जापान अपनी अनोखी परंपराओं और अनुशासित लाइफस्टाइल के लिए दुनियाभर में मशहूर है। वहां की साफ-सफाई, समय की पाबंदी और सामाजिक अनुशासन लोगों को खास बनाते हैं। इन्हीं कारणों से जापान हमेशा वैश्विक सुर्खियों में रहता है। इसी अनुशासन और संस्कृति का एक अनूठा रूप हर साल एक पारंपरिक त्योहार में देखने को मिलता है, जिसे 'कनामारा मात्सुरी' कहा जाता है। यह त्योहार जापान के कावासाकी शहर में स्थित कनायामा मंदिर में मनाया जाता है और दुनियाभर से लोग इसमें शामिल होने आते हैं। इस उत्सव की सबसे खास बात यह है कि इसमें स्टील के एक पेनिस की पूजा की जाती है और एक भव्य परेड निकाली जाती है।
यही वजह है कि इसे आम बोलचाल में ‘पेनिस फेस्टिवल’ भी कहा जाता है। यह फेस्टिवल हर साल अप्रैल के पहले रविवार को मनाया जाता है। अगले साल यह फेस्टिवल 5 अप्रैल, 2026 की पहले रविवार को मनाया जाएगा। आखिर क्यों मनाया जाता है यह फेस्टिवल और इसके पीछे की कहानी क्या है? आइए इसके बारे में सब जानते हैं...

क्यों मनाया जाता है यह फेस्टिवल?
यह फेस्टिवल ऐसे ही मौज-मस्ती में नहीं मनाया जाता है बल्कि इसके पीछे एक प्राचीन जापानी कहानी है जो बेहद मशहूर है। कहानी के अनुसार, बहुत समय पहले एक राक्षस को एक सुंदर महिला से प्यार हो गया था लेकिन महिला ने उसके प्यार को ठुकरा दिया। इससे वह राक्षस बदला लेने के लिए महिला के पीछे पड़ गया। महिला की शादी हुई, उसी दौरान राक्षस चुपचाप से उस महिला के प्राइवेट पार्ट में छिप गया। जब महिला अपने पति के साथ संबंध बनाने लगी तो राक्षस ने उसके पति का लिंग काट दिया, जिससे उसकी मौत हो गई।
इसके बाद महिला की दूसरी शादी हुई लेकिन राक्षस ने फिर वही किया और दूसरा पति भी मर गया। तब महिला ने समझदारी से काम लिया और एक लोहार से मदद मांगी। लोहार ने उसके लिए एक स्टील का पेनिस बनाया। जब राक्षस ने उसे काटने की कोशिश की तो उसके दांत टूट गए और वह हार मानकर भाग गया। इस तरह महिला ने अपनी सूझबूझ से राक्षस से छुटकारा पाया। यह कहानी जापान में लंबे समय से सुनाई जाती रही है लेकिन इससे जुड़ा उत्सव ‘कनामारा मात्सुरी’ पहली बार 1969 में मनाया गया था। इस उत्सव में अब भी उस स्टील के लिंग को कनायामा मंदिर में रखा जाता है और लोग उसे देखने आते हैं।

कैसे मनाया जाता है यह फेस्टिवल?
इस फेस्टिवल में लोग प्रजनन क्षमता, सुरक्षित प्रसव, यौन स्वास्थ्य और वैवाहिक सुख की प्रार्थना के लिए इकट्ठा होते हैं। आधुनिक समय में यह यौन रोगों, खासकर एचआईवी/एड्स, के खिलाफ जागरूकता फैलाने का भी माध्यम बन गया। फेस्टिवल का आयोजन बेहद रंगारंग और उत्साहपूर्ण होता है। लोग पेनिस के आकार की मूर्तियों को सजाकर जुलूस निकालते हैं। ये लकड़ी, धातु या कैंडी से बनी होती हैं।
तीन मुख्य मूर्तियां—लकड़ी, लोहे और गुलाबी रंग की 'एलिजाबेथ' मूर्ति—जुलूस में ले जाई जाती हैं। लोग रंग-बिरंगे कपड़े पहनते हैं, नाचते-गाते हैं और पेनिस के साथ तस्वीरें खींचते हैं। खाने-पीने के स्टॉल, पारंपरिक प्रदर्शन और स्वास्थ्य जागरूकता कैंप भी लगाए जाते हैं। यह उत्सव शर्मिंदगी के बजाय खुशी और सम्मान के साथ प्रजनन और यौन स्वास्थ्य को सेलिब्रेट करता है और पर्यटकों के बीच भी खासा लोकप्रिय है।

हर उम्र के लोग होते हैं शामिल
इस उत्सव में हर उम्र के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। माता-पिता भी अपने बच्चों को साथ लाने में कोई झिझक महसूस नहीं करते। बच्चे कभी-कभी पेनिस के आकार की पोशाक पहनकर तस्वीरें खिंचवाते हैं और पेनिस की आकृति वाले खिलौनों के साथ खेलते नजर आते हैं। इस त्योहार की सबसे खास बात यह है कि यहां सब कुछ खुलेपन और सहजता के साथ मनाया जाता है – बिना किसी संकोच या शर्म के।

भूटान में भी पेनिस को पूजते हैं लोग
जापान की तरह भूटान में भी मानव लिंग यानी Phallus की पूजा होती है। यह एक प्राचीन सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा है, जो मुख्य रूप से वज्रयान बौद्ध धर्म और स्थानीय लोक मान्यताओं से जुड़ी है। इसे अजीब समझने के बजाय, इसे भूटान की अनूठी संस्कृति के रूप में देखा जाता है। यह परंपरा पूरे भूटान में, खासकर पुनाखा क्षेत्र के चिमी ल्हाखांग (Chimi Lhakhang) मंदिर में मशहूर है।
इस मंदिर को 'प्रजनन मंदिर' (Fertility Temple) भी कहा जाता है। यहां लोग लिंग की पूजा प्रजनन क्षमता, संतान प्राप्ति और बुरी आत्माओं से रक्षा के लिए करते हैं। यह यौन स्वास्थ्य और खुशहाल वैवाहिक जीवन की प्रार्थना का भी हिस्सा है। बता दें कि भूटान में कई घरों, दुकानों, और सार्वजनिक स्थानों पर लकड़ी या रंग-बिरंगे चित्रों के रूप में लिंग के प्रतीक देखे जा सकते हैं। ये दीवारों पर, दरवाजों पर या छतों पर लगाए जाते हैं।