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अकेले पड़े यूनुस, शेख हसीना के समर्थन में आईं खालिदा जिया

खालिदा ज़िया की पार्टी बीएनपी ने शेख हसीना का पार्टी को चुनावी प्रक्रिया से प्रतिबंधित किए जाने का विरोध किया है।

Khaleda zia and sheikh haseena : Creative Image

खालिदा ज़िया और शेख हसीना । फोटोः क्रिएटिव इमेज

शेख हसीना की सरकार के तख्ता पलट के बाद से ही बांग्लादेश में अस्थिरता की स्थिति बनी हुई है। तख्ता पलट के बाद अंतरिम सरकार बनी और उसके मुख्य सलाहकार के रूप में मोहम्मद यूनुस जो उस वक्त फ्रांस में मौजूद थे, आकर कुर्सी पर काबिज़ हो गए। इसके बाद सरकार में हसीना सरकार का तख्ता पलट करने वाले स्टूडेंट गुट के लोग भी शामिल हुए।

 

यूनुस सरकार ने कुर्सी संभालते ही अमन कायम करने का वादा किया और यह भी कहा कि जल्द से जल्द सुधार करके चुनाव करवाए जाएंगे ताकि चुनी हुई सरकार को सत्ता सौंपी जा सके। हालांकि, इसके लिए उन्होंने कोई तारीख नहीं बताई कि वह यह काम कब तक करेंगे।

 

लेकिन अब यूनुस पर इस बात का दबाव बनने लगा है कि देश में चुनाव कराए जाएं।  

BNP कर रही सपोर्ट

चुनाव कराने की मांग के साथ ही मोहम्मद यूनुस सरकार काफी दुविधा में फंस गई है। कारण है कि शेख हसीना सरकार को अपदस्थ करने के लिए विरोध प्रदर्शन करने वाला छात्र संगठन चाहता है कि शेख हसीना की पार्टी को चुनावों की प्रक्रिया से अलग रखा जाए और उस पर प्रतिबंध लगा दिया जाए। लेकिन खालिदा ज़िया की पार्टी बीएनपी का कहना है कि उसे चुनावी प्रक्रिया से बाहर नहीं रखना चाहिए।


शेख हसीना की कट्ट्रर विरोधी बीएनपी के समर्थन ने सभी को चौंका दिया है। बीएनपी राजनीतिक समावेश की बात कर रही है, यह बात किसी को गले के नीचे नहीं उतर रही क्योंकि शेख हसीना की अनुपस्थिति में बांग्लादेश में बीएनपी ही सबसे बड़ी पार्टी है।

 

बीएनपी की मांग है कि चुनाव के पहले सारे राजनीतिक सुधार कर लिए जाने चाहिए और चुनावी प्रक्रिया में अवामी लीग को भी शामिल किया जाना चाहिए।

क्यों ऐसी मांग कर रही है बीएनपी

राजनीतिक एक्सपर्ट्स का मानना है कि बीएनपी को इस बात का डर है कि कहीं छात्रों का गुट सत्ता पर काबिज़ न हो जाए क्योंकि मोहम्मद यूनुस भी यही बात चाहते हैं कि अवामी लीग को प्रतिबंधित कर देना चाहिए।

 

दरअसल, अंतरिम सरकार बनने के साथ से ही छात्र संगठन और बीएनपी के बीच टकराव जारी है। छात्रों के प्रतिनिधि चाहते थे कि राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन को हटा दिया जाए जबकि बीएनपी का मानना था कि इससे संवैधानिक संकट पैदा हो जाएगा।

 

दूसरा बीएनपी चाहती है कि अंतरिम सरकार  सिर्फ और सिर्फ चुनावी सुधार करे और इलेक्शन करा के सत्ता चुनी हुई सरकार को सौंप दे, जबकि छात्र संगठन चाहता है कि नई राजनीतिक व्यवस्था लाने के लिए संविधान सहित सब कुछ बदलना पड़ेगा।

संभल कर खेल रही बीएनपी

इस पूरे प्रकरण में बीएनपी बहुत फूंक फूंक कर कदम रख रही है। बीएनपी चाह तो रही है कि अवामी लीग को चुनावी प्रक्रिया से बाहर न किया जाए लेकिन वह यह भी नहीं चाह रही कि वह सरकार में आए.

 

बीएनपी के महासचिव मिर्जा फखरुल इस्लाम आलमगीर ने कहा, 'अवामी लीग एक राजनीतिक पार्टी है और लोग तय करेंगे कि वे चुनाव लड़ेंगे या नहीं।' हालांकि, उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि, 'जिन्होंने लोगों की हत्या की और देश के पैसे लूटकर विदेश ले गए, उनहें कानून के दायरे में लाया जाना चाहिए, उन पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए और दंडित किया जाना चाहिए।'

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