बड़ौदा डायनामाइट केस क्या है जिसमें फंसे थे जॉर्ज फर्नांडीज?
एक समय पर दिग्गज समाजवादी नेता के रूप में मशहूर हुए जॉर्ज फर्नांडीज को गिरफ्तार किया गया तो उन पर बम धमाके की साजिश जैसे गंभीर आरोप लगाए गए।

मशहूर समाजवादी नेता जॉर्ज फर्नांडीज, Image Credit: Social Media
25 जून 1975 को देश के राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर के बाद आपातकाल का ऐलान हो चुका था। विपक्षी पार्टियों के नेता, पत्रकार और तमाम सामाजिक कार्यकर्ताओं से इंदिरा गांधी की सरकार दुश्मन की तरह पेश आ रही थी। मोरारजी देसाई, जय प्रकाश नारायण, चंद्रशेखर, लालू यादव जैसे तमाम नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। अखबारों की बिजली काट दी थी। इन सबके बीच कई नेता और सामाजिक कार्यकर्ता ऐसे भी थे जो अंडर ग्राउंड हो गए थे। तमाम इंटेलिजेंस एजेंसियों के बावजूद सरकार उन्हें ढूंढ नहीं पा रही थी। ऐसे ही एक नेता थे जॉर्ज फर्नांडीज। इमरजेंसी लगने के बाद से अंडरग्राउंड हुए जॉर्ज फर्नांडीज को सरकारी नुमाइंदों ने बहुत खोजा लेकिन वह नहीं मिले।
आखिरकार जब एक साल के बाद जून 1976 में जॉर्ज फर्नांडीज को गिरफ्तार किया गया तो उन पर बेहद गंभीर आरोप लगे। आरोप था डायनामाइट जैसे विस्फोटक रखने, इसका इस्तेमाल करके रेल की पटरियां और अन्य जगहों पर धमाकों की साजिश रचने और इस तरह से तख्तापलट करने का। जॉर्ज फर्नांडीज के साथियों ने डायनामाइट खरीदने की बात स्वीकार भी की। इतना ही नहीं, उन्होंने तो यह भी माना कि उन्हें इसका विस्फोट करके उदाहरण भी दिखाया गया था। यही केस बड़ौदा डायनामाइट केस के नाम से मशहूर हुआ, जिसके चलते जॉर्ज फर्नांडीज भी खूब मशहूर और बदनाम हुए। आइए इसी केस के बारे में जानते हैं।
पादरी के परिवार से आने वाले जॉर्ज फर्नांडीज समाजवादी विचारधारा के नेता थे। महाराष्ट्र की राजनीति मुंबई में एस के पाटिल जैसे नेता को चुनौती देने वाले फर्नांडीज बहुत कम समय में मशहूर हो गए थे। ट्रेड यूनियन की राजनीतिक करते-करते वह मजदूरों के नेता हो गए थे। 1974 में उन्हीं की अगुवाई में देशव्यापी रेल हड़ताल हुई थी। जून 1975 में इमरजेंसी लगी तो दिल्ली में मौजूद चंद्रशेखर ने फोन करके जॉर्ज फर्नांडीज को फोन किया। फर्नांडीज ओडिशा में थे। चंद्रशेखर ने कहा कि नेता पकड़े जा रहे हैं। फर्नांडीज समझ गए और पुलिस के आने से पहले ही फरार हो गए। वहीं से भागे तो तमिलनाडु गए। कभी बिहार जाते तो कभी गुजरात।
इंदिरा गांधी की सभा में होना था धमाका
इसी क्रम में जब वह गुजरात पहुंचे थे तो उसी बीच उनकी टीम ने फैसला किया कि जो डायनामाइट जुटाया गया है उससे इंदिरा गांधी की सभा में धमाका किया जाए। यह सभा बड़ौदा में होनी थी और धमाके के लिए टॉयलेट को चुना गया था। हालांकि, धमाका हो पाता इससे पहले ही बिहार में फर्नांडीज के कुछ साथी पकड़े गए। खुद फर्नांडीज पकड़े गए तो कलकत्ता से, जहां वह सिख बनकर छिपे हुए थे। दिल्ली लाकर पेशी हुई तो कोई वकील उनका केस लेने को ही तैयार नहीं था। इसी केस में वकील बनकर आए स्वराज कौशल और सुषमा स्वराज। तब दोनों की शादी नहीं हुई थी। इन दोनों ने न सिर्फ केस लड़ा बल्कि हर कदम पर फर्नांडीज का साथ दिया।
सड़क मार्ग और रेलमार्ग पर बने पुलों को बम से उड़ा देने की साजिश में गिरफ्तार किए गए जॉर्ज फर्नांडीज का केस सीबीआई को सौंप दिया गया था। दरअसल, जून में इमरजेंसी लगने के बाद जुलाई 1975 में जॉर्ज फर्नांडीज अलग-अलग राज्यों में घूमते रहते थे। उनके खिलाफ दायर हुई चार्जशीट में सीबीआई ने कहा कि इस केस में वही मास्टरमाइंड हैं। उनके अलावा कुल 24 आरोपी और थे। आरोपों के मुताबिक, जुलाई में अहमदाबाद पहुंचे जॉर्ज फर्नांडीस ने अपने साथियों से सीक्रेट मीटिंग की और सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए आपराधिक गतिविधियां करने का फैसला किया। चार्जशीट के मुताबिक, इन लोगों ने डायनामाइट की छड़ें, डेटोनेटर और फ्यूज वायर जैसी चीजें खरीदने की योजना बनाई। भारत पटेल नाम से एक शख्स ने इन हलोल में इन लोगों को डेमो भी दिखाया।
क्या था फर्नांडीज का जवाब?
चार्जशीट में कहा गया कि डेमो देखने के बाद जॉर्ज फर्नांडीज संतुष्ट थे। इसके बाद इन लोगों ने बम धमाके करने की योजना बनाई। इसी में कहा गया कि इन लोगों ने 10 बोरे भरकर डायनामाइट खरीदा, 200 डेटोनेटर लिए और फ्यूज वायरल के 8 बंडल खरीदे। इतना ही नहीं, इन चीजों को देश के अलग-अलग हिस्सों में भेज दिया गया और इन्हीं का इस्तेमाल करके मुंबई में एक धमाका भी किया गया।
इसी बीच बड़ौदा की पुलिस को एक छापेमारी के दौरान यह विस्फोटक सामग्री मिल गई। फर्नांडीज और उनकी 22 साथी देश के अलग-अलग हिस्सों से गिरफ्तार कर लिए गए और सबको तिहाड़ जेल भेज दिया गया। हालांकि, कोर्ट में अपने बचाव में जॉर्ज फर्नांडीज ने कहा कि उन्होंने ऐसी कोई साजिश नहीं रची और यह सब मनगढ़ंत कहानी है। उन्होंने कहा, 'मैंने फैसला किया था कि अन्याय का विरोध करना है और तानाशाही के खिलाफ लड़ना है लेकिन मैंने कभी किसी को मारने या इस तरह का काम करने के बारे में नहीं सोचा।'
हालांकि, जॉर्ज फर्नांडीज के साथ काम करने वालों ने यह बात जरूरी मानी की डायनामाइट खरीदी गई थी। बाद में जब कांग्रेस सत्ता से बाहर हुई तो मोरारजी देसाई ने जॉर्ज फर्नांडीज समेत अन्य आरोपियों के खिलाफ चल रहे इस मुकदमे को वापस ले लिया। रोचक बात है कि जॉर्ज फर्नांडीज ने जेल में रहते हुए साल 1977 का लोकसभा चुनाव लड़ा था। उन्होंने बिहार की मुजफ्फरपुर सीट से पर्चा भरा और जेल से ही चुनाव भी जीत गए।
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