ब्रिटिश भारतीय समुदाय के दो प्रमुख व्यक्तियों, कंजर्वेटिव पीयर रमी रेंजर और हिंदू काउंसिल यूके के मैनेजिंग ट्रस्टी अनिल भनोट को शुक्रवार बड़ा झटका लगा। दोनों को ब्रिटिश राजघराने की तरफ से दिए गए सम्मान को वापस करने के निर्देश मिले है। दोनों को कमांडर ऑफ द ब्रिटिश एंपायर (सीबीई) का सम्मान दिया गया था। सम्मान प्रणाली को बदनाम करने के आरोप में यह सम्मान वापस लिया जा रहा है।
हालांकि, इस विषय पर रमिंदर ने कहा है कि वह इसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करेंगे। रेंजर से उनका CBE (कमांडर ऑफ़ द ऑर्डर ऑफ़ द ब्रिटिश एम्पायर) छीन लिया गया है। जबकि भनोट से उनका OBE (ऑफिसर ऑफ़ द ऑर्डर ऑफ़ द ब्रिटिश एम्पायर) सम्मान वापस देने को कहा है। शुक्रवार को 'लंदन राज-पत्र' में इस पद को रद्द करने की घोषणा की गई।
'प्रतीक चिन्ह वापस करना होगा'
रमी और भनोट को बकिंघम पैलेस में अपना प्रतीक चिन्ह वापस करना होगा और अब उन्हें अपने सम्मान का उल्लेख करने की अनुमति नहीं है। यह फैसला जब्ती समिति द्वारा की गई समीक्षा के बाद लिया गया है। इस समिति का मकसद ऐसे मामलों की जांच करना है जहां सम्मान घारक की हरकतें सम्मान प्रणाली को धूमिल कर सकती हैं।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दिया हवाला
रेंजर और भनोट ने इस निर्णय की आलोचना की और इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला बताया। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, भनोट के खिलाफ इस्लामोफोबिया का आरोप लगा है। 2021 में बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा के संबंध में उन्होंने एक पोस्ट शेयर किया था जिसके बाद यह विवाद बढ़ा। भनोट को इस बात की जानकारी नहीं है कि जब्ती समिति के समक्ष उनकी शिकायत किसने की। अपने ऊपर लगे आरोपों से इनकार करते हुए उन्होंने कहा, 'उस समय हमारे मंदिरों को नष्ट किया जा रहा था और हिंदुओं पर हमला किया जा रहा था और उन्हें मारा जा रहा था।
बीबीसी इसे कवर नहीं कर रहा था और मुझे उन गरीब लोगों के लिए सहानुभूति महसूस हुई। मुझे लगा कि किसी को कुछ कहना चाहिए। यह वैसा ही था जैसा कि अब बांग्लादेश में हो रहा है। मैं बातचीत और विधायी उपायों की मांग कर रहा था। मैंने कुछ भी गलत नहीं किया और मैंने सम्मान प्रणाली को बदनाम नहीं किया है।'भनोट ने आगे आग कहा कि 'इंग्लैंड में अब अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अतीत की बात हो गई है। मैं इसे लेकर काफी परेशान हूं। मुझे नहीं लगता कि उन्होंने मेरे अभ्यावेदन पर बिल्कुल भी गौर किया।'
रेंजर ने दी कानूनी चुनौती
ब्रिटिश व्यापार और सामुदायिक सेवा में योगदान के लिए 2016 में CBE प्राप्त करने वाले रेंजर ने भी इसी तरह की चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा, 'मुझे CBE की परवाह नहीं है लेकिन मुझे लगता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को कम आंका गया है और वो गलत लोगों को पुरस्कृत कर रहे हैं।' रेंजर इस निर्णय की न्यायिक समीक्षा करने और मामले को यूरोपीय मानवाधिकार न्यायालय में ले जाने की प्लानिंग बना रहे हैं।
रेंजर ने भारत को तोड़ने का इरादा रखने वाले खालिस्तान समर्थकों और बीबीसी का विरोध किया था। दरअसल, बीबीसी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक दो एपिसोड की डॉक्यूमेंट्री बनाई है, जिसमें यह इशारा किया गया है कि 20 साल पहले पीएम मोदी गुजरात दंगों में शामिल थे जबकि भारत की शीर्ष अदालत ने उन्हें इस मामले में बरी कर दिया है। रिपोर्ट में लॉर्ड रेंजर के प्रतिनिधि के हवाले से कहा गया, 'लॉर्ड रेंजर ने कोई अपराध नहीं किया है और न ही उन्होंने कोई कानून तोड़ा है। लॉर्ड रेंजर अपने CBE के योग्य प्राप्तकर्ता थे। जिस तरह से इसे उनसे छीना गया है वह शर्मनाक है।'