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सिर्फ गर्मी से नहीं बल्कि कई चीजें तय करती हैं हीटवेव, जानें नियम

आमतौर पर लगता है कि हीटवेव का निर्धारण सिर्फ और सिर्फ गर्मी को ध्यान में रखकर किया जाता होगा, लेकिन ऐसा नहीं है। इसके लिए कुछ नियम हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: AI Generated

प्रतीकात्मक तस्वीर । Photo Credit: AI Generated

भारत में गर्मी का मौसम आते ही तापमान तेजी से बढ़ने लगता है और "हीटवेव" यानी लू चलने की घटनाएं आम हो जाती हैं। हर साल अप्रैल से जून के बीच देश के कई हिस्सों में तापमान सामान्य से कहीं ज्यादा बढ़ जाता है, जिससे जनजीवन बुरी तरह प्रभावित होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि किसी क्षेत्र में "हीटवेव" कब और कैसे घोषित किया जाता है? इसको बस यूं ही नहीं घोषित कर दिया जाता बल्कि इसके पीछे एक वैज्ञानिक वैज्ञानिक प्रक्रिया अपनायी जाती है और जिसके लिए मौसम विभाग के स्पष्ट नियम होते हैं।

 

भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) देश में हीटवेव घोषित करने के लिए तापमान, सामान्य तापमान से अंतर, और मौसम की स्थिति जैसी कई बातों का ध्यान रखता है। हर इलाके के लिए तापमान की अलग-अलग सीमाएं तय की गई हैं। जैसे मैदानों, तटीय इलाकों और पहाड़ी क्षेत्रों के लिए अलग-अलग मानक हैं। इसके अलावा यह भी देखा जाता है कि बढ़ा हुआ तापमान कितने दिनों तक बना रहता है। अगर गर्मी का असर लगातार दो दिन या उससे अधिक समय तक बना रहे तो उसे में ध्यान में रखा जाता है।

 

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तो ऐसे में खबरगांव आपको बता रहा है कि आखिर हीटवेव का निर्धारण कैसे किया जाता है-

 

हीटवेव क्या है?

भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, हीटवेव वह स्थिति होती है जब किसी इलाके में सामान्य से कहीं ज्यादा गर्मी पड़ती है। यानी यह केवल गर्मी नहीं होती, बल्कि सामान्य तापमान से काफी ज्यादा बढ़ा हुआ तापमान होता है। हालांकि, इसमें स्थान का भी महत्त्व होता है यानी कि जो तापमान तमिलनाडु के लिए हीटवेव होगा वह मध्य प्रदेश के लिए नहीं होगा।

 

हीटवेव से शरीर में पानी की कमी, लू लगना, और दिल की बीमारियों जैसी समस्याएं हो सकती हैं। आजकल जलवायु परिवर्तन (climate change) की वजह से भारत में हीटवेव पहले से ज्यादा बार, ज्यादा तेज और ज्यादा लंबे समय तक रहने लगी हैं।

 

हीटवेव घोषित करने के नियम

IMD कुछ खास नियमों के आधार पर तय करता है कि किसी क्षेत्र में हीटवेव है या नहीं। ये नियम अलग-अलग इलाकों के लिए थोड़ा अलग हो सकते हैं, जैसे कि तटीय इलाकों के लिए अलग और मैदानी इलाकों के लिए अलग।

 

तापमान के आधार पर

अगर किसी मैदानी इलाके में अधिकतम तापमान 40°C या उससे ज्यादा हो जाए तो हीटवेव की स्थिति घोषित की जा सकती है। वहीं तटीय इलाकों की बात करें तो मुंबई, चेन्नई जैसे तटीय इलाको में अधिकतम तापमान 37°C या उससे ज्यादा हो जाए तो हीटवेव की घोषणा की जाती है। इससे इतर पहाड़ी इलाकों में सिर्फ 30 डिग्री से ही ज्यादा तापमान होने पर हीटवेव की घोषणा कर दी जाती है।

 

औसत तापमान से अंतर के आधार पर

अगर किसी स्थान के औसत तापमान से वहां का तापमान 4.5°C से 6.4°C ज्यादा तापमान हो, तो हीटवेव घोषित किया जाता है। वहीं अगर तापमान औसत तापमान से 6.4°C से भी ज्यादा हो जाए, तो गंभीर हीटवेव (Severe Heatwave) घोषित किया जाता है।

 

तापमान की ऊपरी सीमा के आधार पर

अगर तापमान 45°C या उससे ज्यादा पहुंच जाए, तो हीटवेव माना जाता है। जबकि अगर तापमान 47°C या उससे ज्यादा हो, तो इसे गंभीर हीटवेव कहा जाता है।

सीधे शब्दों में कहें तो अगर तापमान सामान्य से काफी ज्यादा हो या एकदम बहुत ज्यादा गर्म हो, तो हीटवेव घोषित की जाती है।


कितने दिनों में घोषित होता है हीटवेव

हीटवेव घोषित करने के लिए जरूरी है कि ये स्थिति लगातार दो दिन या उससे ज्यादा बनी रहे। अगर केवल एक दिन ही तापमान बढ़ा है, तो IMD उसे औपचारिक रूप से हीटवेव नहीं मानता, लेकिन फिर भी चेतावनी जारी कर सकता है।

 

नमी पर भी देते हैं ध्यान

समुद्र के किनारे बसे शहरों (जैसे मुंबई, कोलकाता) में केवल तापमान ही नहीं, बल्कि नमी (Humidity) भी ध्यान में रखी जाती है। यहां, IMD ‘हीट इंडेक्स’ का इस्तेमाल करता है, जो तापमान और नमी को मिलाकर लोगों पर पड़ने वाले असली असर को बताता है। इसलिए कभी-कभी तापमान 40°C से कम होते हुए भी भारी उमस के कारण हीटवेव जैसा अनुभव हो सकता है।

 

हीटवेव की चेतावनी कैसे दी जाती है?

IMD चार रंगों वाले चेतावनी सिस्टम का उपयोग करता है:

  • हरा (Green): कोई खतरा नहीं।
  • पीला (Yellow): ध्यान देने की जरूरत।
  • नारंगी (Orange): तैयार रहने की जरूरत।
  • लाल (Red): तुरंत कार्यवाही करें; बहुत गंभीर हालात।

 

सरकारें इन चेतावनियों के आधार पर ही व्यवस्थाएं करती हैं जैसे कि पानी की सार्वजनिक स्थानों पर व्यवस्था करना, कूलिंग सेंटर बनाना और लोगों को घर में रहने की सलाह देना इत्यादि।

 

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भारत में क्यों बढ़ रही हीटवेव?

आज भारत में हीटवेव के मामले बढ़ते जा रहे हैं। पिछले 20 सालों में हीटवेव वाले दिनों में लगभग 15% बढ़ोतरी हुई है। जिसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन है। ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण किसी भी स्थान का औसत तापमान ऊपर ही जाता चला जा रहा है। वहीं शहरी इलाकों की बात करें तो कंक्रीट के मकानों की अधिकता के कारण शहरी इलाकों में ग्रामीण इलाकों की तुलना में तापमान और ज्यादा देखने को मिलता है। इसके अलावा जैसे जैसे जनसंख्या बढ़ रह है वैसे वैसे वनों की कटाई भी ज्यादा हो रही है इससे भी तापमान पर फर्क पड़ रहा है।

 

हीटवेव का असर

हीटवेव की वजह से न सिर्फ व्यक्ति विशेष के स्वास्थ्य को नुकसान होता है बल्कि खेती पर भी असर पड़ता है। इसकी वजह से फसलें सूखने लगती हैं और उत्पादन घट जाता है। इसके अलावा मजदूरों की कार्यक्षमता पर भी इसका काफी असर पड़ता है जिससे अन्य मैन्युफैक्चरिंग यूनिट पर भी इसका असर देखने को मिलता है। 2015 से 2019 के बीच हीटवेव की वजह से हजारों लोगों की मौत हो चुकी है।

 

हीट ऐक्शन प्लान

भारत के कई शहर जैसे अहमदाबाद, नागपुर और हैदराबाद ने हीट ऐक्शन प्लान (Heat Action Plan) बनाए हैं। इसके तहत लोगों को समय रहते चेतावनी देना, कूलिंग सेंटर्स खोलना, मजदूरों के काम के समय में बदलाव करना और लोगों को इस बात को लेकर जागरुक करना शामिल है कि वे हीटवेव से कैसे बचाव कर सकते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर भी सरकार ने हीटवेव से निपटने की गाइडलाइन बनाई है।

 

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