logo

ट्रेंडिंग:

'काश पुरुषों को पीरियड्स होते', जब सुप्रीम कोर्ट की जज का फूटा गुस्सा

सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले की निंदा की। जस्टिस बी. वी. नागरत्ना ने सुनवाई के दौरान यह भी कहा कि काश पुरुषों को भी मासिक धर्म हो।

'Wish men menstruate' Supreme Court questions criteria for woman judge's sacking

सुप्रीम कोर्ट, Image Credit: PTI

कल्पना कीजिए कि आप एक महिला न्यायाधीश हैं और आपके कंधों पर समाज की उम्मीदों से लेकर फैसले सुनाने का बोझ है लेकिन आपको हर महीने खुद से एक जंग लड़नी पड़ती है। वो है-मासिक धर्म। ऐसे में आपके सामने चुनौतियों का एक पहाड़ होता है। इसी कड़ी में जस्टिस बी वी नागरत्ना ने एक टिप्पणी की और कहा कि काश पुरुषों को मासिक धर्म होता। ऐसा क्या हुआ कि सुप्रीम कोर्ट की महिला जज का गुस्सा फूट पड़ा। आइये जान लेते है...

 

सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के एक फैसले कि निंदा की है। दरअसल, एमपी हाईकोर्ट ने राज्य की एक महिला जज को उनके परफोर्मंस की वजह से बर्खास्त कर दिया था। गर्भपात के कारण उनकी दुर्दशा पर विचार नहीं किया गया। इस मामले की सुनवाई जस्टिस बी वी नागरत्ना और एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की और सिविल जजों की बर्खास्तगी के मानदंडों पर हाईकोर्ट से जवाब मांगा। 

11 नवंबर के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने लिया संज्ञान

बता दें कि 11 नवंबर 2024 को कथित असंतोषजनक प्रदर्शन के कारण राज्य सरकार ने 6 महिला सिविल जजों को बर्खास्त करने का फैसला लिया था। हालांकि, राज्य हाई कोर्ट ने 1 अगस्त को अपने पहले के प्रस्तावों पर पुनर्विचार किया और चार अधिकारियों को कुछ शर्तों के साथ बहाल करने का फैसला किया। वहीं, अन्य दो को इस प्रक्रिया से बाहर रखा गया।

'काश पुरुषों को मासिक धर्म होता'

अब इस मामले को स्वत: सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान में लिया। जस्टिस नागरत्ना ने महिला न्यायिक अधिकारी के आकलन पर सवाल उठाया। उन्होंने इस मामले पर टिप्पणी करते हुए कहा, 'मुझे उम्मीद है कि पुरुष जजों पर भी ऐसे मानदंड लागू किए जाएंगे। मुझे यह कहने में कोई हिचकिचाहट नहीं है। महिला गर्भवती हो गई है और उसका गर्भपात हो गया है। गर्भपात से गुजरने वाली महिला का मानसिक और शारीरिक आघात हुआ। हम चाहते हैं कि पुरुषों को मासिक धर्म हो तब उन्हें पता चलेगा कि यह क्या है? काश पुरुषों को मासिक धर्म होता।'

न्यायिक अधिकारियों को जारी नोटिस

बर्खास्त का संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट की रजिस्ट्री और न्यायिक अधिकारियों को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने कहा कि जजों को इस तथ्य के बर्खास्त कर दिया गया कि कोविड प्रकोप के कारण उनके काम का मात्रात्मक मूल्यांकन नहीं किया जा सका। 

वर्किंग महिलाओं के लिए मैटरनिटी लीव क्यों जरूरी?

पिछले साल 24 अगस्त को दिल्ली हाई कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि प्रेग्नेंट वर्किंग विमेन मैटर्निटी बेनिफिट (गर्भावस्था के दौरान मिलने वाले लाभ) की हकदार हैं। चाहे फिर महिला की परमानेंट या कॉन्ट्रैक्ट नौकरी ही क्यों न हो? सभी महिला को मैटर्निटी बेनिफिट एक्ट 2017 के तहत राहत देने से इनकार नहीं किया जा सकता। 

मैटरनिटी लीव के बारे में जानें

  1. पहले और दूसरे बच्चे के लिए 26 हफ्ते और तीसरे बच्चे के लिए 12 हफ्ते की लीव जरूरी है।
  2. महिला चाहे तो डिलीवरी के 8 हफ्ते पहले से ही छुट्टी ले सकती है। 
  3. बच्चा अडॉप्ट करने वाली महिलाओं को 12 हफ्ते की मैटर्निटी लीव दी जाती है।
  4. सरोगेट मां  को भी 12 हफ्ते यानी 48 दिनों की लीव मिलती है। 

मैटर्निटी​​​​​​​ बेनिफिट एक्ट (संशोधित) 2017 की मुख्य बातें 

  1. महिला कर्मचारियों के रोजगार की गारंटी देने के साथ-साथ उन्हें मैटर्निटी बेनिफिट का अधिकार मिलता हैं।
  2.  महिला कर्मचारी को छुट्टी देना जरुरी इसलिए भी होता है कि नवजात को अगले 6 महीने तक मां का दूध पीना अनिवर्या होता है। 
  3. महिला कर्मचारियों को पूरी सैलरी मिलती है। 
  4. सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं पर यह कानून लागू होता है। 
  5. मातृत्व लाभ अधिनियम 1961 के तहत पहले 24 हफ्तों की छुट्टी दी जाती थी, लेकिन अब इसे बढ़ाकर 26 हफ्तों में तब्दील कर दिया गया है।
  6. लीव लेने के लिए महिला को उसके संस्थान में पिछले 12 महीनों में कम-से-कम 80 दिनों की उपस्थिति होनी चाहिए।

 

Related Topic:

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

और पढ़ें

design

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap