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इंडोनेशिया का एक समुदाय जहां शवों के साथ लोग बिताते हैं जिंदगी

इंडोनेशिया का तोराजा समुदाय आज भी एक अजीबो गरीब रस्म निभाती हैं। यहां के लोग मृतकों के शवों को ममी बनाकर एक हफ्ते तक उनके साथ एक आम जिंदगी जीते हैं।

Indonesia Weird culture of tana torja

इंडोनेशिया के इस समुदाय का अनोखा अंतिम संस्कार रिवाज Image Credit: Pexels

इंडोनेशिया का ताना तोराजा घूमने के लिए सबसे अनोखी जगहों में से एक है। धान के खेतों और घुमावदार सड़कों के पीछे, यहां के ग्रामीणों का मौत के साथ एक अलग लगाव देखने को मिलता है। यहां की सबसे दिलचस्प संस्कृति बहुत हैरान तो करेगी ही साथ ही आपको जिंदगी की नई परिभाषा भी समझा देगी। सुलावेसी द्वीप के तोराजा समुदाय के लोग अपने मरे हुए पूर्वजों के शवों को साथ लेकर सोते हैं, खाते-पीते हैं और प्रार्थना तक करते हैं।

 

मृतकों के शवों को ममी बनाकर यहां के लोग एक हफ्ते तक उनके साथ एक आम जिंदगी जीते हैं और उनकी ऐसे देखभाल करते हैं जैसे कि वे अभी भी जिंदा हों। दरअसल, तोरजन लोगों का मानना है कि किसी के मर जाने के बाद आत्मा घर में ही रहती है, इसलिए मृतकों को भोजन, कपड़े, पानी, सिगरेट देकर उनका सम्मान करना चाहिए।

 

ऐसे करते है मृतकों की देखभाल!

तोराजा समुदाय के लोग मृतकों की त्वचा और मांस को सड़ने से बचाने के लिए फॉर्मेल्डिहाइड और पानी का इस्तेमाल करते है। शवों से आती गंध को दूर करने के लिए परिवार शव के पास सूखे पौधे रखते हैं। तोराजा लोगों के लिए, शवों को अपने पास रखना एक तरीके से परिवार के सुखद भविष्य को दर्शाता है और इसलिए परिवार यह सुनिश्चित करने के लिए काफी हद तक प्रयास करते हैं कि मृतक सबसे अच्छी संभव स्थिति में रहें। तोरजन लोग बहुत कम उम्र से ही परिवार की मौत को एक यात्रा के हिस्से के रूप में स्वीकार करना सीख जाते हैं।

 

तोराजा कौन हैं?

तोराजा समुदाय की संख्या लाखों में है और वे इंडोनेशिया के दक्षिण सुलावेसी क्षेत्र के मूल निवासी हैं। तोराजा समुदाय बाहरी दुनिया से सीमित संपर्क में रहता है। समुदाय के ज़्यादातर लोग ईसाई धर्म को मानते हैं और कुछ मुस्लिम और एनिमिज्म हैं। यह समुदाय जानवरों, पौधों और यहां तक कि निर्जीव वस्तुओं को भी उनकी संस्कृति का एक हिस्सा मानता है।

 

इस अजीब परंपरा का जन्म

मानेने उत्सव (Ma'nene Ceremony) का जन्म बारुप्पु शहर से हुई थी। माना जाता है कि पोंग रुमासेक नाम के एक शिकारी ने पहाड़ों और जंगल से होते हुए एक पेड़ के नीचे सड़ती हुई लाश देखी थी। वह वहां रुका, उस शव को नहलाया और मृतक को अपने कपड़े पहनाए, जिससे मृतक को सम्मानजनक अंतिम संस्कार मिला।

 

साल और महीनों तक चलती है अंतिम संस्कार की परंपरा

इस पंरपरा की सबसे अजीब बात यह है कि कुछ परिवारों में मृतक का अंतिम संस्कार कुछ दिनों या सालों तक चलता है ताकि वे सम्मानजनक अंतिम संस्कार के लिए पैसे बचा सकें। इन दिनों, परिवार बेजान शरीर में फॉर्मेल्डिहाइड का घोल डालते हैं ताकि उसमें से बदबू न आए। जब भी कोई मरता है, तो उसके मृत शरीर को सड़ने से बचाने के लिए कपड़े और प्राकृतिक सामग्री से लपेटा जाता है।

 

यह मृतक के साथ उनके स्नेह और जुड़ाव का संकेत दर्शाता है। उनका मानना ​​है कि उनके प्रियजन आध्यात्मिक रूप से उनके आस-पास मौजूद हैं। जब तक अंतिम संस्कार नहीं हो जाता तब तक जातीय समुदाय मृतक को भोजन, पानी, कपड़े और यहां तक ​​कि सिगरेट भी देते हैं। अंतिम संस्कार में 500,000 अमेरिकी डॉलर तक का खर्च आता है और इस प्रक्रिया को पूरा होने में कई साल या महीना भी लग जाता है।

 

तोराजा समुदाय कैसे करता है अंतिम संस्कार

रैम्बू सोलो अनुष्ठान (Rambu Solo Ceremony) के दौरान पहले भैंस की बलि दी जाती है। माना जाता है कि जितनी अधिक भैंसों की बलि दी जाएगी,  उतनी ही जल्दी मृतक की आत्मा स्वर्ग तक पहुंच जाएगी। अगर किसी की बलि नहीं दी जाती है, तो ऐसा माना जाता है कि आत्मा कभी स्वर्ग नहीं पहुंचेगी। मिडिल क्लास के अंतिम संस्कार के लिए बलि दी जाने वाली भैंसों की संख्या चौबीस होती है। इस दौरान इन जीव की कीमत 40,000 अमेरिकी डॉलर तक होती है। भैंस की कीमत उसकी त्वचा, उसके सींगों की लंबाई और उसकी आंखों के रंग पर निर्भर करती है।

 

निचले वर्ग के लोगों के लिए अंतिम संस्कार का खर्च लगभग 50,000 अमेरिकी डॉलर से अधिक आता है। वहीं, उच्च वर्गों के लिए 250,000 अमेरिकी डॉलर से 500,000 अमेरिकी डॉलर के बीच खर्च आता है। अन्य संस्कृतियों की तुलना में तोराजा समुदाय के लोग यह सोचते हैं कि मरने वाले वास्तव में कभी कहीं नहीं जाते है वह हमेशा आपके साथ रहते हैं।

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