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Airport के पास ऊंची हुई बिल्डिंग तो तोड़ी जाएगी, नए नियम की तैयारी

अहमदाबाद में हुए प्लेन क्रैश के बाद एयरपोर्ट के आसपास की इमारतों और पेड़ को लेकर नए नियम बनाने की तैयारी हो रही है। अब स्थानीय अधिकारियों को अधिकार दिए जाएंगे।

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दिल्ली एयरपोर्ट, Photo Credit: PTI

हाल ही में गुजरात के अहमदाबाद में हुए प्लेन क्रैश ने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया है। इस घटना में यह देखा गया कि एक प्लेन एयरपोर्ट से उड़ते ही कुछ इमारतों पर जा गिरा। अब सिविल एविएशन मंत्रालय ने नए नियम (ड्राफ्ट) जारी किए हैं जिनके तहत एयरपोर्ट के आसपास की ऊंची इमारतों को तोड़ा जा सकता है और ऊंचे पेड़ों को काटा भी जा सकता है। मंत्रालय ने एयरक्राफ्ट (डिमॉलिशन ऑफ ऑब्सट्रक्शन) ड्राफ्ट रूल्स, 2025 जारी किए हैं जिन पर 21 दिन में आपत्ति जताई जा सकती है।

 

इन नियमों के तहत प्रशासन को अधिकार दिए जाएंगे हैं कि वे एयरोड्रम जोन में आने वाली इमारतों और पेड़ों को लेकर फैसले ले सकें और कार्रवाई कर सकें। एयरोड्रम के ऑफिसर-इन-चार्ज को अधिकार होगा कि वे तय सीमा से ज्यादा ऊंची इमारतों के मालिक को नोटिस भेज सकें। जिन इमारतों को नोटिस मिलेगा उन्हें दो महीने के अंदर बिल्डिंग के आकार और साइट प्लान के बारे में जानकारी देनी होगी। ऐसा न कर पाने की स्थिति में बिल्डिंग को तोड़ा जा सकता है या उसकी ऊंचाई कम की जा सकती है। 

 

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वेरिफिकेशन होगा, नोटिस मिलेगा

 

अधिकारियों को यह भी अधिकार होगा कि जिन इमारतों के मालिक को नोटिस दिया गया होगा, वे उनका फिजिकल वेरिफिकेशन भी कर सकें। हालांकि, यह वेरिफिकेशन दिन के उजाले में ही किया जाएगा और इसके बारे में बिल्डिंग के मालिक को सूचना भी दी जाएगी। अगर बिल्डिंग के मालिक इसमें सहयोग नहीं करते हैं तो संबंधित अधिकारी इसकी जानकारी डायरेक्टर जनरल ऑफ सिविल एविएशन (DGCA) को देंगे।

 

इन नियमों के मुताबिक, नियमों का उल्लंघन करने वाली बिल्डिंग या पेड़ के मालिक को नोटिस देकर कहा जाएगा कि वे खुद ही 60 दिन के अंदर विस्तृत जानकारी दें। इस 60 दिन को 60 और दिनों के लिए बढ़ाया भी जा सकता है। अगर किसी शख्स को उसकी इमारत गिराने के लिए कहा जाता है तो वह इस फैसले को भारतीय वायुयान अधिनियम, 2024 की धारा 33 के तहत चुनौती भी दे सकता है। 

 

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एयरोड्रम जोन क्या है?

 

किसी भी एयरपोर्ट के आसपास एक तय सीमा के क्षेत्र को एयरोड्रम जोन कहा जाता है। इसे एयरपोर्ट और एयर ट्रैफिक को ध्यान में रखकर तय किया जाता है। एयरपोर्ट की क्षमता और वहां उतरने वाले विमानों के आकार के हिसाब से यह जोन छोटा या बड़ा हो सकता है। यह जोन अलग-अलग देश में भी अलग-अलग हो सकता है। 

 

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