प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फ्रांस में हैं। बुधवार को उन्होंने फ्रांस के मार्सिले शहर में विनायक दामोदर सावरकर को श्रद्धांजलि अर्पित की। प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा, 'भारत की स्वतंत्रता की खोज में इस शहर का खास महत्व है। यहीं पर महान वीर सावरकर ने साहस के साथ भागने की कोशिश की थी। मैं मार्सिले के लोगों और उस समय के फ्रांसिसियों का भी धन्यवाद देना चाहता हूं जिन्होंने सावरकर को ब्रिटेन को न सौंपने की मांग की थी। वीर सावरकर की बहादुरी पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।'
फ्रांस का मार्सिले वही शहर है, जहां से सावरकर ने ब्रिटेन की हिरासत से भागने की कोशिश की थी। हालांकि, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। बाद में फ्रांस में मुकदमा चला और सावरकर को ब्रिटेन को सौंप दिया गया। ऐसा कहा जाता है कि अंग्रेजों के जहाज से कूदने के बाद सावरकर कई दिनों तक समुद्र में तैरते रहे। हालांकि, इसकी कभी पुष्टि नहीं हो सकी।
क्या है मार्सिले का सावरकर से कनेक्शन?
ये पूरा वाकया सवा सौ साल पुराना है। 1 जुलाई 1910 को लंदन के एसएस मोरिया से एक जहाज भारत के लिए रवाना हुआ। इस जहाज में 27 साल के सावरकर भी थे, जिन्हें 13 मार्च 1910 को लंदन के विक्टोरिया स्टेशन से गिरफ्तार किया गया था। सावरकर को नासिक के डीएम एएमटी जैक्सन की हत्या में मदद करने के आरोप में मुकदमा चलाने के लिए भारत लाया जा रहा था।
इस जहाज में सावरकर पर कड़ी निगरानी की जा रही थी। उन्हें अकेले कहीं भी आने-जाने की इजाजत नहीं था। खाना खाते वक्त भी उनके अगल-बगल में सिपाही बैठे रहते थे। जहाज जब हफ्ते भर बाद मार्सिले शहर पहुंचा तो सावरकर ने यहां से भागने की कोशिश की।
8 जुलाई 1910 को सावरकर ने सुबह सवा 6 बजे टॉयलेट जाने को कहा। उनके साथ दो सिपाही- अमर सिंह और मोहम्मद सिद्दीकी थे। सावरकर टॉयलेट गए और बाहर दोनों पहरा दे रहे थे। सावरकर ने दरवाजा अंदर से बंद किया और खिड़की से भागने की कोशिश की। सिपाहियों को इसकी भनक लग गई और उन्हें शोर मचा दिया। जहाज तब घाट से 10-12 फीट की दूरी पर था।
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फ्रांस के सिपाहियों ने ब्रिटेन को सौंपा
सावरकर जहाज से कूद तो गए थे और उन्होंने अंग्रेजों को चकमा देने की कोशिश की। सावरकर भागते-भागते फ्रांस के सिपाही से टकराए। उन्होंने उस फ्रांसीसी सिपाही से खुद को गिरफ्तार करने की अपील की। हालांकि, फ्रांसीसी सिपाही अंग्रेजी नहीं समझ पाया और उन्हें अंग्रेज सिपाहियों को सौंप दिया।
दरअसल, सावरकर चाहते थे कि फ्रांस उन्हें गिरफ्तार कर ले। इससे उनकी गिरफ्तारी अंतर्राष्ट्रीय मुद्दा बन जाती और अंग्रेजों को इसके लिए शर्मिंदा होना पड़ता।
9 जुलाई 1910 को अंग्रेजों का जहाज सावरकर को लेकर निकला और 22 जुलाई को बॉम्बे पहुंचा। मार्सिले में सावरकर को जिस तरह अंग्रेजों ने हिरासत में लिया, उसकी आलोचना हुई। कार्ल मार्क्स के पोते जीन लोंगुएट ने भी एक लेख में इसकी आलोचना की। फ्रांस में भी कई लोगों ने इसे ब्रिटेन की अवैध कार्रवाई बताया। अक्तूबर 1910 को मामला अंतर्राष्ट्रीय अदालत पहुंचा। फरवरी 1911 में अंतर्राष्ट्रीय अदालत ने ब्रिटेन के पक्ष में फैसला सुनाया।
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अब भी जारी है बहस
मार्सिले में उस जहाज से सावरकर जिस तरह से भागे, उस पर अभी भी बहस होती है। कई तरह की बातें भी हैं। किंवदंतियां भी हैं। कुछ दावा करते हैं कि जहाज से कूदने के बाद सावरकर कई घंटों तक तैरते रहे। कुछ कहते हैं कि कई दिनों तक तैरते रहे। ऐसा भी दावा किया जाता है कि सावरकर अंग्रेजों की गोलियों का सामना भी करते रहे।
हालांकि, सावरकर ने खुद कहा था कि वो 10 मिनट में भी नहीं तैरे। 'माझी जन्मस्थान' सावरकर लिखते हैं, '1921 में अंडमान की जेल से रिहा होकर जब मैं अलीपुर की जेल में आया तो एक गार्ड ने पूछा कि मैं कितने दिन और रात तक समंदर में तैरा था। इस पर मैंने जवाब दिया, दिन और रात की तो बात छोड़िए। मैं किनारे पर पहुंचने से पहले शायद 10 मिनट भी तैर नहीं पाया।'
ऐसा कहा जाता है कि गांधी हत्याकांड में जब पुलिस सावरकर को हिरासत में लेने के लिए पहुंची तो उन्होंने जेल जाने से पहले टॉयलेट जाने को कहा। पुलिस ने उन्हें टॉयलेट जाने से मना कर दिया। तब सावरकर ने कहा था, 'चिंता मत करिए। अब मैं बूढ़ा हो चुका हैं। 38 साल पहले जो हुआ था, वो दोहराने की अब इच्छा नहीं है।'