बीते कुछ सालों में वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या के रूप में उभरा है। हवा इतनी दूषित हो गई है कि सांस लेना दूभर हो रहा है। इस प्रदूषित हवा में सांस लेना अब इतना खतरनाक हो चला है कि हर साल 15 लाख लोगों की जान जा रही है। हाल ही में आई लैंसेंट की रिपोर्ट के मुताबिक, PM2.5 प्रदूषण से भरी हुई हवा में सांस लेने से हर साल भारत के लगभग 15 लाख लोगों की जान जा रही है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, हवा में PM2.5 कणों की मात्रा का वार्षिक औसत 5 μg/m³ ही होना चाहिए लेकिन भारत में यह काफी ज्यादा है। बुधवार को प्रकाशित हुई लैंसेंट प्लेनेटरी हेल्थ की रिपोर्ट के मुताबिक, इसी के चलते भारत के लाखों लोगों की जान जा रही है। यहां यह समझना जरूरी है कि PM2.5 का मतलब धूल या गंदगी के उन कणों से है जिनका आकार 2.5 माइक्रोन से कम होता है। वहीं μg/m³ यह दर्शाता है कि एक क्यूबिक मीटर हवा में कितने माइक्रोग्राम प्रदूषक हैं।
इस स्टडी के मुताबिक, भारत के सभी 140 करोड़ लोग जिस हवा में सांस ले रहे हैं उसमें PM 2.5 की मात्रा WHO की गाइडलाइन से ज्यादा है। इस विश्लेषण के मुताबिक, लगभग 110 करोड़ लोग यानी 81.9 पर्सेंट जनता जिस हवा में सांस ले रही है उसमें PM 2.5 की मात्रा नेशनल क्वालिटी स्टैंडर्ड यानी 40 µg/m³ से ज्यादा है।
कैसे हुई स्टडी?
इस स्टडी के लेखकों का कहना है कि लंबे समय तक वायु प्रदूषण के बीच लंबे समय तक सांस लेना ज्यादा मौतों का कारण हो सकता है। इस स्टडी में साल 2009 से 2019 के जिला स्तर के डेटा का अध्ययन किया गया है। मशीन लर्निग आधारित मॉडल, सैटलाइट डेटा और ग्राउंड मॉनीटरिंग के जरिए 1056 जगहों का अध्यययन किया गया। स्टडी के मुताबिक, कई सालों तक PM2.5 की मात्रा काफी ज्यादा थी। यहां तक कि जो सालाना औसत सबसे कम था वह 11.2 μg/m³ था। यह अरुणाचल प्रदेश के लोवर सुबंसिरी में दर्ज किया गया। वहीं, अधिकतम औसत उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद और दिल्ली में साल 2019 में 119.0 μg/m³ में दर्ज किया गया।
इस रिसर्च के मुताबिक, भारतीय वार्षिक वायु गुणवत्ता मानक के मुताबिक, यह संभव है कि साल 2009 से 2019 के बीच PM2.5 के चलते लगभग 38 लाख लोगों की मौत हुई हो। इसी रिसर्च में जब WHO के मानकों को देखा गया तो यह पता चला कि लगभग 1.66 करोड़ लोगों की PM2.5 की वजह से जान गई। इस रिसर्च पेपर में भारत के मानकों के साथ-साथ WHO की गाइडलाइन को भी देखा।