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'मंदिर में पुरुषों के कपड़े उतारने की प्रथा बंद हो,' संत ने की मांग

दक्षिण भारत के मंदिरों में प्रवेश से पहले कुर्ता या शर्ट उतारकर ही जाने की अनिवार्यता को खत्म करने की वकालत किए जाने से खलबली मच गई है। समझिए मामला क्या है।

Sree Narayaneeya temples

संत ने कहा, प्रथा नारायण गुरु के उपदेशों के खिलाफ है। Source- PTI

केरल के शिवगिरी मठ के प्रमुख स्वामी सच्चिदानंद ने मंदिरों में प्रवेश के लिए सालों पुरानी परंपरा को खत्म करने का आह्वान किया है। उन्होंने मंदिरों में पुरुष भक्तों के ऊपरी भाग पर पहने जाने वाले कपड़ों को उतारकर ही मंदिर में प्रवेश करने की प्रथा खत्म करने की बात कही है। इसके लिए उनका तर्क है कि नारायण गुरु ने तो मंदिरों को आधुनिक बनाने का काम किया। उन्होंने कहा है कि अगर ऐसा किया जाता है तो इसे बड़ा समाज सुधार माना जा सकता है।

 

प्रसिद्ध शिवगिरी मठ को समाज सुधारक नारायण गुरु ने स्थापित किया था। शिवगिरी मठ के प्रमुख स्वामी सच्चिदानंद ने कहा कि केरल के कई मंदिरों में यह प्रथा आज भी मौजूद है। एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए स्वामी सच्चिदानंद ने इस प्रथा को एक सामाजिक बुराई बताया और इसे समाप्त करने का लोगों से आग्रह किया।

प्रथा नारायण गुरु के उपदेशों के खिलाफ

उन्होंने कहा, 'पुराने समय में कपड़े उतारने की प्रथा यह देखने के लिए शुरू की गई थी कि पुरुषों ने 'पूनूल' (ब्राह्मणों द्वारा पहना जाने वाला पवित्र धागा) पहना है या नहीं। यह प्रथा नारायण गुरु के उपदेशों के खिलाफ है। यह देखकर दुख होता है कि ऋषि और सुधारक नारायण गुरु से जुड़े कुछ मंदिर भी अभी भी इस प्रथा का पालन कर रहे हैं। कुछ मंदिरों में दूसरे धर्मों के लोगों को प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। जब कुछ श्री नारायण मंदिर भी इसी तरह का काम करते पाए जाते हैं, तो मुझे इस पर बहुत दुख होता है।'

नारायण गुरु ने मंदिर संस्कृति को आधुनिक बनाया

उन्होंने कहा, 'इतना ही नहीं, कई नारायण मंदिर भी पुरुषों की ऊपरी पोशाक उतारने की प्रथा का पालन करने पर अड़े हुए हैं। इसे किसी भी कीमत पर ठीक किया जाना चाहिए क्योंकि श्री नारायण गुरु एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने मंदिर संस्कृति को आधुनिक बनाया।'

बता दे कि तीर्थ सम्मेलन में केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन भी मौजूद थे। सीएम विजयन ने भी इस प्रथा को समाप्त करने के आह्वान का समर्थन किया। साथ ही उन्होंने सुझाव दिया कि यह प्रथा खत्म होनी चाहिए और इसे एक सामाजिक सुधार के लिए महत्वपूर्ण हस्तक्षेप के रूप में माना जा सकता है।

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