसके अलावा यूरोप में मुस्लिम विरोधी बयानबाजी ने लोगों को इस्लामोफोबिक बना दिया है।'

किस तेजी से बढ़ रहा है इस्लामोफोबिया?

21 दिसंबर को ही 'यूरोपियन इस्लामोफोबिया रिपोर्ट 2023' आई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, पूरे यूरोप में इस्लामोफोबिया तेजी से बढ़ रहा है। यूरोपीय देशों की सरकारें इस्लाम और मुस्लिमों के खिलाफ क्रैकडाउन चला रही हैं। मस्जिदें बंद की जा रही हैं। इस्लामिक संगठनों पर नकेल कसी जा रही है।


यूएस कमिशन ऑन इंटरनेशनल रिलिजियस फ्रीडम की अध्यक्ष नदीन मेएंजा ने एक बार कहा था, 'यूरोप की कुछ सरकारों ने मुस्लिमों के खिलाफ भेदभाव वाले कानून लागू किए हैं। फ्रांस और ऑस्ट्रिया की सरकारों ने कट्टरवाद का हवाला देते हुए कई मस्जिदें बंद करवा दीं। स्विट्जरलैंड में नई मीनारों के निर्माण पर रोक लगा दी गई है। डेनमार्क में अप्रवासी मुस्लिमों को हर हफ्ते 35 घंटे देश की संस्कृति और परंपराए सिखाई जाती हैं।'


अक्तूबर 2022 में EU की कोर्ट ऑफ जस्टिस ने फैसला दिया था कि यूरोपियन कंपनियां चाहें तो रिलीजियस सिंबल पर बैन लगा सकती हैं, जिसमें हिजाब भी शामिल था। 

इस्लामोफोबिया पर क्या कहते हैं आंकड़े?

- बेल्जियमः साल 2021 में धार्मिक आधार पर भेदभाव के 250 से ज्यादा मामले सामने आए थे। इनमें से 76 फीसदी से ज्यादा मामले मुस्लिमों के खिलाफ थे। 2022 में बेल्जियम के स्कूलों में 47 फीसदी मुस्लिम छात्रों को नस्लीय टिप्पणी और भेदभाव का सामना करना पड़ा है।


- ऑस्ट्रियाः इस्लामोफोबिया के खिलाफ काम करने वाले एक NGO ने बताया था कि देश में मुस्लिमों के खिलाफ हेट क्राइम के 1,522 मामले सामने आए थे। जबकि, 2022 में 1,324 मामले सामने आए थे।


- फिनलैंडः 2021 की तुलना में 2022 में एंटी-मुस्लिम क्राइम के मामलों में 21 फीसदी की बढ़ोतरी हुई थी। 2021 में एंटी-मुस्लिम क्राइम के 1,026 मामले दर्ज किए थे, जबकि 2022 में 1,245 मामले सामने आए थे।


- नॉर्वेः 2023 में पुलिस ने मुस्लिम या इस्लाम के खिलाफ नफरत या हिंसा के 81 मामले दर्ज किए थे। 2022 की तुलना में यह 29 फीसदी ज्यादा थे।


- डेनमार्कः साल 2022 में पुलिस ने धार्मिक आधार पर होने वाले अपराध के 101 मामले दर्ज किए थे। इनमें से 50 मामलों में पीड़ित मुस्लिम थे। 2017 से 2022 के बीच पुलिस ने मुस्लिमों के खिलाफ अपराध के 493 मामले दर्ज किए थे।


- यूकेः 2022 में धार्मिक आधार पर हेट क्राइम के जितने मामले दर्ज किए गए थे, उनमें से 44 फीसदी में पीड़ित मुस्लिम थे। इंग्लैंड और वेल्स में 68 फीसदी मुस्लिम उन इलाकों में रहते हैं जहां बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा है।


- जर्मनीः 2022 में पुलिस ने मुस्लिमों के खिलाफ अपराध के 1,464 मामले दर्ज किए थे। 2021 की तुलना में यह 140 फीसदी ज्यादा था। 2017 के बाद यह पहली बार था, जब मुस्लिमों के खिलाफ अपराध के इतने ज्यादा मामले सामने आए थे।


- फ्रांसः साल 2023 में पुलिस ने एंटी-मुस्लिम क्राइम के 242 मामले दर्ज किए थे। 2022 की तुलना में यह लगभग 29 फीसदी ज्यादा थे। 2022 में एंटी-मुस्लिम क्राइम के 188 मामले सामने आए थे।


- स्वीडनः 2022 में हेट क्राइम के 234 मामले सामने आए थे। इनमें से 52 फीसदी मामलों में पीड़ित मुस्लिम थे। पुलिस ने बताया था कि ज्यादातर मामलों में पीड़ित शिकायत नहीं करते, इसलिए मामले सामने नहीं आ पाते।


- पुर्तगालः 2018 के बाद से हेट क्राइम के मामलों में 451 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। 2020 से 2023 के बीच हेट क्राइम के 792 मामलों की जांच हुई है, जिनमें से सिर्फ 14 में ही सजा हुई है। 


- स्पेनः 2022 में नस्लीय भेदभाव और जेनोफोबिया (विदेशियों से नफरत) के 755 मामले सामने आए थे। 2021 में 639 मामले सामने आए थे। 


- स्लोवाकियाः इस्लामिक फाउंडेशन इन स्लोवाकिया ने 2021 में एक सर्वे किया था। इसमें सामने आया था कि स्लोवाकिया में मुस्लिमों को अभद्र टिप्पणियों और कई बार मारपीट का सामना करना पड़ता है। सर्वे में शामिल 73 फीसदी मुस्लिमों ने बताया था कि पब्लिक प्लेस में उन्हें अभद्र और नस्लीय टिप्पणियों का सामना किया था।


- रोमानियाः एक सर्वे के मुताबिक, रोमानिया के 68 फीसदी लोग मुस्लिमों के साथ कोई रिश्ता नहीं रखना चाहते। 28 फीसदी मुस्लिमों के साथ दोस्ती नहीं करना चाहते, जबकि 19 फीसदी इनके साथ काम भी नहीं करना चाहते।

15 मार्च यानी इस्लामोफोबिया विरोधी दिवस 

दुनियाभर में तेजी से बढ़ रहे इस्लामोफोबिया को देखते हुए 2021 में संयुक्त राष्ट्र में एक प्रस्ताव लाया गया था। इसके बाद से हर साल 15 मार्च को 'इस्लामोफोबिया विरोधी दिवस' मनाया जाता है। दावा है कि दुनिया में मुसलमानों के खिलाफ नफरत, भेदभाव और हिंसा को रोकने के लिए ये प्रस्ताव लाया गया था। 

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