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याशी जैन: एल्ब्रुस से एवरेस्ट तक, तिरंगा फहराने वाली लड़की का इंटरव्यू

दुनिया के 5 महाद्वीपों की सबसे ऊंची चोटियों पर अपने कदमों के निशान छोड़ चुकीं याशी जैन, अब अंटार्कटिका जाना चाहती हैं। एवरेस्ट पर तिरंगा लहरा चुकीं याशी, अपने अब तक के सफर पर क्या कहती हैं, पढ़ें इंटरव्यू में।

Yashi Jain

माउंट एवरेस्ट पर याशी जैन। (Photo Credit: Yashi Jain)

'साल 2021 की बात है। महीनों की ट्रेनिंग के बाद माउंट एवरेस्ट के शिखर की राह में थी। 8 हजार मीटर की दूरी तय कर चुकी थी। हाथ-पैर कांप रहे थे। लग नहीं रहा था कि अब अगला कदम रख पाऊंगी। आस पास कई लाशें थीं। तूफान आ रहा था और लौटना पड़ा था। आगे बढ़ती तो शायद जान चली जाती। एक साथ सारा अध्यात्म याद आ गया था। लग रहा था कि अब कुछ नहीं हो पाएगा। लौटना पड़ा। बहुत हतोत्साहित हो गई थी लेकिन लग रहा था कि लौटना है। लौटी भी इस उम्मीद के साथ कि दुनिया की सबसे ऊंची चोटी को फतह तो जरूर करूंगी।'

छत्तीसगढ़ की याशी जैन पर्वतारोही हैं। 5 महाद्वीपों के सबसे ऊंचे पर्वत शिखरों तक तिरंगा लहराने वाली याशी, पेशे से इंजीनियर हैं। माउंट किलमिंजारो से लेकर माउंट एल्ब्रुस तक, उन्होंने अपने कदमों के निशान छोड़े हैं। वह 8 हजार मीटर से ऊंची पर्वत शृखंलाओं को नाप चुकी हैं। और तो और अगर साल 2021 में मौसम की मार न पड़ती तो 2023 तक के सफर में वह 3 बार माउंट एवरेस्ट की चोटी को फतह कर चुकी होतीं। साल 2021 में आए तूफान की वजह से उन्हें 8 हजार मीटर की ऊंचाई पर से लौटना पड़ा था। उनकी मंजिल, माउंट एवरेस्ट की सबसे ऊंची चोटी, महज कुछ सौ मीटर दूर थी।

यशी जैन ने 17 मई 2023 को दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई पूरी की। माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई जमीन से 8,848.86 मीटर है। याशी यहीं नहीं रुकीं, उन्होंने महज 26 घंटों के भीतर 18 मई 2023 को चौथी सबसे ऊंची चोटी माउंट ल्होत्से भी फतह कर लिया। इस पर्वत की ऊंचाई 8,516 मीटर है। वह एवरेस्ट और ल्होत्से दोनों को एक साथ फतह करने वाली सबसे कम उम्र की भारतीय महिला भी हैं। इस रिकॉर्ड को एशिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया है।

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उनके पर्वतारोहण के जुनून और जज्बे के बारे में हमने उनका इंटरव्यू किया और कुछ सवाल पूछे। उन्होंने क्या बताया, पढ़ें- 

माऊंट एवरेस्ट पर फतह, अब आगे क्या?
'माउंट एवरेस्ट बड़ा सपना था। जिस चीज की पढ़ाई मैंने की थी, अब उसमें करियर भी देखना है, साथ-साथ यह भी देखना है कि मेरी तरह जो लड़कियां सपने देखती हैं, पर्वतों को कदमों तले नापने की, उन्हें गाइड करने की। लोग उन्हें बहुत हतोत्साहित कर देते हैं, मेरा काम है उन्हें यह बताना कि मैंने लगन से, मेहनत से यह कर दिखाया है। अब उन्हें गाइड करने का काम कैसे करना है, इसे लेकर भविष्य में रूप-रेखा तैयार करूंगी।'

माउंट एवरेस्ट पर याशी जैन। (Photo Credit: Yashi Jain)

माउंट एवरेस्ट चढ़ने का ख्याल कैसे आया?
'12वीं में थी। पहली बार पता चला पर्वतारोहण का कोर्स करना है। मुझे अच्छा लगा, शुरुआत शौकिया तौर पर हुई, फिर पैशन बन गया। मैंने कोर्स किया तो पता चला कि पर्वतारोही सोचते क्या हैं। पर्वतारोहियो के मन में जुनून होता है कि या तो 7 महाद्वीप की सभी पर्वत श्रृंखलाओं पर कदम रखें, या 8 हजार मीटर से ऊंचे पर्वतों पर पर्वतारोहण करें। ऐसी चोटियां दुनिया में सिर्फ 14 हैं। मेरा मन हुआ कि मैं 7 महाद्वीपों के पर्वतों को नापूंगी। छत्तीसगढ़ में महिलाएं खेती किसानी से सामाजिक संगठन तक चलती हैं लेकिन उन्हें वह पहचान नहीं मिलती, जिसकी वे हकदार हैं। मेरा सोचना यह था, हम महिलाएं हर दिन एक पर्वत से लड़ती हैं, उसे फतह करती हैं। ऐसे में क्यों मैं यह न दिखाऊं कि जो दुनिया का सबसे ऊंचा पर्वत है, माऊंट एवरेस्ट, मैं उसे फतह करूं। मैंने माऊंट एवरेस्ट नाप लिया। अगर हम माउंट एवरेस्ट फतह कर सकते हैं तो हमारे लिए कुछ भी असंभव नहीं है। मैं चाहती हूं कि जैसे मेरी पहचान बनी, वैसे उन लड़कियों, महिलाओं की भी बने जो हर दिन अपनी मुश्किलों के माउंट एवरेस्ट पर चढ़ती हैं, उन्हें फतह करती हैं।'

'साल 2021, उस साल दो बर्फीले तूफान आए थे। मुझे 8 हजार मीटर की ऊंचाई से वापस आना पड़ा था। यह मेरे लिए बेहद हतोत्साहित करने वाला रहा। यह घड़ी मेरे लिए बेहद मुश्किल रही। ग्रीन बूट्स के पास हम पहुंच चुके थे। वहीं ग्रीन बूट्स की डेड बॉडी है। मैंने नोटिस नहीं किया क्योंकि हम उस वक्त अंधेरे से गुजर रहे थे। 24 घंटे के अंदर ही मैंने ल्होत्से भी फतह किया था। वहां एक लाश पड़ती है, जिस पर से होकर हमें गुजरना होता है। वह पल बेहद खतरनाक होता है, उसे देखना नहीं चाहते हैं फिर भी हमें देखना पड़ता है, उस वक्त बहुत डर लगता है। उस पॉइंट पर हमें लाशें मिलती हैं। 2021 में लाशें देखकर बहुत ज्यादा डर लगा।'

माउंट एवरेस्ट पर याशी जैन। (Photo Credit: Yashi Jain)

माउंट एवरेस्ट की लाशें कैसे होती हैं?
'-40 डिग्री में लाश कभी सड़ती-गलती नहीं हैं। वे लगभग पत्थर की तरह हो चुकी होती हैं। उनका रंग बर्फ में पड़कर सफेद हो चुका होता है लेकिन उनसे बदबू नहीं आती है। उन्हें देखकर लगता है कि कोई अपने ख्वाब को पूरा करके मरा, कोई वहां तक पहुंच नहीं पाया, उससे पहले ही मर गया। उनका सफर अच्छा रहा कि मंजिल के लिए मरे।'

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ग्रीन बूट्स पर क्या कहेंगी?

हमारी तरह ही एक शख्स साल 1996 में माउंट एवरेस्ट चढ़ने गया था। दुर्भाग्य से उसकी मौत हो गई। नॉर्थ-ईस्ट रिज के पास लाश पड़ी रही। दशकों तक ऐसा ही रहा लेकिन अब लोगों ने उस लाश को थोड़ा सा नीचे उतार दिया है। उस लाश पर कई बार लोगों के कदम तक पड़ जाते थे, लांघकर जाना पड़ता था। यह अच्छा नहीं लगता कि हमारे जैसे ही किसी पर्वतारोही की लाश को लांघकर जाना, यह सबके लिए थोड़ा मुश्किल लम्हा हो जाता था। उसे थोड़ा सा मूव कर दिया गया है। वह उस लोकेशन से थोड़ा नीचे है। संकरा सा रास्ता है, लोगों को मुश्किलें आती थीं, इस वजह से उन्हे वहां से हटाया गया है। 

माउंट एवरेस्ट से कुछ मीटर नीचे ग्रीन बूट्स शव पड़ा है।

ग्रीन बूट्स क्या है?
माउंट एवरेस्ट पर 'ग्रीन बूट्स' नाम की एक लाश कई दशकों से सुर्खियों में है। यह लाश माउंट एवरेस्ट से ठीक 200 से 300 मीटर नीचे, नॉर्थ-ईस्ट रिज के पास एक केव पर पड़ी थी। कई दशकों तक वहीं पड़ी रही। लाश त्सेवांग पलजोर की है, साल 1996 के बर्फीले तूफान में उनकी मौत हो गई थी। पैरों में हरे जूते होने की वजह से लाश का नाम ग्रीन बूट्स पड़ा। 

दुनिया के शीर्ष पर पहुंचकर क्या सोचते हैं? 
'इतने वर्षों से सपना देखा था, जिसके लिए दिन-रात एक की थी, वह पूरा हो गया। उस वक्त लगता है कि अपने मां-बाप को फोन कर लें, उन्हें बता दें कि हमने दुनिया जीत ली है। यह बहुत भावनात्मक मौका होता है, हम रो नहीं पाते हैं, लेकिन बहुत अंदर से हैवी फील होता है। वहां ज्यादा देर रुक नहीं सकते हैं लेकिन उस 5 से 10 मिनट के वक्त में लगता है कि हमने पूरी दुनिया हासिल कर ली है, अब तो कुछ बचा ही नहीं।'

माउंट ल्होत्से पर याशी जैन। (Photo Credit: Yashi Jain)

मंजिल से पहले बर्फ से ढकी लाशों को देखकर क्या लगता है?
'बहुत सारे लोग ख़्वाब लेकर वहां जाते हैं। कुछ अपनी मंजिल तक पहुंच चुके होते हैं, कुछ लोग बीच राह में दम तोड़ देते हैं। अधूरे ख़्वाबों वाली बहुत सी लाशों को देखकर यह लगता है कि क्या गलतियां इन्होंने की हैं, जिनकी वजह से ये मंजिल पाकर या उससे पहले ही इन्हें जान गंवानी पड़ी। माउंट एवरेस्ट का हर कदम, आपकी जिंदगी का आखिरी कदम हो सकता है। आपका मकसद न सिर्फ पहाड़ चढ़ना है, बल्कि सुरक्षित उतरकर अपने घर लौटना है। यहां मरने के लिए लोग नहीं आते। आमतौर पर लोग उतरते वक्त लोग थक जाते हैं, उन्हें लगता है कि अब आगे कदम नहीं बढ़ा सकते हैं। यहीं वे पहली गलती करते हैं। थकना नहीं है, शेरपा की सलाह माननी है, सावधानी करनी है। जो लोग नहीं लौट पाते, वे हार जाते हैं, हारना नहीं है, जीतना है।'



प्रेरणा कौन हैं?
यूपी की अरुणिमा सिन्हा। उनके पैर नहीं हैं उन्होंने पर्वत चढ़ लिया। मैं उन्हें अपनी प्रेरणा मानती हूं। उन्हीं का ब्लॉग पढ़कर मुझे पहाड़ चढ़ने का आइडिया आया। मुझे वहीं से पर्वतारोहण के कोर्स के बारे में पता चला। छत्तीसगढ़ के लोग मेरी प्रेरणा हैं, उनके लिए कुछ करने का जज्बा मन में था। इसी संकल्प के साथ मैंने माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई पूरी कर ली।

माऊंट एवरेस्ट से कितने अलग हैं दुनिया के पहाड़?
हर पहाड़ का अपना नेचर है। 5 हजार मीटर से ऊंचे पहाड़ों पर ऑक्सीजन लेवल कम होने लगता है। एवरेस्ट टफ तो है लेकिन यूरोप या अफ्रीका के पहाड़ भी कम खतरनाक नहीं हैं। साउथ अमेरिका की पर्वत शृंखलाओं में से एक पहाड़ है माउंट एकॉनकागुआ। इस पर्वत की ऊंचाई 6961 मीटर है। यहां बिना ऑक्सीजन सिलेंडर के जाते हैं। 6,500 से ज्यादा की ऊंचाई पर ऑक्सीजन खत्म होने लगता है, बिना हवा के इस जोन में क्लाइंब करना बेहद मुश्किल होता है। इस दौरान उधर तेज हवाएं भी चलती हैं। धीरे-धीरे मौसम-मौसम के साथ तालमेल बनता है। अफ्रीका के माउंट किलीमंजारो की ऊंचाई महज 5896 मीटर है। ऐसे पर्वत पर भी लोगों की मौत हो जाती है।

माउंट किलमिंजारो। (Photo Credit: Yashi Jain)

2021 की नाकामी कैसी लगी?
साल 2021 में एक बार मैं कैंप 4 तक पहुंची, दूसरी बार कैंप 3 तक। दोनों की ऊंचाई 7 हजार मीटर से ज्यादा है। 8 हजार मीटर से वापस आने के बाद लगा कि मौसम खराब, हमारी गलती नहीं है, हमने कोशिश की। दूसरी बार जब मैं कैंप 3 से वापस लौटी तो निराश हो गई। बहुत हिम्मत लगती है कि एक बार आप डेथ जोन टच करके वापस एक सप्ताह के भीतर ही दोबारा लौटने की प्लानिंग करें। उस पॉइंट पर जब मुझे लौटना पड़ा था, तब लगा कि भगवान ने यह क्या किया, हमें लगा कि भगवान ने हमारे साथ ऐसा क्यों हुआ। भगवान से भरोसा उठ गया था कि मेरी इतनी मेहनत नाकाम गई थी। मेरी हिम्मत टूट गई थी, अवसाद में थी, लोगों के सवाल भी होते थे कि कितना बेटी को भेजोगे। अच्छा किया तो लोग ताली बजाते हैं, नाकाम हों तो लोग जीने नहीं देते। साल 2021 में मैंने खुद को कम समझा। साल 2023 में मैंने माउंट एवरेस्ट जीता, फिर लोत्से भी। हमें लगता है कि कई बार खराब हमारे साथ हो रहा है लेकिन नियती के सोचना का तरीका कुछ और होता है। हमें अपने सपनों भर भरोसा रहता है तो काम पूरा हो जाता है।



पहाड़ चढ़ने की आर्थिक चुनौतियां क्या हैं?
मुश्किलें आती हैं। आर्थिक चुनौती सबसे बड़ी बाधा है। लोगों को अपना घर तक गिरवी रखना पड़ता है। जिन्हें प्राइवेट कंपनियां मदद कर देती हैं, स्पॉन्सरशिप मिल जाती है, उनका काम थोड़ा आसान हो जाता है। मुझे खुद लोन लेना लेना पड़ा था। मेरे मां-बाप को हेल्प करनी पड़ी थी। यहां लोग पर्वतारोहण को स्पोर्ट्स नहीं समझते हैं। इसे भी क्रिकेट, हॉकी की तरह खेल समझने की जरूरत है। आखिर जो लोग माउंट एवरेस्ट फतह करते हैं उनका नाम दुनिया में दर्ज होता है या नहीं, वे देश के लिए रिकॉर्ड कायम करते हैं या नहीं। पर्वतारोहियों को भी सरकारी मदद मिलनी चाहिए। कोई पर्वतारोही सिर्फ अपने शौक के लिए पहाड़ नहीं चढ़ता है, वह अपने देश और राज्य के लिए भी मेहनत करता है। माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई के लिए 30 से 40 लाख रुपये खर्च करने पड़ते हैं। यह इतनी बड़ी रकम होती है कि इसे बिना स्पॉन्सरशिप के कोई अकेले नहीं वहन कर सकता है। 

माउंट एवरेस्ट का सबसे मुश्किल पल क्या था?
एवरेस्ट मेरे सपनों में आता है। एवरेस्ट के बाद जब मैं ल्होत्से चढ़ रही थी, तब तक मैं थक चुकी थी। मेरी बॉडी बेहद पेन में थी। मुझे यह नहीं पता था कि मैं बच पाऊंगी या नहीं। मेरे अगले कदम नहीं पड़ रहे थे। तब मेरे शेरपा ने मेरी बहुत मदद की। उन्होंने मुझे मोटिवेट किया। मोटिवेशन की वजह से मैं पहाड़ चढ़ने में कामयाब हो पाई। 

नए लोगों को क्या सलाह देंगी?
पर्वतारोहण का कोर्स करें पहले। अगर 8 हजार मीटर की ऊंचाई चढ़ना चाहते हैं तो पर्वतों पर चलना शुरू कीजिए। 5 हजार से लेकर 7 हजार मीटर ऊंचाई वाले पर्वतों पर पहले चढ़ाई करें। अपनी हेल्थ ठीक रखें, फेफड़ों को बेहतर रखें। हीमोग्लोबिन ठीक करें। रनिंग कीजिए, लेग से लेकर बैक तक की एक्सरसाइज कीजिए, आपको 25 किलो का बैग भी उठाकर चलना होता है। मेरी ट्रेनिंग 10 से 11 महीने तक चलती थी। हर 6 महीने में मेरी कोशिश यही रहती थी कि मैं हर 6 महीने में पहाड़ चढ़ूं।



शेरपा क्या करते हैं?
शेरपा पहाड़ों पर रहते हैं, वे अभ्यस्त होते हैं पहाड़ चढ़ने की। वे पहाड़ों के लिए ही बने होते हैं। हम ट्रेनिंग के बाद भी उनके 10 प्रतिशत तक नहीं पाते हैं। मेरे शेरपा 6 बार माउंट एवरेस्ट चढ़ चुके हैं, जब आप सबसे कमजोर होते हो, तभी उनकी मदद सबसे ज्यादा जरूरत पड़ती है। जब मैं माउंट ल्होत्से पर कमजोर पड़ने लगी थी, टूटने लगी थी, तब मेरी मदद शेरपा ने की थी।

कभी लगा कि शेरपा को खुद मदद की जरूरत है?
2021 में एक बार नए शेरपा कुछ लोगों के साथ चढ़ रहे थे। पर्वत पर कई बार गहरी खाइयां होती हैं। उन्हें पार करने के लिए एल्युमिनयम की सीढ़ियां होती हैं। एक शेरपा, उसे फिक्स करने में बहुत डर रहे थे। वे बेहद नए-नए थे। पहली बार क्लाइंब कर रहे थे। तब उन्हें डगमगाते देखा था। वैसे पहाड़ों पर उनसे अनुभवी कोई नहीं होता इसलिए उन्हें किसी मदद की जरूरत नहीं पड़ती।

माउंत ल्होत्से पर याशी जैन अपने शेरपा के साथ। (Photo Credit: Yashi Jain)

कभी शारीरिक बाधा सामने आई?
साल 2017 में। मैंने पर्वतारोहण का कोर्स शुरू ही किया था। पहाड़ पर चढ़ने के दौरान नर्वस हो गई थी। बीपी बढ़ गया था। मुझे चढ़ाई करने से रोक दिया गया था। तब मैंने अपने शरीर पर काम किया। दिनचर्या ठीक की, साल 2021 तक सब ठीक हो गया था।

क्या महिलाओं को पर्वतारोहण में ज्यादा दिक्कतें आती हैं?
पहाड़ स्त्री या पुरुष नहीं पहचानते। पहाड़ तभी जीते जा सकते हैं, जब मेहनत और लगन सटीक हो। कई बार पर्वतों पर ज्यादा तापमान होने की वजह से अर्ली पीरियड आ जाते हैं। पीरियड में पहाड़ चढ़ना मुश्किल होता है। महिला का शरीर, पुरुष की तुलना में अलग होता है। महिलाओं वाली मुश्किलों से पुरुष गुजरते नहीं, ऐसे में उन्हें थोड़ी आसानी होती है। अलग बात है कि ये हार्मोनल गतिविधियां, हमारी जिंदगी का हिस्सा हैं, इनके आधार पर हम कोई जजमेंट नहीं दे सकते हैं। बस यह सकते हैं, पहाड़ चढ़ने के लिए पहाड़ जैसी हिम्मत भी चाहिए। 

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दिन या रात, कब पर्वतारोहण आसान होता है?

पहाड़ों पर दोपहर 2 बजे के बाद अचानक मौसम बदल जाता है। बारिश और बर्फबारी शुरू हो सकती है। दिन में बर्फ पिघलती है तो फिसलन बढ़ जाती है, वहीं रातों में बर्फ पिघलती नहीं है। रात में ही कैंप की चढ़ाई ज्यादा आसान होती है। अगर आप बेस कैंप 4 तक पहुंच जाते हैं तो शाम 7 बजे के बाद आगे की चढ़ाई लोग शुरू करते हैं। रात में मौसम संबंधी परेशानियां कम आती हैं, मौसम एक जैसा रहता है। हर 1 घंटे पर हम रेस्ट करते हैं। 5 से 10 मिनट का रेस्ट लेते हैं। पानी पीते हैं, कुछ खा लेते हैं। रात में रुकने के लिए तय कैंप होते हैं। ये कैंप सुरक्षित जगहों पर होते हैं, जहां बर्फ पिघलने की आशंका कम होती है। 

मुश्किलें क्या आती हैं?
ठंड ज्यादा होने की वजह से हार्ट और लंग पर असर आता है। कोशिश यही रहती है कि शरीर का हर हिस्सा ढका रहे, जिससे थक्के न जमने पाएं। पर्वत से लौट रहे कुछ लोगों के शरीर के किसी हिस्से में ऑक्सीजन की अचानक किल्लत शुरू हो जाती है। कई बार कुछ उंगलियां तक लोगों को काटनी पड़ती हैं। 

(Photo Credit: Yashi Jain)

माउंट एवरेस्ट जाएं तो क्या जरूर साथ रखें?
अगर आपका थरमस अच्छा नहीं है तो आप पानी के लिए तरस जाएंगे। लिक्विड फर्म में खाना आपको अरुचिकर लग सकता है। मैं गोंद के लड्डू लेकर गई थी। ड्राइ फ्रूट्स शरीर को गर्मी देते हैं। पहाड़ों पर डाइट का खास ख्याल रखना पड़ता है। अच्छा खाना जरूरी है। आपको इंस्टैंट एनर्जी की जरूरत पड़ती है। 

माउंट एवरेस्ट पर कचरे क्या हाल क्या है?
लोग जानबूझकर वहां कचरा नहीं छोड़ते हैं। कई बार खराब मौसम की वजह से वहां लगे टेंट, कैंप फटने लगते हैं, लोगों की पकड़ से चीजें छूटने लगती हैं, वहीं रुक जाती हैं। अब शेरपाओं को वहां प्रोत्साहित किया जा रहा है कि वे अपने साथ-साथ कचरा लेकर आएं। उन्हें इनाम मिलेगा। अब कचरे की मुश्किलें कम हो रही हैं। जागरूकता की वजह से जो लोग वहां सामान लेकर जा रहे हैं, उसे लेकर ही लौटते हैं। 

कोई सीख जो आने वाले पर्वतारोहियों को देना चाहेंगी?
छोटे-छोटे पर्वतों पर पहले चढ़ाई करें। पहले 5 हजार, फिर 6 हजार, फिर 7 हजार। माउंट एवरेस्ट चढ़ने के लिए पहले 8 हजार मीटर वाले पर्वतों का एक-दो बार अनुभव लें। याद रखें कि समिट पर चढ़ना एक मंजिल हो सकता है लेकिन उससे मिली सीख, सफर के अनुभव आपके साथ जिंदगीभर याद रहेंगे। माउंट एवरेस्ट चढ़ने के बाद आप क्या सीख लेकर जा रहे हैं, वह ज्यादा जरूरी है। आप मंजिल जीतकर सुरक्षित अपने घर लौटें, यह सबसे ज्यादा जरूरी है। 

(Photo Credit: Yashi Jain)

अब इससे आगे क्या?
मैंने 5 महाद्वीपों के बड़े पर्वतों की चढ़ाई कर ली है। अब अंटार्कटिका और उत्तरी अमेरिका मेरी मंजिल है। इस ख्वाब को भी मुझे पूरा करना है।  

याशी जैन कौन हैं?
याशी जैन पेशे से इंजीनियर हैं। वह छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले से आती हैं। पिता बैंक मैनेजर हैं, मां स्कूल टीचर रही हैं। याशी अभी एक मल्टीनेशनल कम्पनी में काम करती हैं। काम के दौरान ही वह पर्वतारोहण की ट्रेनिंग करती रहती हैं। उनके पिता का नाम अखिलेश जैन है और मां का नाम अल्का जैन हैं। वह अब उत्तरी अमेरिका और अंटार्कटिका फतह करने की तैयारी में हैं। 

(Photo Credit: Yashi Jain)



याशी जैन की अपलब्धियां क्या हैं?
याशी अब तक 5 महाद्वीपों की ऊंचाइयों की चढ़ाई कर चुकी हैं। अंटार्कटिका और उत्तरी अमेरिका के कुछ पर्वत बचे हैं। 

  • ऑस्ट्रेलिया: माउंट कौज़ियसको। 2228 मीटर। 12 मार्च 2025।
  • दक्षिण अमेरिका: माउंट एकांकागुआ। 6961 मीटर। 14 फरवरी 2023।
  • अफ्रीका: माउंट किलीमंजारो। 5896 मीटर। 2 अक्टूबर 2022।
  • यूरोप: माउंट एल्ब्रुस। 5642 मीटर। 2019।
  • एशिया: माउंट एवरेस्ट और माउंट ल्होत्से। 2023।
  • 6 हजार से ऊंची चढ़ाइयां
  • लबुचे ईस्ट पीक, 6119 मीटर, जनवरी 2021।
  • आइलैंड पीक, 6189 मीटर, जनवरी 2020।
  • जोगिन III पीक, 6116 मीटर, 2018।


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