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जिन्हें हार के बाद भी सोनिया ने गृह मंत्री बनाया, कहानी उन शिवराज पाटिल की

दिग्गज कांग्रेस नेता शिवराज पाटिल को इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और बाद में सोनिया गांधी का बेहद भरोसेमंद माना जाता था। यही कारण था कि हार के बाद भी कांग्रेस ने उनका कद कभी कम नहीं होने दिया। 91 साल की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया है।

Shivraj Patil News.

पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री शिवराज पाटिल। (AI-generated image)

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दिग्गज कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री शिवराज पाटिल का शुक्रवार सुबह महाराष्ट्र के लातूर में निधन हो गया। 91 वर्षीय शिवराज सिंह पाटिल बीमार चल रहे थे। उन्होंने अपने गृह जनपद लातूर स्थित अपने आवास 'देवघर' में आखिरी सांस ली। उनके निधन पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, पीएम मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी और महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस समेत देशभर के नेताओं ने शोक व्यक्त किया। शनिवार को शिवराज पाटिल का अंतिम संस्कार होगा।

 

शिवराज पाटिल का सियासी करियर करीब पांच दशक का था। इस दौरान उन्होंने महाराष्ट्र से केंद्र तक की सरकार में कई अहम जिम्मेदारियां निभाई। उनका जन्म 12 अक्टूबर 1935 को महाराष्ट्र के लातूर जिले में हुआ था। उनके गांव का नाम चकुर है। इस वजह से उनका पूरा नाम शिवराज पाटिल चकुरकर था। शिवराज पाटिल ने हैदराबाद की उस्मानिया विश्वविद्यालय और बॉम्बे विश्वविद्यालय से पढ़ाई की। सियासी सफर लातूर नगर पालिका की राजनीति से शुरू हुआ। 1966 से 1970 तक लातूर नगर पालिका के अध्यक्ष रहे।

 

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नगर पालिका से पार्लियामेंट तक का सियासी सफर

1972 से 1980 तक पाटिल दो बार लातूर विधानसभा से चुनाव जीते। महाराष्ट्र सरकार में उन्हें उप मंत्री बनाया गया। विधानसभा उपाध्यक्ष और अध्यक्ष जैसे अहम पदों की जिम्मेदारी भी संभाली। 1980 में शिवराज पाटिल ने पहली बार लोकसभा चुनाव जीता। 1999 तक वह लगातार सात बार सांसद बने। 

 

इंदिरा गांधी सरकार: शिवराज पाटिल को इंदिरा गांधी की सरकार में रक्षा राज्य मंत्री की जिम्मेदारी मिली। बाद में उन्हें वाणिज्य मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार मिला। इसके बाद भी उन्हें कई अहम मंत्रालयों की जिम्मेदारी मिली। 1983 से 1986 तक पाटिल सीएसआईआर इंडिया के उपाध्यक्ष रहे।  

 

राजीव गांधी सरकार: राजीव गांधी सरकार में भी शिवराज पाटिल की अहमियत नहीं घटी। उन्हें रक्षा उत्पाद, कार्मिक, और नागरिक उड्डयन और पर्यटन मंत्रालय की जिम्मेदारी मिली।

हार के बाद भी कांग्रेस ने बनाया गृह मंत्री

शिवराज पाटिल साल 1991 से 1996 तक लोकसभा के 10वें अध्यक्ष रहे। 1992 में पाटिल ने ही उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार की शुरुआत की थी। साल 2004 में शिवराज पाटिल को पहली बार हार का सामना करना पड़ा। लातूर संसदीय सीट पर बीजेपी की रूपाताई पाटिल निलंगेकर ने उन्हें शिकस्त दी थी। हार के बावजूद कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा भेजा और केंद्र में गृह मंत्री जैसा अहम पद सौंपा। 2008 में मुंबई आतंकी हमले के चार दिन बाद शिवराज पाटिल को गृह मंत्री के पद से अपना इस्तीफा देना पड़ा था। 2010 में कांग्रेस सरकार ने उन्हें पंजाब का राज्यपाल बनाया। 2015 तक शिवराज पाटिल पंजाब के राज्यपाल और चंडीगढ़ के प्रशासक रहे।

बार-बार शूट बदलना पड़ा भारी, देना पड़ा इस्तीफा

शिवराज पाटिल के बतौर गृह मंत्री रहते देश कई बड़े आतंकी हमलों का गवाह बना। 2006 में मालेगांव बम धमाका, 2008 के दिल्ली सीरियल ब्लास्ट और 26/11 मुंबई हमले के बाद उनकी चौतरफा आलोचना होने लगी। खासकर तब जब वह बार-बार कपड़े बदलकर प्रेस के सामने आने लगे। 

 

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इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक 13 सितंबर 2008 को दिल्ली सीरियल ब्लास्ट में 30 लोगों की जान गई। शाम साढ़े छह बजे तत्कालीन गृह मंत्री शिवराज पाटिल सफेद सूट पहनकर कांग्रेस कार्य समिति की मीटिंग में पहुंचे। कुछ देर बाद मीडिया के सामने काला सूट पहने दिखे। रात साढ़े 10 बजे घटनास्थल का दौरा किया। यहां एक अन्य सफेद सूट पहन रखा था।  चार घंटे में तीन बार शूट बदलने पर पूरे देश में उनकी जमकर आलोचना हुई। अपने बचाव में शिवराज पाटिल ने कहा था कि मेरी नीतियों की आलोचना कीजिए, मेरे कपड़ों की नहीं।

बीजेपी की टिकट पर बहू ने लड़ा था विधानसभा चुनाव

शिवराज पाटिल अपने पीछे बेटे शैलेश पाटिल, बहू अर्चना और दो पोतियों को छोड़ गए हैं। पिछले साल पाटिल की बहू अर्चना ने बीजेपी के टिकट पर लातूर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था।  हालांकि उन्हें 7398 मतों से हार का सामना करना पड़ा था। कांग्रेस प्रत्याशी अमित देशमुख ने बाजी मारी थी। अमित महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री विलास राव देशमुख के बेटे हैं और फिल्म अभिनेता रितेश देशमुख के भाई हैं। शिवराज पाटिल ने इसी साल मार्च में अपने परिवार के साथ नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात की थी।

 

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