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202 एकड़ में फैले दिल्ली के तीन 'कूड़े के पहाड़' की कहानी क्या है?

दिल्ली में ओखला, भलस्वा और गाजीपुर में लैंडफिल साइट बनी हैं। यहां हर दिन 3 हजार टन से ज्यादा कचरा डंप किया जाता है। इस कारण यहां कूड़े का पहाड़ बन गया है।

ghazipur landfill site

गाजीपुर लैंडफिल साइट। (File Photo Credit: PTI)

करीब 1,483 वर्ग किलोमीटर में फैली दिल्ली में 202 एकड़ इलाका ऐसा है, जहां 'कूड़े का पहाड़' बने हुए हैं। राजधानी दिल्ली में दशकों पहले बने यह कूड़े के पहाड़ बड़ी समस्या है। अब सरकार बदल गई है और फिर दावा किया गया है कि इन कूड़े के पहाड़ को हटा दिया जाएगा।


मंगलवार को पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने दावा किया कि भलस्वा लैंडफिल साइट को मार्च 2026 तक साफ कर दिया जाएगा। उन्होंने यह भी दावा किया कि अब कोई नया कूड़े का पहाड़ नहीं बनेगा।


सिरसा ने दावा करते हुए कहा, 'भलस्वा लैंडफिल में कूड़े के ढेर की ऊंचाई घटकर 53 मीटर हो गई है। पहले यह 60 मीटर थी। दिसंबर 2025 तक इतना कचरा हटा दिया जाएगा कि यह दूर से दिखाई नहीं देगा। मार्च 2026 तक इस साइट को पूरी तरह से साफ कर दिया जाएगा।'

 

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दिल्ली में तीन 'कूड़े के पहाड़'!

राजधानी दिल्ली में तीन लैंडफिल साइट हैं। यह वह जगहें जहां कूड़ा-कचरा डंप किया जाता है। भलस्वा लैंडफिल साइट को 1994 में बनाया गया था। यह 70 एकड़ में फैली थी। हालांकि, पर्यावरण मंत्री मनजिंदर सिंह सिरसा ने दावा किया है कि एलजी वीके सक्सेना ने कचरे को साफ करने की परियोजना शुरू की थी। इस साइट से 35 फीसदी कचरा हटा दिया गया है।


दूसरी साइट गाजीपुर में है, जिसे 1984 में बनाया गया था। यह साइट भी 70 एकड़ में फैली है। सबसे ज्यादा कचरा यहीं पर है। 2019 में गाजीपुर में कूड़े का पहाड़ 65 मीटर ऊंचा हो गया था। यानी, यहां कूड़े का पहाड़ इतना ऊंचा हो गया था कि यह कुतुब मीनार से मात्र 8 मीटर छोटा रह गया था। तीसरी साइट ओखला में है जो 62 एकड़ में फैली हुई है। इन तीनों साइटों में लाखों टन का कूड़ा जमा हुआ है।

 

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दिल्ली में कितनी बड़ी है कूड़े की समस्या?

दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) की रिपोर्ट के मुताबिक, राजधानी में हर दिन 11,342 टन कचरा निकलता है। इसका मतलब हुआ कि दिल्ली में रहने वाला हर व्यक्ति रोजाना आधा किलो कचरा पैदा करता है।


डीपीसीसी की रिपोर्ट बताती है कि हर दिन निकलने वाले 11,342 टन कचरे में से 7,542 टन कचरा ही प्रोसेस होता है। यानी, इतने कचरे को या तो रिसाइकिल कर लिया जाता है या इससे बिजली बना ली जाती है। मगर बाकी बचा हुआ 3,800 टन कचरा हर दिन इन तीन लैंडफिल साइट में डंप हो जाता है।


अब जरा सोचिए कि हर दिन 3,800 टन कचरा इन लैंडफिल साइट में किया जाएगा तो सालभर में 14 लाख टन कचरा यहां जमा हो जाएगा। अब इस कचरे का सही तरह से निपटान हो नहीं पाता है, जिस कारण कचरा यहां जमा होता रहता है।


पिछले साल अगस्त में आई DPCC की रिपोर्ट बताती है कि जुलाई 2019 तक इन तीनों लैंडफिल साइट में 2.8 करोड़ टन कचरा जमा हुआ था। अक्टूबर 2019 से अप्रैल 2024 के बीच यहां 1.31 करोड़ टन कचरा और जमा हो गया। 

 

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कचरे के निपटारे के लिए क्या कर रही सरकार

दिल्ली में कूड़े के पहाड़ को हटाने के लिए सरकार लंबे वक्त से काम कर रही है। सरकार इन लैंडफिल साइट को साफ करने की अलग-अलग डेडलाइन बताती है।


DPCC ने अपनी रिपोर्ट में इन तीनों साइटों को साफ किए जाने का टारगेट दिसंबर 2027 रखा है। हालांकि, पिछले साल फरवरी में सरकार ने ओखला साइट को दिसंबर 2024, भलस्वा को दिसंबर 2025 और गाजीपुर को दिसंबर 2026 तक हटाने का दावा किया था।


DPCC का अनुमान है कि इन तीनों साइटों को साफ करने पर 250 करोड़ रुपये खर्च होंगे। ओखला साइट पर 50 करोड़, भलस्वा पर 75 करोड़ और गाजीपुर पर 125 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।


पिछले साल दिल्ली के तहखंड इलाके में पहली इंजीनियर लैंडफिल साइट खोली गई थी। 15 एकड़ में फैली इस साइट में सालाना 9 लाख टन कचरे का निपटान किए जाने का दावा है। 

 

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कितना खतरनाक है कूड़ा-कचरा?

भारत में हर साल कचरा बढ़ता ही जा रहा है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट बताती है कि 2019-20 में देश में 1.50 लाख टन कचरा पैदा हुआ था। 2020-21 में यह बढ़कर 1.60 लाख टन हो गया। 2021-22 में हर दिन 1.70 लाख टन से ज्यादा कचरा पैदा हुआ था।


CPCB की रिपोर्ट बताती है कि 2021-22 में हर दिन जो 1.70 लाख टन से ज्यादा कचरा पैदा हुआ था, उसमें से 91,512 टन कचरे को प्रोसेस कर लिया गया था। इसका मतलब हुआ कि बाकी बचा हुआ कचरा या तो लैंडफिल साइट में डंप कर दिया गया या फिर यह कहां चला गया, पता नहीं।


वर्ल्ड बैंक की एक रिपोर्ट बताती है कि 2020 में हर दिन दुनियाभर में 2.24 अरब टन कूड़ा पैदा हुआ था। वर्ल्ड बैंक का अनुमान है कि जिस तेजी से आबादी बढ़ रही है, उस हिसाब से 2050 तक हर दिन 3.88 अरब टन कचरा पैदा होने की संभावना है। 


साइंस जर्नल लैंसेट की एक स्टडी बताती है कि लैंडफिल साइट के आसपास 5 किलोमीटर के दायरे में रहने वाले लोगों में टीबी, अस्थमा और सांस से जुड़ी बीमारियां होने का खतरा बढ़ जाता है।

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