ब्रेल लिपि आज भी उन लोगों के लिए पढ़ाई-लिखाई करने का एक ज़रिया है जो लोग किन्हीं कारणों से अपनी आंखों की रोशनी खो चुके हैं। ब्रेल लिपि को तर्जनी उंगली की मदद से स्पर्श करके पढ़ा जाता है। इस लिपि ने उन दिव्यांग लोगों की जिंदगी में उजाला करने का काम किया है जिनके आंखों की रोशनी चली गई है।
लेकिन इस लिपि को बनाने वाले लुई ब्रेल की कहानी खुद ही संघर्षों से भरी रही है। लुई ब्रेल ने जिस तरह से ब्रेल लिपि का आविष्कार किया वह काफी मजेदार है।
बचपन में चली गई आंखों की रोशनी
लुई ब्रेल की आंखों की रोशनी बचपन में ही चली गई थी। ब्रेल को बचपन में खेलते वक्त एक आंख में चोट लगने के कारण उस आंख की रोशनी चली गई, जबकि उनकी दूसरी आंख में कुछ दिन बाद इंफेक्शन हो गया था। इंफेक्शन इतना बढ़ा कि उनकी दूसरी आंख की भी रोशनी चली गई।
कैसे बनाई ब्रेल लिपि
आंखों की रोशनी जाने के बाद ब्रेल ने एक ऐसी लिपि बनाने की सोची जो कि उनके जैसे लोगों की पढ़ाई और ज्ञान पाने में मददगार हो सके।
1821 में उन्हें सेना द्वारा कोड लैंग्वेज के लिए प्रयोग किए जाने वाले डॉट सिस्टम के बारे में पता चला। उस वक्त उनकी उम्र की 12 साल थी। उस वक्त उनके स्कूल में नेपोलियन की सेना में काम करने वाला एक अधिकारी आया जो कि बच्चों को सेना द्वारा रात में बिना बोले भेजे जाने संदेश के तरीके के बारे में बताने वाला था। इसमें डॉट और डैश की कोडिंग के जरिए संदेश भेजा जाता था।
बस फिर क्या था लुई को लगा कि इस सिस्टम का उपयोग करके वह अपने लिए व अपने जैसे दूसरों के लिए एक तरह की लिपि बना सकते हैं। इसके बाद अगले कुछ सालों तक उन्होंने काफी मेहनत की और सिर्फ 6 डॉट्स की मदद से एक ऐसी लिपि का निर्माण कर दिया जो कि अल्फाबेट की तरह से काम करता था।
साल 1824 तक जब ब्रेल 15 साल के थे उस वक्त तक उन्होंने इस लिपि को बना लिया था। उन्होंने इन डॉट्स को 63 तरीकों से जोड़कर पूरी लिपि का निर्माण कर लिया।
मां-बाप चाहते थे अच्छी शिक्षा मिले
लुई के माता-पिता चाहते थे कि उन्हें अच्छी शिक्षा मिले। इसके लिए उन्होंने लुई का एडमिशन गांव के ही स्कूल में करा दिया जहां वह सुन करके सीखने की कोशिश करते थे। वह पढ़ने में काफी अच्छे थे जिसकी वजह से दस साल की उम्र में उन्हें पढ़ने के लिए स्कॉलरशिप मिल गई, लेकिन इसके लिए उन्हें गांव छोड़कर बाहर जाना पड़ता।
शुरू में तो उनके पिता नहीं चाहते थे कि उन्हें बाहर भेजा जाए लेकिन बाद में वह तैयार हो गए और उन्होंने लुई को बाहर पढ़ने के लिए भेज दिया।
स्कूल में लगी ब्रेल लिपि पढ़ाने पर रोक
ब्रेल में अपने जैसे साथियों को ब्रेल लिपि सिखाना शुरू कर दिया। इसकी वजह से उनके साथियों को पन्नों पर लिखे हुए उभरे अक्षरों को पढ़ने के बजाय यह लिपि पढ़ना काफी आसान लगा। उनके साथी इस लिपि को काफी तेजी से सीखने लगे। ब्रेल को उनके स्कूल के डायरेक्टर का काफी समर्थन मिल रहा था लेकिन कुछ समय बाद उन डायरेक्टर की जगह नए डायरेक्टर आ गए। नए डायरेक्टर को डर था कि ब्रेल की इस लिपि की वजह से तमाम टीचर्स की नौकरी चली जाएगी। इसलिए उन्होंने इस पर रोक लगा दी।
म्यूजिक भी सीखा
ब्रेल को म्यूजिक का भी शौक था। इसलिए पढ़ाई के साथ साथ उन्होंने म्यूजिक भी सीखा। इसके अलावा वह पहले ब्लाइंड अप्रेंटिस टीचर भी बने। वह बच्चों को गणित, म्यूजिक, व्याकरण और भूगोल पढ़ाते थे। इसके बाद वह फुल टाइम प्रोफेसर बन गए। वह खाली वक्त में पियानो बजाते थे।
करते थे दूसरों की मदद
अपनी छोटी सी सैलरी के बावजूद वह जरूरतमंदों को पैसे उधार देने से नहीं चूकते थे। इसके अलावा जिनको जरूरत होती थी उनके लिए गर्म कपड़े या अन्य जरूरत के दूसरे सामान खरीदकर वह गिफ्ट करते थे।
टीवी से हुई मौत
जिंदगी के अंतिम दौर में ब्रेल को ट्युबरकुलोसिस यानी टीबी हो गया था। इसकी वजह से उन्हें पढ़ाना छोड़ने को मजबूर होना पड़ा। इस रोग के बाद उनको अपना बाकी का जीवन पीड़ा में ही बिताना पड़ा और 1852 में 43 साल की उम्र में उनकी मौत हो गई।