क्रूर प्रताड़ना के लिए जानी जाती थी ईरान की 'SAVAK' खुफिया एजेंसी
कम्युनिस्टों और वामपंथियों को निशाना बनाने वाली सावाक एक खुफिया और सीक्रेट पुलिस का संगठन था। इसको बनाने में CIA और इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद का हाथ था।

सावाक एजेंसी को बेहद खूंखार और क्रूर एजेंसियों में गिना जाता था Image Credit: Common license
कभी आप ईरान की राजधानी तेहरान जाएं तो वहां के लोग आपको घूमने की जगहों के तौर पर एक म्यूजियम का नाम बताते हैं। आज म्यूजियम बन चुकी यह जगह पहले एक जेल हुआ करती थी। इस जेल की दीवारें देखने पर ऐसा लगेगा जैसे वे आज भी चीखकर यह बताने की कोशिश कर रही हों कि खामोश पड़ी इस जगह के इतिहास में सैकड़ों-हजारों लोगों की चीखों का शोर दबा हुआ है। यह जेल उन तमाम लोगों पर किए गए अत्याचार की कहानी सेमेटे हुए है जिन्हें सभ्यता की कथित निशानी मानी जाने वाली टाई पहनने वाले क्रूर लोगों ने जमकर प्रताड़ित किया।
मिडल ईस्ट में पसरा तनाव
पिछले कई दशकों से मिडल ईस्ट कहे जाने वाले क्षेत्र में हिंसक तनाव पसरा हुआ है। अलग-अलग समय पर अलग-अलग देश एक-दूसरे से भिड़ते रहते हैं और इसमें मासूम लोगों की जान जाती रहती है। कमोबेश ऐसा हाल अभी भी है। कभी हमास के लड़ाके इजरायल पर हमला कर रहे हैं तो कभी इजरायल भरपूर कठोरता से उनका दमन कर रहा है। कभी पश्चिमी देश इजरायल से शांति के रास्ते पर चलने को कह रहे हैं तो कभी ईरान को धमकाते हैं।
क्या है सावाक की कहानी?
यह कहानी है उसी ईरान की जहां कभी पश्चिमी देशों ने अपने इशारे पर सत्ता स्थापित करवाई तो कभी तख्तापलट कर दिया। यह कहानी उसी ईरान की एक ऐसी एजेंसी की है जिसका वजूद अब तो खत्म हो चुका है लेकिन इसका इतिहास खून से रंगा हुआ है। यह कहानी इस्लामिक क्रांति आने से पहले के ईरान में इंटेलिजेंस एजेंसी के तौर पर काम करने वाली सावाक (SAVAK) की है, जिसकी जगह पर अब MOIS काम करती है।
कभी पक्के दोस्त हुआ करते थे ईरान और इजरायल
आज एक-दूसरे को आंख दिखा रहे ईरान और इजरायल एक समय पर एकदम जय-वीरू टाइप दोस्त हुआ करते थे। उस समय दोस्ती थी और दोनों का ही एक ही दुश्मन था इराक। इराक से निपटने और खुद को मजबूत साबित करने की कोशिश में इजरायल की इंटेलिजेंस एजेंसी मोसाद और ईरान की एजेंसी सावाक ने हाथ भी मिला लिया था। 1960 के दशक में ईरान में शाह मोहम्मद रजा पहलवी के शासन में सावाक का गठन किया गया था। हालांकि, शाह के शासन के अंत के साथ ही 1979 में इस संगठन का खात्मा हो गया। इन 19 सालों में ही सावाक ने कुछ ऐसे कारनामे कर दिए जिनके चलते आज भी उसे बेहद खूंखार और क्रूर एजेंसियों में गिना जाता है।
क्या और कैसे काम करता था सावाक?
कम्युनिस्टों और वामपंथियों को निशाना बनाने वाली सावाक एक खुफिया और सीक्रेट पुलिस का संगठन था जिसको बनाने के पीछे CIA और इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद का हाथ था। शाह के राज में लगभग 5,000 SAVAK एजेंट काम कर रहे थे। ईरानी-अमेरिकी विद्वान और पूर्व राजनेता ग़ुलाम रजा अफखामी का अनुमान है कि उस समय SAVAK के 4,000 से 6,000 सदस्य थे जबकि प्रतिष्ठित टाइम मैगजीन ने 19 फरवरी 1979 को एक प्रकाशित आर्टिकल में दावा किया था कि इस एजेंसी में लगभग 5 हजार एजेंट काम कर रहे थे।
मीडिया को सेंसर करने की ताकत रखता था सावाक
उस वक्त सावाक इतना ताकतवर था कि मीडिया क्या लिखेगा इसका फैसला भी वही करता था। सरकार नौकरी का फॉर्म भरा जाए तो उसकी जांच भी सावाक ही करे। इतना ही नहीं, उसे खुली छूट थी कि वह अपनी समझ के मुताबिक, किसी को किसी भी तरीके से टॉर्चर कर सकता था।
1963 के बाद शाह ने SAVAK सहित अपने सुरक्षा संगठनों का विस्तार किया। इसमें एजेंट के साथ-साथ अज्ञात मुखबिरों की भी संख्या बढ़ गई।
कैसे करते थे टॉर्चर?
जब सावाक के शिकंजे में कोई कैदी आ जाता था तो समझो उस कैदी की जिंदगी बद से बदतर हो जाती थी। सावाक के एजेंट्स इतने क्रूर थे कि वह कैदियों को लंबे समय तक अंधेरी कालकोठरियों में बंद करके रखते थे। वहीं, कैदियों को सजा देने के लिए रातभर जगाकर रखते थे। यही नहीं, कैदियों को घंटों तक एक ही जगह खड़ा करके प्रताड़ित करते थे। क्रूरता और अत्याचार की हद तब पार होती थी जब एजेंट्स इन कैदियों के नाखून उखाड़ निकाल देते थे। इसके अलावा, कैदियों को बिजली के झटके देना आम था। महिला कैदियों के साथ आए दिन बलात्कार किए जाते थे। इसके अलावा कैदियों को नीचा दिखाने के लिए सावाक के एजेंट्स उन पर पेशाब करते थे और कपड़े उतार कर नंगा खड़ा करके शर्मिंदा करते थे।
1971 से 1979 के बीच रहा सावाक का हिंसक युग
माना जाता है कि सावाक और अन्य पुलिस और सैन्य ने 1971- 1977 के बीच हामिद अशरफ जैसे प्रमुख शहरी गुरिल्ला संगठनों के नेतृत्व सहित 368 गुरिल्लाओं को मार डाला था।
माना जाता है कि सावाक ने साल 1971 से 1977 के बीच पुलिस और सेना के साथ मिलकर हामिद अशरफ जैसे गुरिल्ला संगठनों में काम करने वाले 368 गुरिल्लाओं को मार डाला था। 1971 से 1979 के बीच सावाक ने लगभग 100 राजनीतिक कैदियों की भी जान ले ली थी। दावा किया जाता है कि यह समय सावाक के अस्तित्व का सबसे हिंसक काल था।
सावाक का अंत….
सवाल है कि जब सावाक इतना मजबूत संगठन था तो इसका अंत क्यों हो गया? दरअसल, 5 हजार सदस्यों वाले इस संगठन से लोगों को घृणा होने लगी थी। टाइम मैगजीन ने अपने प्रकाशित आर्टिकल में लिखा है कि सावाक के पास इतनी पावर थी कि वह कहीं भी कभी भी किसी को गिरफ्तार कर सकता था। इस्लामी क्रांति आने तक सावाक ने शाह के हजारों दुश्मनों को चुन-चुन कर पकड़ा और उन्हें टॉर्चर किया। इस क्रूरता को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए ईरान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शाहपुर बख्तियार ने अपनी जनता से इस संगठन को खत्म करने का वादा किया।
सावाक एजेंसी को पूरी तरह से बंद करने के लिए ईरान की संसद में एक बिल पास हुआ और एक नई खुफिया संगठन का गठन किया गया। इस संगठन की सबसे बड़ी बात यह थी कि इसमें पुलिस को पहले जैसी कोई पावर नहीं दी गई थी। फरवरी 1979 में अयातुल्ला रूहुल्लाह खोमैनी की सत्ता आई और इस्लामी क्रांति के साथ ही सावाक संगठन का अंत हो गया। इस्लामी क्रांति की भनक शाह को एक महीने पहले ही लग गई थी और इसलिए वह जनवरी 1979 में ईरान छोड़कर चला गया और पीछे छोड़ गया सावाक के लगभग 3 हजार स्टाफ और एजेंट्स। इन 3 हजार एजेंट्स को निशाना बनाया गया। हालांकि, उस वक्त की ईरान सरकार ने सावाक की जगह नए संगठन SAVAMA में इन सभी को नियुक्त कर दिया।
ऐसे हुआ MOIS का गठन
लेखक चार्ल्स कुर्जमैन बताते हैं कि सावाक संगठन का अस्तित्व कभी खत्म हुआ ही नहीं बल्कि उसे एक नया नाम दे दिया गया- SAVAMA। शासन बदला और नाम भी बदल गया लेकिन जो नहीं बदला वो था संगठन में काम करने वाले स्टाफ और एजेंट्स। फिर 1984 में SAVAMA का विलय कर दिया गया और एक नए संगठन मिनिस्ट्री ऑफ इंटेलिजेंस ऑफ इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान (MOIS) का गठन कर दिया गया, जो अभी भी ईरान में एक्टिव है और देश के लिए खूफिया जानकारी जुटाने के साथ-साथ अन्य एजेंसियों की मदद करती है।
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