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टिपरालैंड: त्रिपुरा में फिर उठी मांग, दिल्ली में प्रदर्शन क्यों?

ग्रेटर टिपरालैंड की कवायद, त्रिपुरा में एक बार फिर शुरू हो गई है। अब टिपरा मोथा के कार्यकर्ता दिल्ली में धरने पर बैठने वाले हैं। पूर्वोत्तर में टिपरा मोथा और बीजेपी में टकराव भी बढ़ा है। ऐसा क्यों हुआ है, समझिए एक-एक बात।

Tipraland

टिपरालैंड का मुद्दा, टिपरा मोथा का चुनावी एजेंडा भी रहा है। (Photo Credit: TipraMotha/X)

त्रिपुरा में भारतीय जनता पार्टी की मु्श्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं। राज्य में सहयोगी दल टिपरा मोथा पार्टी ने केंद्र के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। टिपरा मोथा पार्टी के कार्यकर्ता 9 सितबर को दिल्ली के जंतर मंतर पर धरना देने का ऐलान किया है। टिपरा मोथा पार्टी के प्रमुख प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देबबर्मा हैं। वह शाही परिवार से आते हैं। अब इस प्रदर्शन का नेतृत्व वही कर रहे हैं। उन्होंने अपील की है कि त्रिपुरा की आदिवासी और स्थानीय संस्कृति बचाने के लिए लोग साथ आएं। 

त्रिपुरा की एनडीए सरकार दोहरे मोर्चे पर पर जूझ रही है। टिपरा मोथा और इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा, दोनों दलों की मांगें, अब बीजेपी के लिए मुश्किलें पैदा कर रही हैं। IPFT की मांग है कि टिपरालैंड को अलग स्वायत्तता दी जाए। अगरतला में IPFT की एक बैठक हुई थी। बैठक में कहा गया है जनजातियों में एक बार फिर पार्टी को बढ़त मिल रही है। यह पार्टी 23 अगस्त को अलग टिपरालैंड मांग दिवस के तौर पर मनाती है। दूसरी तरफ टिपरा मोथा भी अलग टिपरालैंड के लिए मुद्दे पर हंगामा कर रही है। 

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त्रिपुरा विधानसभा पर एक नजर

  • बीजेपी: 32 सीटें
  • CPI M: 11 सीटें
  • कांग्रेस: 3 सीटें
  • IPFT: 1 सीट
  • टिपरा मोथा पार्टी: 13 

त्रिपुरा का जनजातीय गणित क्या है?

त्रिपुरा में 60 विधानसभा सीटें हैं। 20 सीटें जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। भारतीय जनता पार्टी के पास 4 और टिपरा मोथा के पास 13 सीटें हैं। त्रिपुरा की 60 सदस्यीय विधानसभा में 20 सीटें जनजातियों के लिए आरक्षित हैं, जिनमें से बीजेपी के पास चार और टिपरा मोथा के पास 13 सीटें हैं। स्थानीय चुनाव और पार्टी के मूल एजेंडे पर एनडीए में टकराव देखने को मिल रहा है।

ग्रेटर टिपरालैंड की मांग अब क्यों? 

इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ़ त्रिपुरा (IPFT) टिपरालैंड की कवायद करने वाला पहला संगठन है। टिपरा मोथा का ग्रेटर टिपरालैंड एजेंडा यहीं से आया है। यह संगठन, त्रिपुरा के आदिवासियों के लिए एक अलग राज्य की मांग करती है। यह संगठन चाहता है कि त्रिपुरा ट्राइबल एरिया ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल (TTAADC) के बाहर आदिवासी इलाकों में रहने वाले हर आदिवासी को प्रस्तावित मॉडल के तहत शामिल किया जाए। 

 

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ग्रेटर टिपरालैंड के तहत असम, मिजोरम और देश के अलग हिस्से में फैले त्रिपुरा के मूल निवासियों को शामिल करने की मांग की जाती है। ग्रेटर टिपरालैंड की सीमा पड़ोसी बांग्लादेश के साथ-सात चटगांव, खगराचारी और चटगांव तक करने की कवायद की जाती है। मांग तो यहां तक होती है कि असम, मिजोरम और बांग्लादेश तक की सीमा को शामिल किया जाए, जिससे त्रिपुरा के मूल निवासियों को एक किया जाए?
 

अब अचानक प्रदर्शन क्यों?

टिपरा मोथा, त्रिपुरा में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी गठबंधन का हिस्सा है। त्रिपुरा के पूर्व राज परिवार के सदस्य प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देबबर्मा ने टिपरा मोथा पार्टी की स्थापना की थी। वह 'ग्रेटर टिपरालैंड' की राजनीति करते चर्चा में आए थे। साल 2021 से वह इसके लिए अपनी जमीन तैयार कर रहे थे। उन्होंने त्रिपुरा ट्राइबल एरिया ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल के चुनावों में शानदार जीत हासिल की थी। जब सा 2023 में विधानसभा चुनाव हुए तो इस पार्टी की सियासी ताकत और बढ़ गई।

यह पार्टी भारतीय जनता पार्टी की सरकार के खिलाफ चुनावी मैदान में थी लेकिन उसी पार्टी के साथ गठबंधन में आ गई। केंद्र सरकार, राज्य सरकार और टिपरा मोथा के बीच एक त्रिपक्षीय समझौता हुआ। तीनों दलों में कथित तौर पर यह सहमति बनी कि सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और जमीन संबंधी मुद्दों का आपसी बातचीत से हल निकाला जाएगा। 

18 महीने बाद नई कवायद क्यों?

त्रिपुरा में टिपरा मोथा सरकार से समर्थन तक वापस लेने के लिए तैयार हो गई है। पार्टी के नेताओं का कहना है कि समझौते के 18 महीने बीत गए हैं, इस पर अमल ही नहीं हुआ। टिपरा मोथा पार्टी, अपने एजेंडे पर वापसी कर रही है। प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देबबर्मा पर भारतीय जनता पार्टी की ओर से दबाव पड़ा तो विधायकों ने अपने बयान वापस लिए। पार्टी के सीनियर नेताओं का मानना है कि अब सरकार, अपने वादे से मुकर रही है। 

 

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गठबंधन में सब ठीक है?

त्रिपुरा की सरकार, तीन दलों के सहयोग से बनी है। भारतीय जनता पार्टी, टिपरा मोथा और इंडिजिनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा। टिपरा मोथा और भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच कई जगहों पर हिंसक झड़पें भी हुई हैं। आरोप यह भी लगे कि जिन सीटों पर टिपरा मोथा के विधायक हैं, वहां भी बीजेपी दखल दे रही है। 

खोवाई जिले के अशरमबारी में बीजेपी और टिपरा मोथा के कार्यकर्ता बीते महीने भिड़ गए। बीजेपी समर्थक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रेडियो प्रोग्राम मन की बात सुन रहे थे, तभी उन पर टिपरा मोथा के कार्यकर्ताओं ने हमला कर दिया। सिपाहीजाला में भी हमला हो गया। बात यहां तक बढ़ गई कि मुख्यमंत्री मणिक साहा ने कहा कि टिपरा मोथा के कार्यकर्ताओं ने हिंसा की है। उन्होंने पुलिस को सख्त कार्रवाई का निर्देश दिया है।  

अब आगे क्या होगा?

टिपरा मोथा के कार्यकर्ता, दिल्ली में ग्रेटर टिपरालैंड की मांग को लेकर प्रदर्शन करेंगे। टिपरा मोथा के मुखिया प्रद्योत देबबर्मा अपने मंत्रियों के साथ प्रदर्शन करेंगे। टिपरा मोथा के कई विधायक और त्रिपुरा ट्राइबल एरिया ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल के प्रतिनिधि भी इस प्रदर्शन में हिस्सा लेंगे।  

चुनाव की वजह से हो रहे हैं प्रदर्शन?

त्रिपुरा में  त्रिपुरा ट्राइबल एरिया ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल  के चुनाव कई साल से नहीं हुए हैं। गठबंधन का हालिया तनाव भी इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। चुनावों में देरी का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया था। सुप्रीम कोर्ट ने बीते महीने चुनावों के न होने को लेकर चुनाव आयोग, राज्य चुनाव आयोग और सरकार को नोटिस भेज दिया। कोर्ट ने तीनों पक्षों से जवाब मांग लिया। टिपरा मोथा चाहती है कि चुनाव जल्द से जल्द हों। भारतीय जनता पार्टी को भी चुनाव से परहेज नहीं है। जनजातीय समुदाय को जोड़ने की कवायद में पार्टी जुटी है। 

 

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जरूरी क्यों हैं ये चुनाव?

त्रिपुरा ट्राइबल एरिया ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल के चुनाव न होने की वजह से अब प्रशासनिक काम बाधित हो रहे हैं। टिपरा मोथा का तर्क है कि इससे इलाके लिए आवंटित विकास निधि का इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है। 

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