हर किसी के हिसाब से तैयार हो सकेगी दवा! बड़ी बीमारी से मिलेगा निजात?
Genome India Project भारत के लोगों की डीएनए सिक्ववेंसिंग करके उनके पर्सनलाइज्ड इलाज के जरिए हेल्थ सेक्टर में क्रांति लाने वाला साबित हो सकता है। इससे बीमारी की जल्दी पहचान के साथ साथ उसका सटीक इलाज संभव हो सकेगा।

प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: AI Generated
भारत सरकार एक ऐसे प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है जिसके जरिए आने वाले समय में हर किसी की शारीरिक संरचना को समझकर उसके हिसाब से इलाज किया जा सकेगा। इस प्रोजेक्ट का नाम है जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट (GIP)। यह प्रोजेक्ट भारत सरकार का एक बेहद अहम प्रोजेक्ट है, जिसका मकसद है भारत के लोगों की जेनेटिक विविधता (genetic diversity) को समझना और उसका पूरा नक्शा तैयार करना यानी कि उसकी मैपिंग करना। इस प्रोजेक्ट को विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अंतर्गत जैव प्रौद्योगिकी विभाग (Department of Biotechnology) की मदद से चलाया जा रहा है। इसमें देश के 20 से ज़्यादा वैज्ञानिक और एकडमिक संस्थान शामिल हैं।
मौजूदा वक्त में भारत की आबादी 140 करोड़ से ज़्यादा है, और जम्मू कश्मीर के पहाड़ी इलाकों से लेकर दक्षिण में समुद्र के किनारे पर बसे लोंगो और पूर्वोत्तर के लोगों तक यहां पर भौगोलिक परिस्थितियों में काफी अंतर देखने को मिलता है, इसीलिए यहां पर जेनेटिक डायवर्सिटी बहुत ज्यादा है। अब तक इस दिशा में बहुत ज्यादा काम नहीं हुआ था, लेकिन अब Genome India Project के ज़रिए भारत अपने लोगों की मैपिंग कर रह है।
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इस प्रोजेक्ट के पहले चरण में 83 अलग अलग समुदायों से आने वाले 10,000 लोगों के पूरे जीनोम (gene sequence) को इकट्ठा किया गया है और इन जानकारियों को एक बड़ी भारतीय जीनोम डाटाबेस के रूप में तैयार किया जा रहा है। इससे यह समझने में मदद मिलेगी कि किन बीमारियों की संभावना किस जनसमूह में अधिक है और किस व्यक्ति को कौन-सी दवा बेहतर तरीके से असर करेगी। इसके अलावा, यह प्रोजेक्ट भारत के इतिहास, पूर्वजों, और लोगों के माइग्रेशन को भी समझने में मदद करेगा।
GIP में भारत के 20 बड़े अकादमिक और अनुसंधान संस्थान शामिल हैं, जिनमें IISc बेंगलुरु, IITs, CSIR लैब्स, AIIMS जैसे प्रतिष्ठित संस्थान हैं। 100 से अधिक वैज्ञानिकों की एक टीम इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही है।
क्या होता है जीनोम?
जीनोम किसी भी जीव के डीएनए (DNA) में मौजूद सभी जीनों (genes) के बारे में पूरी जानकारी को कहा जाता है। डीएनए की संरचना चार न्यूक्लियोटाइड्स (nucleotides) से बनी होती है जिसमें एडेनिन (A), थायमिन (T), साइटोसिन (C), और ग्वानिन (G) शामिल होते हैं। ये लगभग 3 अरब (3 billion) न्यूक्लियोटाइड्स के अनुक्रम (sequence) में मौजूद होते हैं। इनका क्रम ही यह तय करता है कि व्यक्ति की कद-काठी, आंखें, बाल, त्वचा का रंग इत्यादि कैसा होगा।
खास बात यह है कि सभी इंसानों का डीएनए 99.9% एक जैसा ही होता है, केवल 0.1% जीनोम सिक्वेंसिंग में अंतर देखने को मिलता है और यही सभी इंसानों को एक-दूसरे से अलग बनाता है यानी कि यूनीक बनाता है। इसी अंतर की वजह से उनकी हाइट, चेहरे की बनावट, रंग और व्यवहार से लेकर यह भी तय होता है कि वह व्यक्ति किन रोगों के प्रति ज्यादा संवेदनशीलता होगा। किसी व्यक्ति के जीनोम में लगभग 30–40 लाख न्यूक्लियोटाइड्स होते हैं जो उन्हें दूसरों से अलग बनाते हैं।
इस प्रोजेक्ट में क्या है?
GIP के तहत वैज्ञानिकों ने उन लोगों की 'जर्मलाइन जीनोम' (germline genome) सिक्वेंसिंग की जिनका आनुवंशिक डेटा जन्म से नहीं बदला है। Germline genome का मतलब उस DNA से होता है जो जो हमें अपने माता-पिता से आनुवंशिक रूप से मिलता है और जो हमारी शारीरिक रचना और गुणों की बुनियाद बनाता है। इसके विपरीत, Somatic genome वह होता है जिसमें कि वातावरण इत्यादि की वजह से बदलाव या म्यूटेशन हो सकता है। जैसे कि सूरज की किरणों से स्किन सेल्स में बदलाव का होना। जर्मलाइन जीनोम के लिए सफेद रक्त कोशिकाओं (white blood cells) का इस्तेमाल किया गया क्योंकि ये कोशिकाएं डीएनए की संरचना को लंबे समय तक सुरक्षित रखती हैं।
इन आंकड़ों से वैज्ञानिक यह जान पाएंगे कि कोई व्यक्ति किन बीमारियों के प्रति अधिक संवेदनशील है, और उसके लिए कौन-सी दवाएं कारगर होंगी। इसका फायदा ‘पर्सनलाइज्ड मेडिसिन’ यानी वैयक्तिक चिकित्सा (individualized medicine) के क्षेत्र में होगा। मतलब यह है कि किसी शख्स की शारीरिक संवेदनशीलता के हिसाब से उसका इलाज किया जा सकेगा।
पर्सनलाइज्ड मेडिसिन का क्या मतलब है?
हर व्यक्ति के जीन में कुछ-कुछ अंतर होता है। इससे यह तय होता है कि किसी दवा का असर किस पर कैसा होगा। एक ही दवा किसी को पूरी तरह ठीक कर सकती है, लेकिन दूसरे पर असरहीन हो सकती है। GIP जैसे प्रोजेक्ट से यह समझा जा सकता है कि किसी व्यक्ति को कौन-सी दवा दी जानी चाहिए, और किन दवाओं से बचना चाहिए।
क्या समुदाय के बीमारी का भी पता लगेगा?
हां। इस प्रोजेक्ट के जरिए वैज्ञानिक यह भी पता लगा सकेंगे कि कौन-सी बीमारियां किसी खास समुदाय में अधिक पाई जाती हैं। जैसे भारत में डायबिटीज के मामले बहुत ज्यादा हैं। यह आनुवंशिक संरचना से जुड़ा हो सकता है। यदि वैज्ञानिक इस बात की पुष्टि कर पाते हैं, तो इससे न सिर्फ बेहतरीन दवाएं विकसित होंगी, बल्कि बीमारियों की जल्दी पहचान भी हो सकेगी।
जीनोम और बीमारी के बीच का संबंध
कुछ जीन ऐसे होते हैं जो किसी बीमारी के खतरे को बढ़ा सकते हैं। उदाहरण के लिए बीआरसीए जीन (BRCA gene) में बदलाव से महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। HLA-B27 जीन रूमेटॉयड आर्थराइटिस (rheumatoid arthritis) का कारण बनता है।
यदि समय रहते यह पता चल जाए कि किसी व्यक्ति में ऐसे जीन मौजूद हैं, तो शुरुआती जांच और इलाज से किसी व्यक्ति में उस बीमारी के गंभीर रूप लेने से बचा जा सकता है।
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भारत के लिए क्यों जरूरी था प्रोजेक्ट?
दुनिया भर में 20 साल पहले एक प्रोजेक्ट शुरू किया गया था जिसे ‘ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट’ कहा गया। इसमें इंसानों की पूरी डीएनए सीक्वेंसिंग की गई। लेकिन उसमें भारत से पर्याप्त डेटा नहीं लिया गया था। भारत की जनसंख्या विविधताओं से भरी है। यहां के क्षेत्र, भाषा, जाति, धर्म और सामाजिक स्थिति में बड़ा फर्क है। इसलिए भारत के लिए एक अलग जीनोम प्रोजेक्ट जरूरी था।
हेल्थ सेक्टर में क्या असर
अब तक, बीमारियों के इलाज में 'वन साइज फिट्स ऑल' का सिद्धांत अपनाया जाता रहा है, लेकिन अब जीनोम डेटा के आधार पर हर मरीज़ के लिए अलग और असरदार दवाएं बनाई जा सकेंगी।
इसके अलावा कई गंभीर बीमारियां जैसे कैंसर, डायबिटीज, हार्ट डिज़ीज़ आदि के लक्षण उस वक्त सामने आते हैं जब वह गंभीर रूप ले चुकी होती है। ऐसे में अगर व्यक्ति के जीनोम में ऐसी बीमारियों की प्रवृत्ति पहले ही दिख जाए, तो समय रहते सावधानी और रोकथाम संभव होगी।
दवा निर्माण की दिशा में भी फार्मा कंपनियां भारत के जीनोमिक डेटा के आधार पर देश के विशिष्ट समुदायों के लिए विशिष्ट दवाएं बनाई जा सकती हैं जो ज्यादा असरदार और सुरक्षित होंगी।
साथ ही सरकार जीनोम डेटा की मदद से यह भी जान सकेगी कि कौन से समुदाय या क्षेत्र विशेष के लोग किन विशिष्ट बीमारियों की चपेट में ज्यादा आते हैं और वहां खास स्वास्थ्य योजनाएं चलाई जा सकती हैं।
भारत में कुछ आनुवंशिक बीमारियां केवल विशेष समुदायों या क्षेत्रीय समूहों में ही पाई जाती हैं। जीनोमिक मैपिंग से इनका बेहतर अध्ययन और इलाज संभव होगा।
क्या हैं अन्य लाभ
स्वास्थ्य के क्षेत्र में लाभ के साथ साथ इसकी मदद से जनसंख्या के इतिहास का अध्ययन करने में भी मदद मिलेगी। यह जानने में मदद मिलेगी कि भारत में किस समुदाय का जन्म कहां हुआ और समय के साथ उनका माइग्रेशन किस पैटर्न पर हुआ। इसके अलावा कंकालों और प्राचीन जनजातियों से लिए गए डीएनए की तुलना से यह जाना जा सकता है कि हजारों साल पहले की मानव जातियां कैसी थीं।
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आगे का रास्ता
GIP की पहली रिपोर्ट Nature Genetics नाम की प्रसिद्ध वैज्ञानिक पत्रिका में छपी है। अब इसका विस्तृत विश्लेषण किया जा रहा है। अगले साल पूरे नतीजों को प्रकाशित किया जाएगा। आगे चलकर इस डेटाबेस में और लोगों को जोड़ा जाएगा ताकि एक व्यापक ‘जीन बैंक’ तैयार किया जा सके।
जीनोम इंडिया प्रोजेक्ट भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र में क्रांति लाने वाला कदम है। इससे न केवल चिकित्सा क्षेत्र में व्यक्तिगत रूप से इलाज उपलब्ध कराने की शुरुआत होगी, बल्कि दवाओं के विकास, बीमारी की पहचान और इलाज से जुड़ी पॉलिसी बनाने में भी बड़ा बदलाव आएगा। साथ ही, यह प्रोजेक्ट यह भी बताएगा कि भारतीय कौन हैं, कहां से आए हैं और उनके शरीर ने अपने पर्यावरण से कैसे तालमेल बिठाया है।
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