जम्मू और कश्मीर में सुरक्षाबल खुफिया इनपुट की कमी से जूझ रहे हैं। 9 मार्च को केंद्रीय गृह सचिव गोविंद मोहन की अध्यक्षता में सुरक्षा समीक्षा की एक अहम बैठक हुई थी। बैठक में यह मुद्दा सामने उभरकर आया था कि खुफिया सूचनाएं कम मिल रही हैं। सुरक्षाबलों को बैठक में निर्देश दिए गए थे कि वे स्थानीय स्तर पर खुफिया तंत्र तैयार करें, जिससे अहम जानकारियों तक उनकी पहुंच हो सके।
गृहमंत्रालय की बैठक में निर्देश दिए गए हैं कि स्थानीय समूहों के साथ सुरक्षाबल घुलें-मिलें, रणनीति में बदलाव करें, मैत्रिपूर्ण संबंध बनाएं, जिससे इंटेलिजेंस इनपुट से जुड़ी चुनौतियां खत्म हो सकें। गृहमंत्रालय की बैठक में यह मुद्दा प्रमुखता से उठा था। बैठक में बीते 3 महीनों का जिक्र हुआ, जब ये परेशानियां ज्यादा बढ़ गईं।
गृहमंत्रालय की बैठक में क्या-क्या चर्चा हुई?
केंद्रीय गृह सचिव की बैठक में CRPF, BSF, NIA, IB और जम्मू-कश्मीर पुलिस के महानिदेशक और दिग्गज सैन्य अधिकारी भी मौजूद रहे। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक यह बैठक करीब 5 घंटे तक चली। खुफिया एजेंसियों के सीनियर अधिकारियों ने स्थानीय पुलिस और अर्ध सैनिक बलों से आदिवासी समुदायों के साथ बेहतर रिश्ते बनाने का सुझाव दिया है।
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खुफिया अधिकारियों का कहना है कि 2 खास समुदाय ज्यादा वक्त जंगल में बिताते हैं। उनकी आतंकी गतिविधियों पर नजर हो सकती है, संदिग्ध घटनाओं से जुड़ी जानकारियां वे समय से दे सकते हैं। आतंकी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए जंगली इलाकों में कई CCTV कैमरे इंस्टाल किए गए हैं। संदिग्धों पर बारीकी से नजर रखने के निर्देश दिए गए हैं।
आतंकियों के लिए पनाहघर बने जंगल
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि जैश-ए-मोहम्मद (JeM), लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और हिजबुल मुजाहिदीन (HM) से जुड़े 60 विदेशी आतंकवादी जंगलों में सक्रिय हैं। इन इलाकों में पाकिस्तान आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा दे रहा है, हथियार मुहैया करा रहा है।
विदेशी आतंकवादियों में, जैश-ए-मोहम्मद के 21, लश्कर के 35 और हिजबुल मुजाहिदीन के तीन आतंकवादी हैं। अभी तक, स्थानीय आतंकवादियों की संख्या बहुत कम है। जम्मू में केवल 3 और कश्मीर में 14 हैं। जम्मू-कश्मीर में 77 आतंकवादी सक्रिय हैं, जो पिछले साल की तुलना में लगभग 20 प्रतिशत कम है।
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कौन से इलाके ज्यादा संवेदनशील हैं?
पुंछ, राजौरी और जम्मू में सुरक्षाबलों पर आतंकी घात लगाए बैठे हैं। हाल के महीनों में सुरक्षाबलों पर हमले बढ़े हैं। सुरक्षा अधिकारियों का कहना है कि आतंकी घुसपैठ, फंडिंग और रिमोट इलाकों में सुरक्षाबलों की कम तैनाती बड़ी चुनौती हैं। अगर इन इलाकों में खुफिया इनपुट मिले तो शायद बड़े हादसे टाले जा सकें।
कैसे खुफिया जानकारियों की हुई है किल्लत?
सुरक्षाबलों की बैठकों में यह मुद्दा उठता रहा है कि टेक्नोलॉजी पर बढ़ती निर्भरता का मतलब यह नहीं है कि जमीनी संपर्क कम कर दिया जाए। खुफिया जानकारियां, स्थानीय स्तर पर ही सटीक आ सकती हैं। बैठक में कठुआ जिले के मल्हार इलाके की नदी में मृत पाए गए तीन नागरिकों पर भी चर्चा हुई है।
शवों पर गोली के निशान भी नहीं थे। दावा किया गया कि खाई में गिरने से मौत हुई है। उनकी मौत में आंतकी एंगल क्या है, अगर इनपुट होता तो चीजें स्पष्ट होतीं। सेना के सामने आतंकियों से निपटने के अलावा, खुफिया जानकारियों को हासिल करने की बड़ी जिम्मेदारी है, जिसे बढ़ाने की जरूरत है।