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'सालों तक आतंकवादी काम पर विचार करना भी आतंकवाद में आता है', दिल्ली HC

अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि अपीलकर्ता अल-कायदा लोगों को हथियार का प्रशिक्षण देने के लिए पाकिस्तान भेजने के लिए जिम्मेदार है।

Delhi high court

दिल्ली हाई कोर्ट। फाइल फोटो।

दिल्ली हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि सालों तक आतंकवादी कृत्य पर विचार करना भी आतंकवादी कृत्य माना जाएगा, भले ही उसे अंजाम न दिया गया हो। हाई कोर्ट की खंडपीठ ने यह फैसला भारतीय उपमहाद्वीप में अल-कायदा के एक सदस्य को गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत दोषी ठहराए जाने के खिलाफ अपील पर सुनवाई करने के दौरान दिया। 

अदालत ने 23 दिसंबर के अपने आदेश में कहा, 'यूएपीए की धारा 15 के तहत 'आतंकवादी कृत्य' की परिभाषा में स्पष्ट रूप से 'आतंकवाद फैलाने के इरादे से', किसी भी अन्य तरीके से, चाहे वह किसी भी प्रकृति का हो या आतंक फैलाने की संभावना हो, शामिल है। ऐसी अभिव्यक्ति को केवल तत्काल आतंकवादी कृत्य से ही नहीं जोड़ा जाएगा, बल्कि इसमें ऐसे कृत्य भी शामिल होंगे जो कई सालों से विचारा किए गए हो सकते हैं और कई सालों के बाद प्रभावी हो सकते हैं।'

अपीलकर्ता ने लश्कर-ए-तैयबा प्रमुख से मुलाकात की थी

अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि अपीलकर्ता अल-कायदा लोगों को हथियार का प्रशिक्षण देने के लिए पाकिस्तान भेजने के लिए जिम्मेदार है। साथ ही आरोप लगाया कि पाकिस्तान की अपनी यात्रा के दौरान, अपीलकर्ता ने लश्कर-ए-तैयबा के प्रमुख और जमात-उद-दावा के प्रमुख से मुलाकात की थी। साल 2015 में, आरोपी अपीलकर्ता ने बेंगलुरु का दौरा किया था। इस दौरान उसने एक दोषी आतंकी से मुलाकात की थी और दोनों ने मिलकर अल-कायदा की आगे की योजना और मकसद पर चर्चा की थी। 

अभियोजन पक्ष ने कहा कि अपीलकर्ता ने देश के खिलाफ भड़काऊ भाषण भी दिए और अपने भाषणों में 'जिहाद' का प्रचार किया। गवाहों ने कोर्ट के सामने कहा कि उसने इस आशय के भड़काऊ भाषण दिए कि आरएसएस, बीजेपी और विश्व हिंदु परिषद ने मुसलमानों के खिलाफ साजिश रची है और मुसलमानों को भी एकजुट होना चाहिए।

जस्टिस प्रतिभा सिंह और अमित शर्मा की खंडपीठ का फैसला 

जस्टिस प्रतिभा एम सिंह और अमित शर्मा की खंडपीठ ने कहा कि यूएपीए की धारा 18 आतंकवादी कृत्यों की तैयारी को दंडित करती है, भले ही किसी विशिष्ट आतंकवादी कृत्य की पहचान न की गई हो। 

पीठ ने कहा, 'आतंकवादी कृत्यों को अंजाम देने की योजना कई सालों तक चल सकती है और यूएपीए की धारा 18 के तहत, कानून का उद्देश्य आतंकवादी कृत्यों के लिए ऐसी तैयारी को बताता है, यहां तक ​​कि उन मामलों में भी जहां किसी विशिष्ट आतंकवादी कृत्य की पहचान नहीं की गई है।' 

पीठ ने क्या कहा?

पीठ ने आगे कहा, 'इसके अलावा निर्दोष युवाओं का ब्रेनवॉश करने के लिए दिए गए भाषणों और देश के खिलाफ गैरकानूनी और अवैध कृत्यों को करने के लिए युवाओं को भर्ती करने की कोशिशों को इस आधार पर पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता है कि कोई विशिष्ट आतंकवादी कृत्य नहीं किया गया है।'

कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता के पासपोर्ट प्राप्त करने वाले और पाकिस्तान जाने वाले मुख्य आरोपी के साथ संबंध को दर्शाने के लिए पर्याप्त सबूत हैं। साथ ही कहा कि अपीलकर्ता, सह-आरोपियों के साथ, भड़काऊ भाषण देने, भड़काऊ सामग्री का प्रसार करने, पाकिस्तान में संगठनों के साथ संबंध रखने, आतंकवादी कृत्यों के लिए लोगों की भर्ती करने, भारत और उसके राजनीतिक नेताओं के खिलाफ नफरत भड़काने में शामिल एक बड़े नेटवर्क का हिस्सा है।

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