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77 साल पहले बना इजरायल क्यों कर रहा 'ग्रेटर इजरायल' का दावा?

इजरायली सरकार ने सोशल मीडिया पर एक नया नक्शा जारी किया है। इस नक्शे में फिलिस्तीन, सीरिया, लेबनान और जॉर्डन के कुछ हिस्सों को इजरायल का दिखाया गया है।

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कथित ग्रेटर इजरायल का नक्शा। (Photo Credit: X@IsraelArabic)

आजकल नक्शे जारी करने का दौर चल रहा है। अब इजरायल की सरकार 'ग्रेटर इजरायल' का एक नया नक्शा जारी किया है, जिसे लेकर अरब वर्ल्ड में बवाल खड़ा हो गया है। इस नक्शे में फिलिस्तीन, सीरिया, लेबनान और जॉर्डन के कुछ हिस्सों को इजरायल का हिस्सा दिखाया गया है। इस कथित 'ग्रेटर इजरायल' के नक्शे पर अरब मुल्कों ने आपत्ति जताई है।

इजरायल के नक्शे में क्या?

इजरायल की सरकार ने X पर इस नक्शे को पोस्ट किया है। इस नक्शे में आसपास के मुल्कों के हिस्सों को भी इजरायल में दिखाया गया है। इस नक्शे को पोस्ट करते हुए इजरायली सरकार ने लिखा 'क्या आपको पता है कि इजरायल साम्राज्य की स्थापना 3000 साल पहले हुई थी?'


इजरायल ने दावा करते हुए कहा, 'इजरायल पर शाऊल (1050 से 1010 ईसा पूर्व), डेविड (1010 से 970 ईसा पूर्व) और सोलोमन (970 से 931 ईसा पूर्व) तक 40-40 साल तक राज किया। तीनों ने कुल 120 साल शासन किया। सोलोमन के निधन के बाद राज्य को दो हिस्सों- उत्तर में इजरायल और दक्षिण में यहूदा साम्राज्य में बांट दिया गया। 209 साल बाद यानी 722 ईसा पूर्व में उत्तरी साम्राज्य पर अश्शूरियों और 345 साल बाद यानी 568 ईसा पूर्व में यहूदा पर नबूकदनेस्सर का कब्जा हो गया।'


इस पोस्ट में इजरायली सरकार ने दावा किया, 'इस बंटवारे के कारण सदियों तक संघर्ष जारी रहा, लेकिन यहूदी अपने राज्य की मांग करते रहे। इसके बाद ही 1948 में इजरायल बना। इजरायल आज मध्य पूर्व का एकमात्र लोकतांत्रिक राष्ट्र है।'

 

अरब वर्ल्ड ने जताई आपत्ति

इजरायल के इस नक्शे पर जॉर्डन, कतर, संयुक्त अरब अमीरात (UAE) और सऊदी अरब जैसे अरब मुल्कों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। जॉर्डन के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर इसे 'जानबूझकर क्षेत्रीय स्थिरता को कमजोर करने की कोशिश' बताया है।


इस नक्शे पर आपत्ति जताते हुए UAE के विदेश मंत्रालय ने इसे 'जानबूझकर कब्जा करने की कोशिश और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन' बताया है। UAE ने ये भी कहा कि 'ऐसी उकसाने वाली हरकतें शांति की कोशिशें को कमजोर करती हैं और क्षेत्रीय स्थिरता को खतरे में डालती हैं।'

 


सऊदी अरब ने इसे 'चरमपंथी कदम' बताया है। सऊदी अरब ने बयान जारी कर कहा, 'इजरायल का ये कदम देशों की संप्रभुता पर खुले हमले जारी रखने और अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन करने के उसके इरादे को दिखाता है।'

 


कतर के विदेश मंत्रालय ने भी इस पर आपत्ति जताते हुए इसे अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का 'घोर उल्लंघन' बताया है। कतर ने कहा कि 'इस तरह की कार्रवाइयां शांति प्रयासों को पटरी से उतार सकती हैं।' कतर ने ये कहा कि 'अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इजरायल पर अंतर्राष्ट्रीय कानून को सम्मान करने और उसकी विस्तारवादी महत्वाकांक्षाओं पर अंकुश लगाने का दबाव डालना चाहिए।'

 

क्या है इजरायल का 'ग्रेटर इजरायल'?

'ग्रेटर इजरायल' का कंसेप्ट बहुत पुराना है। इसके मुताबिक, एक दिन इजरायल की सीमाएं लेबनान से सऊदी अरब और भूमध्य सागर से फरात नदी (इराक) तक होंगी। ग्रेटर इजरायल में लेबनान, सीरिया, जॉर्डन, इराक, गाजा और वेस्ट बैंक के कुछ हिस्से शामिल हैं।


पिछले साल जनवरी में इजरायली लेखक एवी लिपकिन ने एक इंटरव्यू में कहा था, 'फरात के दूसरी तरफ कुर्द हैं। हमारे पीछे भूमध्य सागर है। हमारे सामने कुर्दिस्तान है। मुझे यकीन है कि हम एक दिन मक्का, मदीना और सिनाई पर भी कब्जा कर लेंगे।'


कथित 'ग्रेटर इजरायल' पर पिछले साल तब और विवाद बढ़ गया था, जब इजरायल के वित्त मंत्री बेजेलेल स्मोट्रिच ने कहा था कि 'एक दिन हमारी सीमाएं सीरिया तक होंगी।'

 

77 साल पहले बना था इजरायल

यहूदी वैसे तो लंबे समय से ही अपने लिए अलग राष्ट्र की मांग कर रहे थे। इस मांग ने दूसरे विश्व युद्ध और हिटलर के नरसंहार के बाद और जोर पकड़ लिया था। यहूदी फिलिस्तीन को यहूदियों और अरब मुल्कों में बांटने की मांग कर रहे थे। अरब इसके खिलाफ थे।


इस बीच 15 मई 1947 को ब्रिटेन ने इस मामले को संयुक्त राष्ट्र के पास भेज दिया। सितंबर 1947 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक प्रस्ताव पास हुआ। प्रस्ताव में एक यहूदी और एक अरब मुल्क बनाने की बात थी। जबकि, येरूशलम पर अंतर्राष्ट्रीय नियंत्रण का प्रस्ताव था। फिलिस्तीन की सरजमीं से अंग्रेजों के वापस जाने से एक दिन पहले 14 मई 1948 को यहूदी नेता डेविड बेन-गुरियों ने एक अलग यहूदी राष्ट्र का ऐलान किया, जिसे 'इजरायल' नाम दिया गया। 


उसी साल इजरायल को एक राष्ट्र के तौर पर मान्यता मिल गई थी। अगले साल इजरायल संयुक्त राष्ट्र का सदस्य भी बन गया। लेकिन फिलस्तीन को आज भी एक राष्ट्र के तौर पर मान्यता नहीं मिली है।

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