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जब इजरायल ने MIG-21 विमान को चुराने में झोंक दी पूरी ताकत

इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद के ऑपरेशन डायमंड को पूरी दुनिया मिग-21 की चोरी के तौर पर जानती है। यह मोसाद का सबसे दुस्साहसी ऑपरेशनों में से एक था। रूसी सुरक्षा के बीच मोसाद एक मिग-21 विमान को इराक से इजरायल लाने में कामयाब रही।

Operation Diamond.

इजरायल ने कैसे चुराया था मिग-21। (AI generated image)

मिग-21 विमान 1963 में भारतीय वायुसेना में शामिल हुआ। अब करीब सात दशक बाद यह विमान इतिहास का हिस्सा बन जाएगा। आज यानी शुक्रवार को मिग-21 विमान चंडीगढ़ एयरबेस से अपनी आखिरी उड़ान भरेगा। 1965, 1971 और कारगिल युद्ध में अहम भूमिका निभाने वाला यह विमान 60 के दशक में सबसे उन्नत फाइटर प्लेन था। पश्चिमी देशों में इसका खूब खौफ था। इजरायल भी मिग-21 को बड़ा खतरा मानता था। इसकी वजह यह थी कि उस वक्त सीरिया, इराक और मिस्र की वायुसेना में यह विमान थे। इजरायल समेत पूरा पश्चिमी जगत रूस में बने इस विमान की तकनीक जानना चाहता था, लेकिन यह काम इतना आसान नहीं था। 


इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद ने मिग-21 विमान को चुराने का प्लान बनाया। दो कोशिश की, लेकिन नाकाम रही। तीसरी बार में जब सफलता मिली तो पूरी दुनिया हैरत में पड़ गई। इजरायल ने मिग-21 विमान को चुराने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। आज की कहानी मिग-21 विमान की, कैसे इजरायल ने रूसी सुरक्षा के बीच इराक से यह विमान चोरी किया?

 

25 मार्च 1963 को मेर अमेत ने इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद की कमान संभाली। उन्होंने तुरंत सैन्य अधिकारियों से मुलाकात करना शुरू किया। बैठकों में मोसाद का लक्ष्य बताया और पूछा कि इजरायल की सुरक्षा में मोसाद का सबसे अहम योगदान क्या हो सकता है? तब इजरायली वायुसेना के कमांडर जनरल मोर्दकै होद ने उन्हें सोवियत निर्मित मिग-21 विमान इजराइल लाने को कहा।

 

मोर्दकै होद के बाद एजर वाइजमैन ने इजरायली वायुसेना की कमान संभाली। सिक्स डे वार से कुछ समय पहले वाइजमैन ने भी मेर अमेत से मिग-21 विमान इजरायल लाने का आग्रह किया। इसकी एक वजह यह था कि यह उन्नत विमान तीन अरब देशों के पास था। इजरायल उसकी क्षमता से परिचित नहीं था। 

 

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इन तीन देशों के पास थे मिग-21 विमान

60 के दशक में पश्चिम में भी बहुत कम लोगों के पास मिग-21 विमान से जुड़ी जानकारी थी। उसकी क्षमता से सभी खौफ खाते थे। 1961 में रूस ने अपने सबसे उन्नत मिग-21 विमानों को मध्य पूर्व में भेजना शुरू किया। दो साल बाद यानी 1963 तक मिग-21 सीरिया, मिस्र और इराकी वायुसेना का हिस्स बन चुके थे। उस वक्त यह विमान इतना उन्नत था कि रूस को भी अरब देशों पर भरोसा नहीं था। उसने विमान सौंपने से पहले एक शर्त रखी। शर्त यह थी कि विमान की सुरक्षा, चालक दल को ट्रेनिंग और रखरखाव की जिम्मेदारी उसकी होगी।

कड़ी सुरक्षा से विमान चुराना आसान नहीं था

मिस्र, इराक और सीरिया में मिग-21 विमानों को कड़ी सुरक्षा में रखा जाता था। एयरबेसों पर रूसियों की तैनाती थी। उस समय अगर किसी पायलट को मिग-21 विमान की कमान सौंपी जाती थी तो यह किसी सम्मान से कम नहीं था। लिहाजा किसी पायलट को विमान इजरायल लाने की खातिर मनाना या रिश्वत देना आसान काम नहीं था।

मोसाद ने कौन सा प्लान बनाया?

मोसाद ने मिग-21 को चोरी करने का प्लान बनाया है। उसने संभावित विकल्पों पर मंथन शुरू किया। मोसाद का प्लान था कि अगर किसी अरब देश में विमान उतरता है तो उसे वही रोक लिया जाए। दूसरा विकल्प था कि एयरबेस पर एजेंट की तैनाती। तीसरा प्लान था- रिश्वत देना। अंत में मोसाद ने तय किया कि अगर किसी अरब पायलट को मिग-21 विमान के साथ इजरायल में शरण देने पर राजी कर लिया गया तो इससे बेहतर कोई विकल्प नहीं होगा। 

इजरायल की दो कोशिश रहीं नाकाम

इजरायल ने मिस्र से मिग-21 विमान लाने की कोशिश की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। मोसाद ने मिस्र में जन्मे जीन थॉमस नाम के अर्मेनियाई व्यक्ति को 10 लाख डॉलर की घूस देने का प्रयास किया। मगर जीन थॉमस ने मना कर दिया। बाद में जीन थॉमस को उसके साथियों के साथ मिस्र में पकड़ लिया गया और 1962 में फांसी की सजा दे दी गई। इजरायल ने दूसरी कोशिश इराक में की। उसने दो इराकी पायलटों को मिग-21 लाने का लालच दिया, लेकिन यहां भी सफलता नहीं मिली।

जोसेफ की मदद से बना प्लान

1950 के दशक में इराक में यहूदियों की आबादी लगभग एक लाख थी। 1960 में यह सिर्फ 1000 ही बची। अधिकांश यहूदी इराक छोड़कर इजरायल जा चुके थे। जब मोसाद मिग 21 को चोरी करने का प्लान बना रहा था, तब ही उसे एक हैरत में डालने वाली सूचना मिली। सूचना यह थी कि जोसेफ नाम का इराकी यहूदी मिग-21 विमान की चोरी में इजरायल की मदद करने पर राजी था।

मुनीर रेडफा की नाराजगी बनी ढाल

साल 1964 में मोसाद जोसेफ के माध्यम से इराकी वायुसेना के एक ईसाई पायलट से संपर्क साधने में कामयाब रहा। यह ईसाई पायलट इराक छोड़ना चाहता था। वह इराक में मैरोनाइट ईसाई समुदाय पर सरकार के दमन से खफा था। उसके कई साथी इराकी जेल में बंद थे। इराक के इस ईसाई पायलट का नाम मुनीर रेडफा था।

महिला एजेंट जब रेडफा से मिली

शुरू में इजरायल को जोसेफ पर भरोसा नहीं हुआ। जब वह उसने पैसे की अधिक मांग की तो शक और बढ़ गया। कई अधिकारियों ने उसे ठग समझा। मगर मेर अमेत को उस पर भरोसा था। उन्होंने बातचीत जारी रखी। मोसाद ने बगदाद में रहने वाली एक अमेरिकी महिला से संपर्क किया। यह महिला मोसाद की एजेंट थी। बाद में यह अमेरिकी महिला एक पार्टी में रेडफा से मिली। जल्द ही यह मुलाकात दोस्ती में बदल गई। इसकी वजह यह थी कि अमेरिकी महिला बेहद खूबसूरत और जिंदादिल होने के साथ-साथ प्रभावशाली थी। 

इराक से क्यों नाराज था रेडफा?

बातचीत में रेडफा ने बताया कि वह अल्पसंख्यकों पर सरकारी दमन से खफा है। उसे निहत्थे कुर्दों पर बमबारी करने पर मजबूर किया जाता है। रेडफा की नाराजगी की एक वजह यह थी कि वह मिग-21 स्क्वाड्रन का डिप्टी कमांडर था। उसे न तो कमांडर की जिम्मेदारी मिली और न ही घर के पास पोस्टिंग। वह ईसाई था, इस कारण उसे छोटे ईंधन टैंक के साथ ही उड़ान की इजाजत थी।

विमान लाने के बदले मोसाद ने क्या ऑफर दिया?

अमेरिकी महिला और शादीशुदा रेडफा के बीच करीबी बढ़ने लगी। 1966 के जुलाई महीने में दोनों ने यूरोप में छुट्टियां मनाने का प्लान बनाया। यूरोप में कुछ दिन ठहरने के बाद अमेरिकी महिला ने रेडफा को इजरायल चलने को कहा। रेडफा इस पर सहमत हो गया। इजरायल में मोसाद ने उसे मिग-21 विमान लाने के बदले 10 लाख डॉलर देने का प्रस्ताव दिया। यह भी कहा कि उसे अच्छी नौकरी दी जाएगी। एक घर और इजरायल की नागरिकता भी मिलेगी।

इजरायल में ही समझाया गया चोरी का प्लान

रेडफा विमान लाने पर राजी था, लेकिन परिवार की सुरक्षा से जुड़ी चिंता उसे सता रही थी। इस बीच उसकी मुलाकात इजरायली वायु सेना के कमांडर मोर्दकै होद से करवाई गई। उन्होंने रेडफा को भागने का प्लान समझाया। जॉर्डन और इराक के रडार से बचने के लिए टेढ़े-मेढ़े रास्ते से विमान उड़ाने की सलाह दी।  मोसाद के अधिकारियों से मुलाकात के बाद अमेरिकी महिला और रेडफा यूरोप के रास्ते इराक लौट गए।

बगदाद के बाद विमान ने बदला रास्ता तो मचा हड़कंप

रेडफा के कहने पर मोसाद ने उसके परिवार को इलाज के बहाने इराक से सुरक्षित बाहर निकाला। जब परिवार सुरक्षित इजरायल पहुंच गया तब विमान चोरी की तारीख तय की गई। 16 अगस्त 1966 को मुनीर रेडफा ने मिग-21 को इजरायल लाने का प्लान बनाया। इराकी एयरबेस पर रेडफा ने ग्राउंड क्रू से अपना टैंक पूरी क्षमता से भरवाया। उड़ान भरने के बाद विमान बगदाद की तरफ बढ़ा। इसके बाद उसने अपनी दिशा इजरायल की तरफ मोड़ दी। ग्राउंड क्रू के रडार पर एक ब्लिंक दिखा। इसके बाद रेडियो पर रेडफा से तुरंत वापस आने का आदेश दिया गया। मगर उसने ऐसा नहीं किया। जब यह कहा गया कि विमान को गोली मार दी जाएगी तब रेडफा ने अपना रेडियो बंद कर दिया। 

इजरायल  ने मिराज विमान से की अगवानी

कुछ देर बाद इजरायली रडार पर एक लाइट दिखी। इसी के साथ मोसाद के अधिकारियों में खुशी की लहर दौड़ पड़ी। इजरायल ने तुंरत अपने मिराज विमानों का दस्ता मिग-21 विमान की अगवानी को भेजा। नेगेव रेगिस्तान पर बने इजरायली एयरबेस पर मिग-21 विमान के उतरते ही रूस का सबसे उन्नत विमान अब मोसाद के कब्जे में था। 

 

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रूस ने धमकी दी, इजरायल ने विमान नहीं लौटाया

अगले दिन दुनियाभर के अखबारों में यह खबर छपी तो सोवियत संघ के होश उड़ गए। उसने न केवल इजरायल को धमकियां दीं, बल्कि विमान तक वापस मांगा लिया। दूसरी तरफ अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस ने इजरायल पर इस बात का दबाव बनाना शुरू कर दिया कि वह मिग-21 विमान की कम से कम एक झलक तो दिखा दे। धमकियों के बावजूद इजरायल ने कभी विमान रूस को वापस नहीं किया, लेकिन लंबे समय तक अमेरिका को भी नहीं सौंपा।

 

 

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