कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो अपने कार्यकाल के सबसे मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं। उनकी सरकार में वित्त मंत्री रहीं क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। वह उनके सबसे वफादार साथियों में से एक रही हैं। उन्होंने सोमवार को कहा कि वह कैबिनेट मंत्री का पद छोड़ रही हैं।
जस्टिन ट्रूडो सरकार के लिए इसे बड़ा झटका माना जा रहा है। जस्टिन ट्रूडो के खिलाफ कनाडा के कई हिस्सों से सत्ता विरोधी लहर उठ रही है। उनके अपने साथी ही उनके रुख से नाराज हैं। क्रिस्टिया फ्रीलैंड कनाडा की उप प्रधानमंत्री भी रही हैं। उन्होंने वित्त मंत्री की जगह दूसरा पद भी लेना से इनकार कर दिया।
क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने अपने इस्तीफे में लिखा भी है कि वह जस्टिन ट्रूडो की कार्यप्रणाली से अलग सोचती हैं, जिसकी वजह से अब वह अपने पद पर नहीं बनी रह सकती हैं। उन्होंने कहा कि बीते कुछ सप्ताह से उनकी और जस्टिन ट्रूडो की सोच बेहद अलग रही है। जिसे वे अजीब मानती हैं।
क्यों क्रिस्टिया फ्रीलैंड ने दिया इस्तीफा?
क्रिस्टिया फ्रीलैंड और जस्टिन ट्रूडो 2 महीने के टैक्स हॉलिडे पर असहमत रहे हैं। क्रिस्टिया फ्रीलैंड का कहना है कि कनाडा, अमेरिका के 25 प्रतिशत टैरिफ वाली धमकी से निपटने की तैयारी कर रहा है। उनका कहना है कि हमें टैरिफ वार से बचने की कोशिश करनी चाहिए। जस्टिन ट्रडो का रुख टैरिफ को लेकर सियासी हथकंडे से ज्यादा नहीं है।
क्रिस्टिया फ्रीलैंड डोनाल्ड ट्रम्प की धमकियों को लेकर अपनी सीमा सुरक्षा सख्त करने के लिए एक अहम बैठक ले रही थीं। डोनाल्ड ट्रम्प ने कनाडा पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की धमकी दी है। क्रिस्टिया कनाडा की सीमाओं को सुरक्षित करने के लिए कदम उठाना चाह रही थीं, जिससे ट्रम्प को खुश किया जा सके।
डोनाल्ड ट्रम्प मेक्सिको और कनाडा से आने वाले अवैध प्रवासियों और ड्रग तस्करों को रोकने के पक्षधर रहे हैं। उन्होंने धमकी दी है कि अगर ये देश घुसपैठ और तस्करी नहीं रोकते हैं तो इन पर 25 फीसदी टैरिफ लगाया जाएगा।
क्रिस्टिया फ्रीलैंड के इस्तीफे से कितना नुकसान?
क्रिस्टिया फ्रीलैंड के इस्तीफे से जस्टिन ट्रूडो को बड़ा नुकसान हुआ है। वह डोनाल्ड ट्रम्प के अड़ियल रुख को बेअसर करने की कोशिश कर रही थीं, जस्टिन ट्रूडो उस पर समहत नहीं हुए। ट्रूडो के आलोचकों का कहना है कि वे नहीं चाहते कि अब लिबरल पार्टी का नेतृत्व करें। ये पार्टियां नहीं चाहती हैं कि जस्टिन ट्रूडो चौथी बार भी प्रधानमंत्री बनें। CNN से बातचीत में कनाडा की ट्रांसपोर्ट मंत्री अनीता आनंद ने कहा है कि वह इस खबर से बेहद आहत हुई हैं। उनका कहना है कि वे इस इस्तीफे को स्वीकार ही नहीं कर पा रही हैं कि इस पर कुछ कह सकें।
विपक्षी दलों ने जस्टिन ट्रूडो पर हमला बोला है। कंजर्वेटिव पार्टी की नेता पियरे पोइलिवरे (Pierre Poilievre) ने कहा है कि सरकार सबसे खराब वक्त में नियंत्रण खो रही है। जस्टिन ट्रूडो का कोई नियंत्रण नहीं रह गया है, वह अब भी सत्ता से लटके हुए हैं। उन्होंने कहा कि कनाडा का अभिन्न दोस्त रहा अमेरिका, अब 25 प्रतिशत टैरिफ लादने की तैयारी कर रहा है। यह ट्रूडो के कार्यकाल में ही हुआ है।
न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता जगमीत सिंह ने कहा है कि एक तरफ उदारवादी दल जहां एक-दूसरे से उलझ रहे हैं, हमें इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है कि कनाडा के लोगों की नौकरियां खतरे में हैं। अब लोगों को एक ऐसे सरकार की जरूरत है जो लोगों के लिए लड़े।
क्या लद गए हैं जस्टिन ट्रूडो के दिन?
कनाडा का इतिहास बताता है कि अभी तक कोई भी प्रधानमंत्री लगातार 4 बार सत्ता में नहीं आया है। ट्रूडो की नीतियों के खिलाफ उनके अपने ही मुखर स्वर में विरोध दर्ज करा रहे हैं। अक्तूबर से पहले ही संघीय चुनाव होने वाले हैं। लिबरल पार्टी को सदन में कम से कम एक मजबूत सहयोगी की जरूरत है, अभी वे बहुमत से दूर हैं। विपक्ष की न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी को ज्यादा समर्थन मिल रहा है। कभी भी कनाडा में चुनाव हो सकते हैं।
साल 2015 में जस्टिन ट्रूडो को सियासी ताकत मिली। वह देश के सबसे बड़े उदारवादी नेता बनकर उभरे। उन्होंने एक दशक से जारी कंजर्वेटिव पार्टी का तिलिस्म तोड़ दिया। अब ट्रूडो की असली अग्नि परीक्षा होनी है। कनाडा में अप्रवासी और बेरोजगारी बड़ी चुनौती बनकर सामने आई है। कनाडा में जीवन स्तर बेहद महंगा हो गया है, जिससे कनाडा के लोग बेहद परेशान हैं। कनाडा में भारी-भरकम टैक्स के लोग परेशान हैं। घरों पर भी लगने वाला कर अदा कर पाना मुश्किल हो रहा है।