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केरल की अदालत ने किस आधार पर सुनाई 141 साल की सजा? समझिए विस्तार से

केरल की एक अदालत ने रेप के एक मामले में दोषी को 141 साल की सजा सुनाई है।

Court Order

विदेश में कई जन्मों की भी सजाएं सुनाई जाती हैं, भारतीय न्याय व्यवस्था में ऐसी सजाएं नहीं हैं। (सांकेतिक तस्वीर- फ्री पिक)

किसी जुर्म की अधिकतम सजा हो क्या हो सकती है? भारतीय कानून के जानकार कहेंगे कि या तो किसी को फांसी होती है, या आजीवन कारावास। इससे ज्यादा सजा किसी को नहीं मिलती है। केरल की एक अदालत ने व्यक्ति की सामान्य जिंदगी से ज्यादा की सजा सुना दी है। केरल की एक जिला अदालत ने एक शख्स को अपनी सौतेली बेटी के साथ रेप करने के जुर्म में 141 साल की सजा सुनाई है। दोषी की पत्नी जब घर से बाहर जाती थी, वह अपनी बेटी के साथ बलात्कार करता था। जब सजा सुनाने की बारी आई तो जज ने उसे 141 साल की सजा सुना दी।

किस आधार पर सुनाई गई है ये सजा?
मंजेरी फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट के जज अशरफ ए.एम ने बेटी से रेप के दोषी शख्स को 141 साल की सजा सुनाई है। दोषी पर प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट(POCSO), भारतीय दंड संहिता (IPC) और जुवेनाइल जस्टिस अधिनियम की अलग-अलग धाराओं के आधार पर 141 साल की सजा सुनाई गई है। शख्स पर अदालत ने 7.85 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है। अदालत ने कहा है कि पीड़िता को मुआवजा भी दिया जाएगा। पीड़िता और दोषी दोनों तमिलनाडु के रहने वाले हैं। साल 2017 से ही बच्ची का सौतेला पिता, उसका रेप कर रहा था। बच्ची ने थक-हारकर अपनी मां से आपबीती बताई, जिसके बाद उसने पुलिस को इस वारदात की सूचना दी।

क्या किसी को मिल सकती है 141 की सजा?
नहीं। भारतीय कानून, आजीवन कारावास की बात करते हैं। भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 की धारा 4बी आजीवन कारावास की बात करती है। इस धारा के तहत, आजीवन कारावास का मतलब है कि जब तक व्यक्ति की प्राकृतिक तौर पर मौत न हो जाए, वह जेल में रहेगा। केरल के जिस व्यक्ति को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई है, उसे इसी आधार पर सजा सुनाई गई है। 

रेप, हत्या और आतंकवाद जैसे जघन्य मामलों में आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाती है। प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंस एक्ट(POCSO), 2012 की धारा 6 भी आजीवन कारावास की बात करती है। भारतीय दंड संहिता IPC की धारा 53 भी इसी मामले में बात करती है। इसमें भी आजीवन कारावास का मतलब, जीवन के अंत तक है। अलग बात है कि कुछ मामलों में कैदी के व्यवहार के आधार पर उसे पहले भी रिहा कर दिया जाता है। 

सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड (AoR) ने इस फैसले पर कहा है कि कानूनी नजरिए से समझें तो भारतीय न्याय प्रणाली में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है, जिसके आधार पर ऐसी सजा सुनाई जा सके। किसी व्यक्ति का 141 साल तक जीवित रहना ही दुर्लभ है। भारतीय दंड संहिता (IPC), भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) और साक्ष्य अधिनियम में इतनी लंबी सजा का जिक्र कहीं नहीं था। भारतीय न्याय संहिता (BNS) में भी कहीं नहीं लिखा है कि किसी को 141 साल की सजा सुना दी जाए।

फिर कोर्ट ने क्यों सुनाई सजा?
एडवोकेट विशाल अरुण मिश्र बताते हैं कि ऐसे फैसले दुर्लभ हैं। अगर जज ऐसे फैसले सुनाते हैं तो इसका मतलब होता है कि वे आजीवन कारावास की बात कर रहे हैं। ऐसी सजा में दोषी व्यक्ति का जेल से बाहर आना मुश्किल होता है। यह सजा आजीवन कारावास की है, जिसे 141 साल कहकर सुना दिया गया है। 

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