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Male Rebellion: वह क्रांति जो पति-पत्नी के झगड़े की वजह से नाकाम हो गई

सोचिए एक क्रांति होने वाली है। सब तैयार है लेकिन पति और पत्नी के एक झगड़े के चलते बात लीक हो जाती है और सबको पता चल जाता है।

Slaves of Brazil

ब्राजील के गुलाम, Image Credit: Moreira Salles Institute

पति-पत्नी का झगड़ा हुआ और पति गुस्सा होकर घर से चला गया। गुस्से में लाल पत्नी थोड़ा शांत हुई तो अपने पति को खोजने निकली। पति को खोजते हुए यह महिला वहां पहुंच गई जहां विद्रोह की तैयारी कर रहे लोगों की मीटिंग चल रही थी। क्रांतिकारियों ने इस महिला को भी बताया कि वे कब और क्या करने वाले हैं। महिला घर लौटी तो अपनी सहेली को भी सारा प्लान बता दिया। उस सहेली ने अपनी पड़ोसी को बताया। उस वक्त वहां दो और लोग मौजूद थे। इन दोनों ने विद्रोह के प्लान के बारे में अधिकारियों को बता दिया। 

 

विद्रोह हो पाता इससे पहले ही इसकी जानकारी लीक हो चुकी थी। स्थानीय प्रशासन के लोगों ने क्रांतिकारियों को खोजा और मारने की कोशिश की। पहले से तैयार बैठे क्रांतिकारियों ने भी जवाब में गोली चला दी। इस तरह से उस मेल विद्रोह (Male Rebellion) की शुरुआत होती है जिसकी बदौलत ब्राजील में गुलामों को आजादी मिली और कई दशक बाद यह फैसला हुआ कि अब कोई भी गुलाम नहीं होगा और पैदा होने वाली पीढ़ी का हर शख्स आजाद नागरिक कहलाएगा।

 

यह कहानी है ब्राजील के सल्वाडोर में साल 1835 के जनवरी महीने में हुए मेल क्रांति की, जिसे द ग्रेट रिवॉल्ट के नाम से भी जाना जाता है। गुलामों ने इस क्रांति के जरिए यह ऐलान कर दिया था कि अब उन्हें गुलामी की जंजीरों में नहीं बंधे रहना है। क्रांति की शुरुआत भी रमजान के महीने में हुई। अचानक एकदिन अफ्रीकी मुस्लिम गुलाम और फ्रीमेन सरकार के खिलाफ उठ खड़े हुए। संघर्ष कई दशकों तक चला, गैर-मुस्लिमों ने भी साथ दिया और आखिरकार गुलामी से मुक्ति मिली।

 

पलटवार करना चाहते थे गुलाम

यह बात 1835 के आसपास की है। उस वक्त ब्राजील में मुस्लिमों को योरुबा भाषा में मेल (Malê) कहा जाता था। इसी के चलते इसका नाम भी मेल क्रांति ही पड़ा। उस वक्त क्रांति करने वाले योरुबा और हौसा मुस्लिम आज भी अफ्रीका के कई देशों में अच्छी-खासी संख्या में पाए जाते हैं। उस वक्त गुलामी के खिलाफ विद्रोह की तैयारी थी। विद्रोह की तारीख तय की गई थी 25 जनवरी 1835 की। अहुना, पैसिफिको लिकुटान, लुइस सानीम, मनोएल कलाफत और एलेसबाओ डो कोरमा जैसे नेता इसकी अगुवाई करने वाले थे। इस क्रांति का एक और लक्ष्य था कि देश में इस्लामिक राज्य स्थापित किया जाए और गैर-मुस्लिमों को गुलाम बनाया जाए। साथ ही, गोरों और अन्य लोगों को भी गुलाम बना लिया जाए।

 

इसी बीच एक पूर्व गुलाम सबीना डा क्रूज का अपने पति विटोरियो सुले से झगड़ा होता। विटोरियो घर से गए तो उनके पीछे-पीछे सबीना भी गई। एक घर में क्रांतिकारियों की मीटिंग चल रही थी। उन लोगों ने सबीना को देखा तो उनको भी पूरा प्लान बताया। क्रांतिकारियों का कहना था कि अब हम गुलाम नहीं मालिक बनेंगे। खुश खयाल होकर लौटी सबीना ने ये बात अपनी दोस्त और फ्रीवुमन गिलहरमीना को बताई। गिलहरमीना ने अपने गोरे पड़ोसी आंद्रे पिंटो दा सिलवेरिया को बताया। जब गिलहरमीना ने ये बात बताई तो दो और लोग वहां मौजूद थे। इन दोनों ने ही क्रांति और विद्रोह का पूरा प्लान अधिकारियों के सामने बता दिया।

 

क्रूरता से किया गया दमन

खबर मिलते ही सरकार के कान खड़े हो गए। तुरंत क्रांतिकारियों को पकड़ने की कोशिश शुरू की गई। सेना ने विद्रोही नेताओं को घेर लिया तो उन्होंने फायरिंग कर दी। इस तरह विद्रोह शुरू हो चुका था। विद्रोहियों ने एक जेल पर हमला करके अपने नेता फैसिफिको लिकुटन को छुड़ाने की कोशिश की लेकिन कामयाबी नहीं मिली। लगभग 600 योरुबा गुलाम सड़क पर उतर आए। इन लोगों ने सेना की बैरकों पर हमला कर दिया।

 

हालांकि, बिना हथियार के ये लोग कितना ही टिकते। उधर ब्राजील के नेशनल गार्ड के सैनिकों, सल्वाडोर की पुलिस और गोरे हथियारबंद लोगों ने जोरदार पलटवार किया। उसी दिन लगभग 80 लोगों की मौत हो गई और 7 सैनिक भी मारे गए। 300 विद्रोही पकड़ लिए गए। 4 विद्रोहियों को फांसी दी गई। 16 को जेल भेजा गया, 8 को गुलाम बनाया गया और 45 लोगों पर कोड़े बरसाने का फरमान सुनाया। जिन लोगों ने विद्रोह किया था उन्हें ब्राजील से निकाल दिया गया। इस तरह निकाले गए लोगों की संख्या 500 से भी ज्यादा थी।

 

भले ही यह आंदोलन फेल हो गया हो लेकिन इसे ही ब्राजील में दास प्रथा के खात्मे की ओर पहला कदम माना जाता है। 1850 आते-आते अफ्रीकी लोगों को गुलाम बनाकर ब्राजील लाना कम होने लगा। 1871 में फ्रीम वुम्ब लॉ आया जिसके तहत ऐलान हुआ कि अब दास महिलाओं के जो बच्चे पैदा होंगे वे आजाद होंगे। इस तरह 1888 में ब्राजील में दास प्रथा खत्म कर दी गई।

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