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मॉरिशस, ऑफशोर बिजनेस का हब कैसे बना?

भारत से बाहर, हिंद महासागर में भी एक खूबसूरत देश है, मॉरिशस। मेडागास्कर, सेशेल्स और रीयूनियन के पड़ोसी यह देश और वजहों से भी चर्चा में रहता है, पढ़ें रिपोर्ट।

Mauritius

मॉरिशस। (Photo Credit: Mauritius Tourism)

दुनिया का शायद ही कोई ऐसा देश हो, जो मनी लॉन्ड्रिंग से परेशान न हो, जहां हवाला कारोबार न चलता हो, जहां काले धन को सफेद बनाने की कोशिश न की जाती हो। कुछ देशों की अर्थव्यवस्था में कमाई का एक बड़ा हिस्सा, काले धन को सफेद करने से आता है। दक्षिण अफ्रीकी देशों की मानें तो मॉरिशस भी उन्हीं देशों में शुमार है, जो ऑफशोर इंडस्ट्री के लिए जन्नत से कम नहीं हैं।

मॉरिशस दुनिया के सबसे संपन्न देशों में से एक है। साल 2023 के आंकड़े बताते हैं कि मॉरिशस में प्रति व्यक्ति आय 30,230 PPP डॉलर है। आसान भाषा में मॉरिशस में 2023 में प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (GDP) क्रयशक्ति समता के आधार पर 30,230 अमेरिकी डॉलर था। क्या सिर्फ पर्यटन की वजह से मॉरिशस इस स्थिति में पहुंच गया? आइए जवाब तलाशते हैं।


ऑफशोर बिजनेस को क्यों लुभाता है मॉरिशस?
भारत, दक्षिण अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका जैसे देशों की कंपनियां मॉरिशस को बेहतरीन बिजनेस सेंटर की तरह ट्रीट करती हैं। यहां निवेश करना आसान है, रिटर्न ज्यादा है और सरकारी सहयोग ज्यादा है। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में मॉरिशस 13वें पायदान पर है। सरकारें कम टैक्स लगाती हैं, जिसकी वजह से निवेशकों को यह देश लुभाता है।

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मॉरिशस कैसे बना ऑफशोर हब?
मॉरिशस से कुछ विवाद भी जुड़े हैं। स्विस लीक्स, पनामा पेपर और पैराडाइज पेपर से जुड़े कुछ दस्तावेज साल 2019 में सामने आए थे। इन दस्तावेजों में कहा गया था कि यहां कि बहुराष्ट्रीय कंपनियां, कैसे मॉरिशस के आसान कानूनों का इस्तेमाल करके, बिना ज्यादा टैक्स दिए, अपने कारोबार का विस्तार कर रही हैं। भारत में इन कंपनियों ने FDI के जरिए निवेश किया। मॉरिशस को टैक्स हेवन माना जाता है, यहां टैक्स बहुत कम या न के बराबर होता है। कुछ भारतीय कंपनियां मॉरिशस के जरिए निवेश करके भारत में टैक्स बचाने का रास्ता निकालती हैं। 

मॉरिशस टूरिज्म के लिए दुनियाभर में मशहूर है। (Photo Credit: Mauritius Tourism)

कंपनियां मॉरिशस में शेल कंपनियों के जरिए कारोबार करती हैं। कंपनियां लोगों को वैध लगती हैं, लेकिन इनका काम, मनी लॉन्ड्रिंग या वित्तीय हेरफेर से जुड़ा होता था। भारत में निवेश से पहले पैसा मॉरिशस भेजा जाता है। इन कंपनियों का काम अवैध लेन-देन तक सीमित होता है। देश से जुड़ी भी कुछ कंपनियों के नाम सार्वजनिक हुए थे, जब देश में निवेश करने से पहले उसे पहले मॉरिशस भेजा जाता, फिर वहां से भारत में निवेश दिखाया जाता, जिससे टैक्स बच जाता।

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ऑफशोर कंपनियों की खासियत क्या होती है?

ऑफशोर कंपनियों की पहचान जाहिर नहीं होतीं। कई अंतरराष्ट्रीय कंपनियां भी भारत में निवेश करने के लिए मॉरिशस रूट का इस्तेमाल करती थीं। अब वित्तीय नियमों को सख्त करके प्रक्रिया जटिल कर दी गई है। 

भारत सरकार ने ऑफशोर से कैसे डील किया?
साल 1982 में भारत और मॉरिशस के बीच डबल टैक्सेशन से बचने के लिए एक समझौता हुआ था। डबल टैक्सेशन अवॉइडेंस एग्रीमेंट (DTAA) के तहत कोई संस्था, टैक्स रिजिडेंसी के लिए आवेदन कर सकती थी। बदले में उसे जीरो कैपिटल गेन टैक्स का भुगतान करना पड़ता था। मॉरिशस से भारत में निवेश की लहर आ गई थी। 

मॉरिशस और भारत की यह डील, कई कंपनियों के लिए कमाई का धंधा बन गई। साल 2016 में केंद्र सरकार को लगा कि नियमों में बदलाव की जरूरत है। सरकार ने DTAA में संशोधन किया। दो साल के लिए चरणबद्ध तरीके से कैपिटल गेन टैक्स लगाया गया। 2019 में पूरी तरह से इसे लागू कर दिया गया। 

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भारत से क्या चाहता है मॉरिशस?

मॉरिशस के जरिए भारत में निवेश करने पर टैक्स छूट खत्म कर दी गई है। पहले मॉरिशस का इस्तेमाल टैक्स बचाने और निवेश का तरीका बदलने के लिए किया जाता था। अब एक बार फिर मॉरिशस भारत पर दबाव दे रहा है कि टैक्स नियमों में बदलाव किए जाएं।

भारत और मॉरिशस के संबंध कैसे हैं?
भारत साल 2000 से कुल 175 बिलियन अमेरिकी डॉलर का FDI किया है। भारत के कुल डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट का यह 25 फीसदी हिस्सा है। साल 2016 में हुए संशोधन के बाद यह गिरावट लगातार जारी है, साल 2022 से 23 के बीच में निवेश 6.13 अमेरिकी बिलियन डॉलर तक आ गया है।

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मॉरिशस की क्यों?
स्विट्जरलैंड को टैक्स हीवेन कहा जाता है। यहां कौन निवेश कर रहा है, कैसे निवेश कर रहा है, उसकी गोपनीयता का सम्मान यूरोप का यह देश करता है। मॉरिशस ने भी कुछ इसी तरह, अपने देश की अर्थव्यवस्था डिजाइन की है। GF मैगजीन की एक रिपोर्ट में कहा गया कि मॉरिशस की अनुकूल कर नीतियां, व्यापारिक माहौल ने निवेशकों का ध्यान खींचा। 

मॉरिशस में स्थिर सरकार और मजबूत लोकतंत्र की वजह से स्थितियां और अनकूल बनीं। मॉरिशस ने डबल टैक्सेशन से बचने के लिए कई देशों के साथ संधियां कीं। अब यह अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के लिए एक पसंदीदा जगह बन गई है। लोग इसे अफ्रीका का स्विट्जरलैंड कहने लगे। 

(Photo Credit: Mauritius Tourism)

मॉरिशस के टैक्स हीवेन होने के नुकसान क्या हैं?
मॉरिशस ने कर को लेकर इतने आसान नियम बनाए हैं कि यहां हवाला, मनी लॉन्ड्रिंग, FDI में पारदर्शिता ढूंढ पाना मुश्किल है। यहां आर्थिक अपराध ज्यादा होने की आशंका बनी रहती है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऐसी धांधली रोकने के लिए फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) होती है लेकिन यहां सब कुछ इतने कानूनी तरीके से होता है, जिसमें कमियां गोपनीयता नियमों की वजह से छिप जाती हैं। 

ऑफशोर बिजनेस क्या है?
जब कोई कंपनी या व्यक्ति, अपने देश के बाहर किसी 'टैक्स हीवेन' की लिस्ट में आने वाले देश में कम टैक्स, लचर कानूनों और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के लिहाज से बेहतरीन देश में निवेश करता है, तो इसे ऑफशोर बिजनेस कहते हैं। ऑफशोर का मकसद, टैक्स बचाना, संपत्ति को गोपनीय रखना और आर्थिक लाभ हासिल करना है। मॉरीशस, केमैन आइलैंड्स और स्विट्जरलैंड जैसे देशों में ऑफशोर कंपनियों का कारोबार खूब चलता है। यहां कंपनियों का रजिस्ट्रेशन आसान होता है, फंड और ट्रस्ट बनाना आसान होता है।

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