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क्या होता है SSLV जिसे बनाएगा HAL, भारत को होगा क्या फायदा?

HAL अब स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV) का निर्माण कर सकेगा। एसएसएलवी सैटेलाइट को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित करते हैं।

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प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: PTI

भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में एक नया अध्याय जुड़ने जा रहा है। हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड यानी एचएएल को भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन एवं प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) की ओर से स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV) तकनीक हस्तांतरण के लिए चुना गया है। यह तकनीक भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने विकसित की है। इसके जरिए अब एचएएल छोटे सैटेलाइटों को कम खर्च और लचीलापन प्रदान करने वाले SSLV रॉकेटों का निर्माण करेगा और व्यावसायिक लॉन्च करेगा।

 

SSLV रॉकेट का उद्देश्य लो अर्थ ऑर्बिट यानी पृथ्वी की निचली कक्षा में छोटे सैटेलाइटों को स्थापित करना है। यह रॉकेट बेहद सस्ता, छोटा और उपयोग में आसान है। यह तकनीक उन सैटेलाइटों के लिए बेहद उपयोगी होगी जिनका वजन कम है और जो तेजी से कक्षा में भेजे जाने की अपेक्षा रखते हैं। एचएएल के सीएमडी डॉ. डी.के. सुनील ने कहा, 'SSLV तकनीक हस्तांतरण से एचएएल में रॉकेट बनाने और लॉन्च करने की स्वदेशी क्षमताएं और मजबूत होंगी। यह कदम घरेलू और अंतरराष्ट्रीय सैटेलाइट कंपनियों के साथ साझेदारी के नए अवसर खोलेगा।'

कॉमर्शियल उपयोग भी होगा

समझौते के अनुसार, तकनीक हस्तांतरण के दौरान एचएएल कम से कम दो SSLV रॉकेटों का पूरा निर्माण करेगा और इसरो के प्रोसीजर का पालन करेगा। अगस्त 2027 तक, एचएएल इन रॉकेटों का कॉमर्शियल उपयोग कर सकेगा और खुद रॉकेटों के डिजाइन और सप्लायर में बदलाव कर सकेगा। हालांकि, शर्त यह है कि कम से कम 51 प्रतिशत हिस्सेदारी भारतीय कंपनी के पास रहेगी।

 

कुल तीन कंपनियों — अल्फा डिज़ाइन टेक्नोलॉजीज, भारत डायनेमिक्स लिमिटेड और एचएएल — में से तकनीकी मूल्यांकन के बाद एचएएल का चुनाव हुआ है। एचएएल ने यह बोली 511 करोड़ रुपये में जीती है। दो साल की अवधि पूरी होने के बाद एचएएल सालाना 6 से 12 SSLV रॉकेट लॉन्च करने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ेगी।

खुद करेगी मार्केटिंग

एचएएल पहले से ही उस कन्सोर्टियम का हिस्सा है, जिसे भारत के प्रमुख रॉकेट PSLV के निजी निर्माण का जिम्मा मिला है। PSLV का पहला लॉन्च इसी साल होने की उम्मीद है। न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) के सीएमडी राधाकृष्णन दुरईराज ने बताया कि SSLV का मामला PSLV से अलग है, जहां एचएएल रॉकेट बनाएगी, लॉन्च करेगी और अपनी मार्केटिंग खुद करेगी। राधाकृष्णन ने यह भी कहा कि पूरी दुनिया में छोटे सैटेलाइटों और कन्स्टेलेशनों की मांग तेजी से बढ़ रही है, जिससे SSLV रॉकेट का बाजार काफी बड़ा है।

 

दुरईराज के अनुसार, SSLV रॉकेटों की मांग पूरी करने और भारतीय बाजार में SSLV तकनीक स्थापित करने के लिए NSIL 15 SSLV लॉन्च करेगा। पहला लॉन्च अगले साल की आखिरी तिमाही में होगा और इसके बाद हर महीने एक लॉन्च किया जाएगा। इन लॉन्च के ग्राहक पहले से ही तय हो चुके हैं। यह कदम भारतीय निजी कंपनियों और अन्य देशों में SSLV रॉकेट की मांग को पूरा करेगा।

 

 

IN-SPACe के अध्यक्ष डॉ. पवन गोयनका का कहना है कि इसके अलावा दो SSLV रॉकेट भारतीय निजी सेक्टर के छोटे सैटेलाइटों के लिए लॉन्च किए जाएंगे। पहला लॉन्च इसी साल अक्टूबर में और दूसरा अगले साल फरवरी में होगा। इन लॉन्चों के लिए कंपनियों से आवेदन पहले ही मंगाए जा चुके हैं और अच्छी संख्या में मांग है।

क्या होता है SSLV?

छोटे सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (Small Satellite Launch Vehicle या SSLV) एक विशेष रॉकेट होते हैं जो छोटे और हल्के सैटेलाइट को अंतरिक्ष में ले जाने के लिए बनाए जाते हैं। ये रॉकेट साधारण रॉकेटों से काफी छोटे और किफायती होते हैं, क्योंकि आजकल बहुत सी कंपनियां और संस्थाएं छोटे सैटेलाइट जैसे क्यूबसैट या माइक्रोसैट का उपयोग करती हैं।

 

SSLV का मूल उद्देश्य है कम खर्च में और जल्दी से छोटे सैटेलाइट्स को कक्षा में स्थापित करना। यह रॉकेट कम समय में लॉन्च के लिए तैयार हो सकता है और इसके लिए बड़े लॉन्च पैड या जटिल संरचनाओं की आवश्यकता नहीं पड़ती। यह तकनीक विशेष तौर से उन संगठनों और देशों के लिए उपयोगी है जो कम खर्च में अपनी सैटेलाइट तकनीक विकसित करना चाहते हैं।

 

इसका वजन लगभग 100 से 150 टन तक होता है। यह रॉकेट करीब 500 किलोग्राम तक का पेलोड ले जाने में सक्षम होता है। SSLV का उपयोग रिमोट सेंसिंग, मौसम निगरानी, आपदा प्रबंधन, इंटरनेट सेवाएं, और वैज्ञानिक प्रयोग जैसे उद्देश्यों में किया जाता है।

भारत को क्या फायदा?

भारत को छोटे सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV) से कई फायदे होंगे, जो देश की अंतरिक्ष तकनीक और अर्थव्यवस्था दोनों को मजबूत करेंगे। जैसे कम खर्च में लॉन्चिंग होगी क्योंकि छोटे होने के नाते इन्हें कम खर्च में अंतरिक्ष में भेजा जा सकता है।

 

इसके अलावा स्पेस सेक्टर में वैश्विक बाजार में हिस्सेदारी भी बनेगी और दूसरे देशों के सैटेलाइट लॉन्च करके भारत विदेशी मुद्रा कमा सकता है। वहीं एसएसएलवी का उपयोग रिमोट सेंसिंग, मॉनीटरिंग और आपदा प्रबंधन जैसे कार्यों में किया जा सकेगा जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा को भी बल मिलेगा।

 

भारत जैसे देश SSLV तकनीक में आगे बढ़ रहे हैं और इस तकनीक का उपयोग अपनी सैटेलाइट लॉन्चिंग क्षमताओं को और अधिक सुलभ, किफायती और लचीला बनाने में कर रहे हैं। यह तकनीक वैश्विक स्तर पर छोटे सैटेलाइट बाजार में एक क्रांति का हिस्सा है।

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