2004 की प्रलयकारी सुनामी के बाद हिंद महासागर के द्वीपों पर भयावहता की असल तस्वीर देखने को मिली थी। इस विनाश ने अंडमान द्वीप समूह के आदिवासी लोगों का भाग्य बिल्कुल बदल कर रख दिया। सेंटिनली द्वीपवासी सुदूर द्वीप पर रह रहे थे। सुनामी के बाद जब मदद के लिए एक हेलीकॉप्टर पहुंचा तो सेंटिनली समुदाय के एक व्यक्ति ने पायलट को भगा दिया और कोई भी मदद लेने से इनकार कर दिया। आपदा से प्रभावित लाखों लोगों में से अकेले सेंटिनली समुदाय को किसी की मदद की जरूरत नहीं थी।
पर ऐसा क्यो?
शायद पृथ्वी पर कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं होगा जो सेंटिनली लोगों से ज्यादा अलग-थलग रहता हो। माना जाता है कि वे अफ्रीका आबादी के सीधे वंशज हैं और संभवतः 55,000 वर्षों तक अंडमान द्वीप समूह में रहते आए हैं। उनकी भाषा अन्य अंडमान द्वीपवासियों से बहुत अलग है। इसी वजह से उनका हजारों वर्षों से अन्य लोगों से बहुत कम संपर्क रहा है।

कैसा है रहन-सहन?
अब ये समुदाय 55 हजार साल पहले जैसे रहन-सहन को नहीं अपनाता है, लेकिन ये अभी भी मेटल से टूल और हथियार का निर्माम करते हैं। कई अलग-थलग आदिवासी लोगों की तरह, सेंटिनली को अक्सर गलत तरीके से ‘जंगली’ या ‘पिछड़ा’ बताया जाता है।

भारत सरकार कर रही संपर्क
आपको जानकर हैरानी होगी, लेकिन द्वीपवासी स्वस्थ, सतर्क और संपन्न जीवन जी रहे हैं। वहीं, अंडमान की दो जनजातियां, ओंगे और ग्रेट अंडमानी, पश्चिमी सभ्यता को अपना चुकी हैं। इससे समुदाय की संख्या में भारी गिरावट भी देखने को मिला है और जिंदा रहने के लिए बड़े पैमाने पर सरकार की मदद पर निर्भर हैं। हालांकि, भारतीय सरकार ने सेंटिनली के प्रति अपनी नीति में कई बदलाव किए है। भारत सरकार इस समुदाय से संपर्क करने के प्रयास भी कर चुकी है। साथ ही यह भी स्वीकार किया है वह खुद तय करने का अधिकार रख सकते है कि वे कैसे जीना चाहते हैं।