मामूली पैसा, जान का खतरा... कुछ ऐसी होती है प्राइवेट जासूस की दुनिया?
कभी सोचा है कि एक जासूस की जिंदगी कैसी होती है? अगर आप किसी की जासूसी करवाएं तो कितना खर्चा आएगा? अगर नहीं, तो पढ़ें ये रिपोर्ट और खुद समझें कि एक जासूस की दुनिया कैसी होती है?

प्रतीकात्मक तस्वीर। (AI Generated Image)
सिर पर काली टोपी... आंखों में काला चश्मा... लंबा सा काला कोट... मुंह में सिगार... और हाथ में लेंस... आमतौर पर फिल्मों में 'जासूस' इसी तरह दिखाए जाते हैं। पुरानी फिल्मों में ऐसे कई किरदार देखने को मिलते थे। मगर क्या असल में जासूस ऐसे ही होते हैं? तो इसका जवाब है 'नहीं।'
कोई भी व्यक्ति अगर काली टोपी, काला चश्मा, लंबा कोट और सिगार सुलगाते हुए दिखेगा तो वो भीड़ में अलग ही दिखाई देगा। जबकि, एक जासूस की 'पहचान' यही होती है कि उसकी 'कोई पहचान नहीं' होती। जासूस हमेशा अपनी पहचान छिपाकर रखते हैं। कभी भी कहीं भी असली पहचान का इस्तेमाल नहीं करते। और तो और कपड़े भी ऐसे नहीं पहनते, जिससे उनपर किसी का ध्यान जाए।
प्राइवेट डिटेक्टिव की जरूरत क्यों?
दिल्ली में डीडीएस डिटेक्टिव नाम से प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसी चलाने वाले संजीव कुमार बताते हैं कि 'मर्डर या चोरी जैसे अपराधों की जांच के लिए पुलिस होती है। मनी लॉन्ड्रिंग और धोखाधड़ी जैसे मामलों की जांच के लिए सीबीआई और ईडी है। लेकिन अगर आप जानना चाहते हैं कि आपका बिजनेस राइवलरी में क्या हो रहा है? आपके पति या पत्नी का एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर तो नहीं है? आप अपनी किसी कंपनी में किसी को नौकरी पर रख रहे हैं तो उसका बर्ताव कैसा है? इन सबकी जांच-पड़ताल के लिए प्राइवेट डिटेक्टिव को हायर किया जाता है।'
आज के समय में जिस तरह से जिंदगी बदल रही है, उसने प्राइवेट डिटेक्टिव की जरूरत और बढ़ा दी है। पहले प्राइवेट डिटेक्टिव को आमतौर पर अमीर परिवार ही हायर करते थे। मगर अब वक्त बदल गया है। अब सब तरह के लोग अपनी जरूरत के हिसाब से इन डिटेक्टिव को हायर करते हैं और अपना काम करवाते हैं।
किस तरह के मामलों की जांच करते हैं प्राइवेट डिटेक्टिव?
संजीव कुमार बताते हैं कि आजकल अलग-अलग काम के लिए अलग-अलग तक की डिटेक्टिव एजेंसियां हैं। कुछ एजेंसियां सिर्फ कॉर्पोरेट के काम संभालती हैं। कुछ एजेंसियां बैंकिंग के काम संभालती हैं। कुछ एजेंसियां सभी तरह के काम संभालती हैं। संजीव कुमार बताते हैं कि उनके पास हर तरह के क्लाइंट आते हैं और वो सभी तरह के काम संभालते हैं।
वो बताते हैं, 'ज्यादातर मामले शादी और अफेयर से जुड़े आते हैं। लोग जानना चाहते हैं कि जिनसे उन्होंने शादी की है या शादी करने वाले हैं, उसका परिवार कैसा है, उसका चरित्र कैसा है? शादी के बाद पति या पत्नी का एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर शुरू हो जाता है तो उसकी जांच-पड़ताल करवाने और सबूत जुटाने के लिए प्राइवेट डिटेक्टिव को हायर किया जाता है।'
और ये सब जांच-पड़ताल होती कैसे है?
इसके लिए कई सारे टूल्स होते हैं। संजीव बताते हैं कि 'टेक्नोलॉजी से लेकर ह्यूमन इंटेलिजेंस तक का इस्तेमाल किया जाता है। जिसकी पड़ताल की जा रही है, उसके दोस्तों-करीबियों से बात की जाती है। बात करते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि सामने वाले को किसी तरह का शक न हो।'
प्राइवेट डिटेक्टिव कई बार सर्वेयर बनकर भी घर जाकर जांच-पड़ताल करता है। कई बार डिटेक्टिव घंटों तक किसी के घर के बाहर खड़े रहते हैं। जिसकी पड़ताल की जा रही है, उस पर पैनी नजर रखी जाती है। वो किससे मिल रहा है? कहां जा रहा है? क्या कर रहा है? इन सब बातों को नोट किया जाता है और फिर सारे सबूत जुटाकर क्लाइंट को दे दिए जाते हैं।
एक उदाहरण के जरिए समझाते हैं, 'कई बार ऐसा क्लाइंट आता है जो कहता है कि उसकी पत्नी बालकनी में बैठकर घंटों किसी से बात करती है। मुझे जानना है कि वो किससे बात कर रही है। तो हम उसे एक गैजेट दे देते हैं, जिसे वो अपनी बालकनी के गमले में रख देता है। उस गैजेट में पत्नी क्या बात कर रही है, वो सब रिकॉर्ड हो जाती है।'
कुल मिलाकर, प्राइवेट डिटेक्टिव किसी की जांच-पड़ताल के लिए हर जरूरी तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। जासूसों की टीम 24 घंटे निगरानी करती है। उसकी हर एक्टिविटी पर नजर रखी जाती है।
इन सबमें खर्चा कितना?
प्राइवेट डिटेक्टिव को हायर करने की फीस एजेंसी और काम पर निर्भर करती है। कुछ काम हजारों में हो जाते हैं तो कुछ में लाखों रुपये भी खर्च भी हो जाते हैं।
संजीव कुमार बताते हैं, 'हर केस की फीस अलग-अलग होती है। पिछले साल उन्होंने एक केस सॉल्व किया था, जिसकी फीस 10 हजार रुपये थी। वहीं, एक केस के लिए उन्होंने 8.5 लाख रुपये लिए थे। एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर वाले केसेस में लगभग 50 हजार रुपये की फीस ली जाती है।'
एक केस को सॉल्व करने में कितना वक्त लगता है, ये भी हर केस पर निर्भर करता है। संजीव कुमार के मुताबिक, कुछ केसेस एक दिन में ही सॉल्व हो जाते हैं तो कुछ केसेस में हफ्ते लग जाते हैं तो कुछ केसेस ऐसे भी होते हैं जिन्हें सॉल्व करने में एक महीना या उससे ज्यादा भी लग जाता है।
कौन होते हैं डिटेक्टिव और कमाते कितना हैं?
प्राइवेट डिटेक्टिव बनने के लिए वैसे तो कोई खास पढ़ाई करने की जरूरत नहीं पड़ती। हालांकि, कुछ प्राइवेट डिटेक्टिव सुझाव देते हैं कि अगर किसी को जासूसी में अपना करियर बनाना है तो उसे फोरेंसिक साइंस या फिर हैंडराइटिंग एनालिसिस का कोर्स करना चाहिए।
यही सवाल जब हमने संजीव कुमार से पूछा तो उन्होंने बताया, '12वीं पास भी चलेगा, लेकिन तेज-तर्रार होना चाहिए। ऐसा हो जो टेक्नोलॉजी को अच्छे से हैंडल कर सके। अगर कोई पुलिस में रहा है या फिर किसी प्राइवेट एजेंसी में पहले काम कर चुका है तो उसे प्राथमिकता दी जाती है।'
कुछ डिटेक्टिव ऐसे होते हैं जो लाखों रुपये लेते हैं। कुछ ऐसे भी होते हैं जो इससे कम ही काम कर देते हैं। संजीव कुमार के मुताबिक, एक प्राइवेट डिटेक्टिव हर महीने औसतन 35 हजार रुपये कमा लेता है।
एक बात और, वो ये कि जरूरी नहीं कि कोई प्राइवेट डिटेक्टिव मैच्योर सा और थोड़ा बूढ़ा ही रहे। आजकल कम उम्र में भी लोग प्राइवेट डिटेक्टिव बन रहे हैं। संजीव कुमार की एजेंसी में ही सबसे यंग डिटेक्टिव साढ़े 23 साल का है।
वैसे तो प्राइवेट डिटेक्टिव का काम पुरुष और महिलाएं, दोनों ही करती हैं। मगर कुछ एजेंसियां ऐसी हैं जो लड़कियों से इस तरह का काम करवाने से बचती हैं। संजीव कुमार इसकी वजह बताते हैं, 'लड़कों के मुकाबले लड़कियों को जल्दी नोटिस कर लिया जाता है। मान लीजिए कि अगर किसी के घर के बाहर कोई लड़का 6 घंटे से खड़ा है तो उस पर किसी का ध्यान नहीं जाएगा। लेकिन कोई लड़की खड़ी है तो हर थोड़ी देर में कोई न कोई आकर पूछ लेगा कि मैडम कोई प्रॉब्लम तो नहीं है। इसी तरह अगर कोई महिला गाड़ी से पीछा करेगी तो भी सामने वाले का ध्यान उस पर जा सकता है।'
आसान नहीं काम, रिस्क भी उतना ही
प्राइवेट डिटेक्टिव का काम आसान नहीं होता। इसमें रिस्क भी बहुत होता है। ज्यादातर डिटेक्टिव ऐसे मामलों में नहीं पड़ते जिसमें पुलिस भी शामिल होती है।
संजीव कुमार बताते हैं कि 'जब कॉर्पोरेट के लिए जासूसी की जाती है तो हम अंडरकवर एजेंट लगा देते हैं। अंदर के ही किसी व्यक्ति को पकड़ लिया जाता है। वो व्यक्ति हमें अंदर की जानकारी देता रहता है। मगर क्या हो कि किसी को इस बारे में पता चल जाए? ऐसे में उसकी नौकरी जा सकती है। उस पर केस हो सकता है। हम भी कई बार किसी के घर सर्वेयर बनकर जाते हैं तो खतरा रहता है। कई बार तो जान पर भी बन आती है।'
वो कहते हैं, 'आप अगर किसी अनजान से बात करते हैं तो उसे बता सकते हैं कि हम फलां मीडिया से हैं तो वो आपसे बात कर लेता है। मगर हम ऐसा नहीं कर सकते। हम किसी को नहीं बता सकते कि कौन हैं। हमें अपनी पहचान छिपाकर ही रखनी होती है। हमारे काम में सबसे बड़ी चुनौती भी यही है कि हम कैसे खुद को छिपाकर सामने वाले की ज्यादा से ज्यादा जानकारी जुटा लें।'
क्या ये प्राइवेसी का उल्लंघन नहीं?
भारत में जासूसी को लेकर कोई कानून नहीं है। कोई ऐसा कानून नहीं है, जो प्राइवेट डिटेक्टिव को रेगुलेट कर सके। प्राइवेट डिटेक्टिव सर्विस देते हैं और क्लाइंट से पैसा लेते हैं।
संजीव बताते हैं, 'पुराने जमाने में भी लोग अपने बच्चों की शादी करवाने से पहले जांच-पड़ताल करवाते थे। आज भी ऐसा होता है। कुछ लोग इसके लिए प्राइवेट डिटेक्टिव हायर करते हैं।'
जब भी कोई केस आता है तो प्राइवेट डिटेक्टिव सारे सबूत जुटाकर क्लाइंट को दे देते हैं। फिर वो अपना जाने।
संजीव बताते हैं, 'एक बार एक क्लाइंट आया था। उसने कहा कि उसकी एक्स की शादी होने वाली है और जानना है कि वो किससे शादी कर रही है, मुझे उसका रिश्ता तुड़वाना है। हमने मना कर दिया था, क्योंकि ये पूरी तरह से गैर-कानूनी है।'
कई बार प्राइवेट डिटेक्टिव कोर्ट केसेस में भी फंस जाते हैं। भारत की पहली महिला प्राइवेट डिटेक्टिव रजनी पंडित को फरवरी 2018 में कॉल डेटा रिकॉर्ड की खरीद-फरोख्त के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
कितना बड़ा है प्राइवेट डिटेक्टिव का बाजार?
आज के दौर में जासूस खासकर प्राइवेट डिटेक्टिव की मांग बहुत ज्यादा बढ़ गई है। खासकर बड़े शहरों में। लोग अपने रिश्तेदारों, दोस्त-यारों, पति-पत्नी, बच्चों की छानबीन कराने के लिए इन प्राइवेट डिटेक्टिव को हायर करते हैं। एक अनुमान के मुताबिक, अकेले दिल्ली में ही साढ़े 3 हजार से ज्यादा प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसियां हैं।
एक रिपोर्ट की मानें तो भारत में हर साल प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसी का बाजार 30 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। अनुमान है कि भारत में प्राइवेट डिटेक्टिव का बाजार लगभग 2 हजार करोड़ रुपये का है।
और पढ़ें
Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies
CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap