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नेल्सन मंडेला ने कैसे रंगभेद से दिलाई थी दक्षिण अफ्रीका को आजादी?

दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला ने रंगभेद के खिलाफ आंदोलन छेड़ा और उन्हें 27 साल जेल में बिताने पड़े। क्या थी उनके विर्द्रोह की वजह, वे किस राजनेता को आदर्श मानते थे, आइए जानते हैं उनकी कहानी।

Nelson Mandela

रंगभेद के खिलाफ प्रतिरोध की सबसे बड़ी आवाज थे नेल्सन मंडेला। (फोटो क्रेडिट- www.humanrights.ca)

जिनका रंग साफ है, वे सत्ता के शिखर पर होंगे, जो काले हैं वे गुलामी करेंगे। 20वीं सदी में ये बात कितनी बेतुकी लगती होगी लेकिन दक्षिण अफ्रीका के लोग इस दंश को झेलने के लिए मजबूर थे। उन्होंने भेदभाव के इस जंग में अपनी जवानी कुर्बान कर दी थी। 27 साल जेल की काली कोठरी में वे कैद रहे लेकिन उन्होंने जो किया, वैसा कोई नहीं कर सका। ये कहानी नेल्सन मंडेला की है।

वह देश कितना जाहिल होगा, जहां रंग के आधार पर यह तय किया जाता हो, कौन सत्ता का सुख भोगेगा, कौन हाशिए पर रहेगा, कौन वोट देगा, किसके पास अभिव्यक्ति का अधिकार होगा, किसे उसकी कीमत चुकानी होगी। दक्षिण अफ्रीका में एक बागी शख्स ऐसा भी था, जिसने रंगभेद के खिलाफ विद्रोह का बिगुल छेड़ दिया था। 

यह शख्स कोई और नहीं, नेल्सन मंडेला थे। लंबी कद-काठी, रेसर्ल्स जैसे तेवर और विरोधियों को चित करने वाले वही तेवर। 18 जुलाई 1918 को दक्षिण अफ्रीका में थेंबु समुदाय में जन्मे नेल्सन मंडेला शुरु से क्रांतिकारी थे। उन्होंने फोर्ट हेयर यूनिवर्सिटी के कानून की पढ़ाई की और जोहान्सबर्ग में वकील के तौर पर अपनी सेवाएं देने लगे। नेल्सन मंडेला की कद-काठी दक्षिण अफ्रीकी लोगों की तरह ही बेहद मजबूत थी। वे एथिलीट थे। 

रंगभेद के खिलाफ बुलंद की आवाज
नेल्सन मंडेला को गुलामी नहीं पसंद थी। वे अफ्रीकी राष्ट्रवादी अभियानों में शामिल हो गए। उन्होने साल 1943 में यूथ लीग की स्थापना की। जब नेशनल पार्टी ने केवल श्वेत लोगों की सरकार बनाई, तब वे रंगभेद के खिलाफ मुखर होकर खड़े हो गए। नेल्सन मंडेला 1944 में अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस (ANC) में शामिल हो गए। नेल्सन मंडेला रंगभेद के खिलाफ थे और लगातार वे अश्वेत लोगों के हक में आवाज उठाने लगे। यह वही दौर था, जब दक्षिण अफ्रीका में भी रंगभेद अपने चरम पर था। ANC की अगुवाई में रंगभेद के खिलाफ जंग तेज हो गई। 


लगातार बढ़ता गया नेल्सन मंडेला का कद
साल 1952 तक नेल्सन मंडेला को ट्रांसवाल ब्रांच का अध्यक्ष बना दिया गया। उनके खिलाफ कई मुकदमे लादे गए। वे कई बार जेल भेजे गए। उन्होंने महात्मा गांधी की तर्ज पर सविनय अवज्ञा आंदोलन छेड़ा। नेल्सन मंडेला ने दक्षिण अफ्रीका का पहला ब्लैक लॉ फर्म खोला, जिसके तहत रंगभेद के शिकार लोगों को कानूनी मदद दी जाती थी। 5 दिसंबर 1956 को नेल्सन मंडेला और 155 अन्य लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया और देशद्रोह का आरोपी बनाया गया।

 

साल 1961 तक सभी आरोपी छूट गए लेकिन 1959 में अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस से अलग हुई एक शाखा पैन अफ्रीकनिस्ट कांग्रेस (PAC) ने हिंसक आंदोलन शुरू कर दिया। प्रदर्शन चल ही रहा था कि पुलिस ने शार्पविले में चल रहे विरोध प्रदर्शन के दौरान अचानक गोलियां बरसानी शुरू कर दी। कुल 69 लोग मार डाले गए। देशभर में हिंसा भड़की लोगों को अंडरग्राउंड होना पड़ा, नेल्सन मंडेला भी और उभरकर सामने आ गए। 

फिर शुरू हुआ जेल जाने का सिलसिला

1961 में नेल्सन मंडेला ने 'उमखोंतो वी सिज्वे' गुट की स्थापना की। हिंदी में इसका अर्थ है राष्ट्र की भलाई। यह अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस की शस्त्र विद्रोह वाली शाखा थी। उन्हें जेल में रखा गया। वे करीब 3 दशक तक जेल में ही बंद रहे। उन्होंने लंबा संघर्ष किया। उनके ही नेतृत्व में दक्षिण अफ्रीका को गणराज्य घोषित किया और ब्रिटिश कॉमनवेल्थ की 1962 में विदाई हो गई। जनवरी 1962 में नेल्सन मंडेला अवैध रूप से इथोपिया में हो रहे अफ्रीकी नेशनिल्सट लीडर्स के सम्मेलन में शामिल होने पहुंच गए, वे निर्वासित ओलिवर टैम्बो के पास लंदन भी पहुंचे और अल्जीरिया में जाकर गुरिल्ला ट्रेनिंग भी ली। 5 अगस्त को जैसे ही वे लौटे, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें 5 साल की जेल हो गई। 

ऐसे बढ़ी नेल्सन मंडेला की मुसीबतें 

पुलिस ने रिवोनिया में अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस के गुप्त दफ्तरों पर छापेमारी की,  एमके के नेताओं की गिरफ्तारी हुई। उनके खिलाफ सशस्त्र विद्रोह के आरोप लगे। मंडेला वहां से भागने में कामयाब हो गए। उन्हें रिवोनिया ट्रायल के दौरान ही उम्रकैद की सजा सुना दी गई। मंडेला ने अपने खिलाफ लगे कुछ आरोपों को मान लिया और अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस के भविष्य के लिए लड़ते रहे। वे देखते ही देखते, दक्षिण अफ्रीका के महात्मा गांधी बन गए। 

नेल्सन मंडेला को सजा हुई। उन्होंने रॉबेन आइलैंड की जेल में 18 साल तक रखा गया। उन्हें एक छोटे से कैदखाने में रखा गया, उन्हें बुनियादी सेवाएं भी नहीं दी गई। उन्हें प्रताड़ित किया गया, मजदूरी कराई गई। उन पर जमकर अत्याचार किए गए, अधिकारियों ने उन पर पेशाब तक कर दिया। जेल में रहने के दौरान ही नेल्सन मंडेला ने कानून की पढ़ाई पूरी की। उन्होंने जेल में ही रहकर एक किताब भी लिखी, 'लॉन्ग वाक टू फ्रीडम।'

नेल्सन मंडेला, देखते ही देखते रंगभेद के खिलाफ मुखर होने वाले सबसे बड़े नेता बन गए। उनका कद वही होने लगा, जो भारत में महात्मा गांधी का था। उन्हें रिहा करने के लिए सरकार ने कई शर्तें लगाई। ने्ल्सन मंडेला ने इनकार कर दिया और कहा कि उन्हें रंगभेद के खात्मे से पहले कुछ भी मंजूर नहीं है। साल 1982 में नेल्सन मंडेला को पॉल्समूर जेल में ट्रांसफर कर दिया गया। वहां से उन्हें हाउस अरेस्ट किया गया। 

ऐसे आजाद हुए अफ्रीका के गांधी

तभी नवनिर्वाचित राष्ट्रपति एफ डब्ल्यू क्लेर्क ने अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस से प्रतिबंध हटा लिया और उन्होंने अपील की कि अफ्रीका को रंगभेद से मुक्त करने का सही समय आ गया है। उन्होंने कंजर्वेटिव पार्टी को तोड़ दिया। 11 फरवरी 1990 को उन्होंने नेल्सन मंडेला को रिहा करने का आदेश जारी किया। नेल्सन मंडेला ने अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस की अगुवाई में ऐसे राजनीतिक सहयोगियों का गठन किया, जिन्हें नस्लवाद से चिढ़ थी। नेल्सन मंडेला और डी क्लेर्क की प्रसिद्धि बढ़ती गई और दिसंबर 1993 में दोनों को नोबल पुरस्तार मिला। 

26 अप्रैल 1994 को चुनाव हुए। चुनावों में अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस की प्रचंड बहुमत से जीत हुई। ऐसा देश के लोकतांत्रिक संसदीय इतिहास में पहली बार हुआ जब रंगभेद और नस्लवाद से हटकर लोगों ने वोट मिला और देश को सही मायनों में भेदभावरहित सरकार मिली। 10 मई को नेल्सन मंडेला ने पहले अश्वेत राष्ट्रपति के तौर पर शफथ लिया। डी क्लार्क उनके पहले डिप्टी बने। नेल्सन मंडेला महात्मा गांधी के सत्याग्रह और अंहिसा से प्रभावित रहे। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी के दृढ़ संकल्प और नैतिकता की वजह से अतातायी ब्रिटिश साम्राज्य से मुक्ति मिली।

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