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सेहत ही नहीं, जेब पर भी असर डाल रहा खाने वाला तेल, समझिए पूरा गणित

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खाने में 10 फीसदी तेल कम करने की सलाह दी है। वो इसलिए ताकि मोटापा न बढ़े। ज्यादा तेल खाने से सेहत पर बुरा असर पड़ता है। मगर ये जेब पर भी असर डालता है। वो कैसे? समझते हैं।

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प्रतीकात्मक तस्वीर। (AI Generated Image)

दुनियाभर में मोटापे की बढ़ती समस्या को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10% कम तेल खाने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि बढ़ते वजन से कई सारी स्वास्थ्य समस्याएं भी हो सकती हैं। 


पीएम मोदी ने रविवार को 'मन की बात' में लोगों से कम तेल खाने की सलाह दी। सोमवार को उन्होंने 10 हस्तियों को खाने में 10 फीसदी तेल कम करने का चैलेंज भी दिया। इसमें जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला, कारोबारी आनंद महिंद्रा और साउथ एक्टर मोहनलाल शामिल हैं।

 

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भारत में कितना बढ़ रहा मोटापा?

साइंस जर्नल लैंसेट की स्टडी बताती है कि 1990 तक भारत में 24 लाख महिलाएं और 11 लाख पुरुष मोटापे से जूझ रहे थे। 2022 तक 44 लाख महिलाएं और 26 लाख पुरुष मोटापे की समस्या से जूझ रहे है।


चिंता बढ़ाने वाली बात ये है कि मोटापा अब बच्चों को अपना शिकार बना रहा है। 1990 तक भारत में 4 लाख बच्चे ही ऐसे थे जो मोटापे से जूझ रहे थे। ये वो थे जिनकी उम्र 5 से 19 साल थी। 2022 के आखिर तक करीब 1.25 करोड़ बच्चे मोटापे का सामना कर रहे हैं। इनमें 73 लाख लड़के और 52 लाख लड़कियां हैं।

कितना तेल खा रहे हैं हम?

चीन के बाद भारत दूसरे नंबर पर है, जहां तेल बहुत ज्यादा खाया जाता है। हालांकि, अगर इसे हर व्यक्ति के हिसाब से निकाला जाए तो भारत सबसे आगे है। यानी, भारतीयों को तेल से भरा हुआ खाना ज्यादा स्वादिष्ट लगता है।


एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में हर व्यक्ति सालभर में 20 किलो तेल खा जाता है। जबकि, चीन में हर व्यक्ति औसतन 10.94 किलो तेल खा जाता है। जबकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) हर व्यक्ति को सालभर में औसतन 12 किलो तेल खाने की सलाह देता है। इसका मतलब हुआ कि भारतीय कहीं ज्यादा तेल खा रहे हैं।


हालांकि, इसके बावजूद भारत की तुलना में चीन में मोटापे से जूझ रहे लोगों की संख्या कहीं ज्यादा है। भारत में मोटापे से लगभग 7 करोड़ लोग जूझ रहे हैं, जबकि चीन में ऐसे लोगों की संख्या 14 करोड़ है।

 

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कहां से आता है तेल?

दुनियाभर में 22.2 करोड़ मीट्रिक टन से ज्यादा खाने के तेल की खपत होती है। 2028 तक ये बढ़कर 28 करोड़ मीट्रिक टन तक पहुंचने की उम्मीद है। खाने के तेल की सबसे ज्यादा खपत चीन के बाद भारत में होती है। चीन में 2023-24 में 3.61 करोड़ मीट्रिक टन तेल की खपत हुई थी। जबकि, भारत में 2.5 करोड़ मीट्रिक टन तेल की खपत हुई थी।


1950-60 में भारत में प्रति व्यक्ति खाने के तेल की खपत 2.9 किलो थी। अब ये बढ़कर 20 किलो तक पहुंच गई है। भारतीयों की खाने के तेल की जरूरतें दूसरे देशों से पूरी होती है। भारत अपनी जरूरत का करीब 55 से 60 फीसदी तेल बाहर से मंगाता है। 


बीते दो दशकों में खाने के तेल के आयात पर भारत का खर्च 13 गुना तक बढ़ गया है। 2023-24 में भारत ने 1.32 लाख करोड़ का तेल आयात किया था। उस साल भारत ने 1.59 करोड़ टन खाने के तेल का आयात किया था। 2022-23 की तुलना में ये 3 फीसदी कम था।


भारत में ही खाने के तेल का उत्पादन बढ़ाने के लिए 2022-23 में एक नया मिशन शुरू किया था। इस मिशन के जरिए 2030-21 तक तेल के उत्पादन को 6.97 करोड़ टन तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया है। इस पर 10,103 करोड़ रुपये खर्च होंगे।

कितना तेल सही?

दिल्ली एम्स के डॉ. नीरज निश्चल ने न्यूज एजेंसी PTI से कहा, 'खाने के तेल में अनसैचुरेटेड फैट होता है, इसलिए माना जाता है कि अगर इसे सही मात्रा में लिया जाए तो दिल और मेटाबॉलिज्म अच्छा रहता है। हालांकि, इस तेल में कैलोरी बहुत ज्यादा होती है।'


डॉक्टरों का कहना है कि अगर ये सोचकर हम इनका ज्यादा सेवन करते हैं कि ये सेहत के लिए अच्छे हैं तो इससे कैलोरी की मात्रा बढ़ सकती है, जिससे मोटापा बढ़ सकता है।


दिल्ली के फोर्टिस अस्पताल से जुड़े डॉ. प्रदीप कुमार जैन ने कहा कि तेल में प्रति ग्राम कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन की तुलना में ऊर्जा ज्यादा होती है, इसलिए अगरइसे ज्यादा मात्रा में लिया जाता है तो इससे मोटापा बढ़ सकता है।


मेदांता अस्पताल में कार्डियोलॉजी डिपार्टमेंट के प्रमुख डॉ. प्रवीण चंद्रा ने बताया, 'महिलाओं को हर दिन 5 से 6 चम्मच (200 से 240 कैलोरी) और पुरुषों को 6 से 7 चम्मच (240 से 280 कैलोरी) तेल खाने की सलाह दी जाती है।'

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