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कोई SP का हत्यारा, किसी पर 1 करोड़ का इनाम, सरेंडर करने वाले नक्सलियों की कहानी

केंद्र सरकार की सख्त नीति और सुरक्षा बलों की कार्रवाई से नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या में बड़ी गिरावट आई है। नक्सल मुक्त अभियान के तहत कई बड़े इनामी नक्सली मारे गए हैं या उन्होंने सरेंडर करके मुख्यधारा में वापसी की है।

Mallojula Venugopal Rao

मल्लोजुला वेणुगोपाल राव, Photo Credit- PTI

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केंद्र सरकार की नक्सलवाद के खिलाफ सख्त और निर्णायक नीति से देश में नक्सल प्रभावित इलाकों में बड़ी कमी आई है। सुरक्षा एजेंसियों को इस दिशा में बहुत बड़ी सफलता मिली है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, सबसे अधिक नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या 2014 में 36 थी, जो 2025 में घटकर सिर्फ 3 रह गई है। वहीं कुल नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या भी 125 से घटकर अब केवल 11 रह गई है। नक्सल मुक्त अभियान के तहत बड़ी संख्या में नक्सलियों ने मुख्यधारा में लौटने के लिए सरेंडर किया है। इस साल कई बड़े इनामी नक्सली कमांडर या तो मारे गए या उन्होंने सरेंडर किया है। हाल ही में टॉप कमांडर माड़वी हिड़मा भी मारा गया था जबकि कई अन्य बड़े नक्सली जैसे मंजुला ने भी इस साल आत्मसमर्पण किया है। जानें मंजुला समेत और बड़े नक्सिलयों को जिन्होंने केवल इस साल सरेंडर किया है। 

 

नक्सलवाद की शुरुआत साल 1967 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी आंदोलन से हुई थी, जो बाद में रेड कॉरिडोर तक फैल गया। इससे छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, महाराष्ट्र, केरल, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के कुछ हिस्से प्रभावित हुए। अब यह आंदोलन काफी हद तक कमजोर पड़ चुका है और प्रभावित जिलों में वापस मुख्यधारा में लाने का काम तेजी से आगे बढ़ रहा है।

 

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आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली

प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) में छपी रिपोर्ट के अनुसार, साल 2025 में अब तक 317 नक्सलियों को मार गिराया गया, 862 को गिरफ्तार किया गया और 1973 ने आत्मसमर्पण किया है। 2024 में आत्मसमर्पण करने वाले नक्सिलयों की संख्या 881 थी। बड़ी सफलताओं में ऑपरेशन ब्लैक फॉरेस्ट में 27 कट्टर नक्सलियों का मारा जाना, 23 मई 2025 को बीजापुर में 24 का आत्मसमर्पण और अक्टूबर 2025 में छत्तीसगढ़ (197) और महाराष्ट्र (61) में 258 का आत्मसमर्पण शामिल है, जिनमें आत्मसमर्पण करने वालों में 10 वरिष्ठ नक्सली शामिल हैं। 

 

मंजुला (SP की हत्या में शामिल)

 

10 दिसंबर 2025 को 4 बड़े नक्सलियों ने सुरक्षा बल के सामने सरेंडर किया। इसमें 23 लाख की इनामी नक्सली मंजुला उर्फ लक्ष्मी पोटाई शामिल है। मंजुला पर एक साथ 29 जवानों के मारने की प्लानिंग रचने का आरोप है। छत्तीसगढ़ के मानपुर थाना क्षेत्र के मदनवाड़ा कोरकोट्टी में 12 जुलाई 2009 को एक बड़ी मुठभेड़ हुई थी। इस दौरान मानपुर फोर्स की टुकड़ी मदनवाड़ा जा रही थी। तभी नक्सलियों ने उन पर हमला बोल दिया। घटना की जानकारी मिलने के तुरंत बाद ही SP विनोद अपने साथियों को बचाने के लिए वहां पहुंचे जिसके बाद वह भी इस ऑपरेशन में फंस गए। नक्सलियों ने पुलिस जवानों पर हमला किया था। दोनों तरफ घंटों तक चली गोलीबारी में SP विनोद कुमार चौबे समेत 29 जवान शहीद हो गए थे। इस घटना के बाद पूरा देश हिल गया था। 

 

1 करोड़ का इनामी सुरेंद्र उर्फ कबीर

 

सुरेंद्र उर्फ कबीर भारत के 'मोस्ट वांटेड' नक्सलियों की लिस्ट में शामिल है। अलग-अलग राज्यों (जैसे छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र और तेलंगाना) को मिलाकर उस पर 1 करोड़ रुपये से अधिक का इनाम घोषित है। कबीर ने 7 दिसंबर 2025 को सरेंडर किया। सरेंडर के बाद उसने बताया कि नवंबर 2021 और मार्च 2022 को कान्हा नेशनल पार्क के बफर जोन से लगे गांव मालखेड़ी के तीन ग्रामीण- सुखदेव परते, संतोष यादव और जगदीश पटले की हत्या में शामिल था। उसने बताया कि इन लोगों ने पुलिस को हमारी मुखबिरी की थी। कबीर ने बताया कि 2013 के झीरम घाटी हत्याकांड में वह भी शामिल था। 

 

25 मई 2013 को छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले की झीरम घाटी में हुआ हमला भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में सबसे बड़े नक्सली हमलों में से एक था। NIA के अनुसार, कबीर उन टॉप कमांडरों में से एक था जिसने इस पूरे हमले की योजना बनाई और उसे अंजाम दिया। नक्सलियों का मुख्य उद्देश्य कांग्रेस की 'परिवर्तन यात्रा' के काफिले को निशाना बनाना था। इस हमले में छत्तीसगढ़ कांग्रेस के लगभग पूरे शीर्ष नेतृत्व का सफाया हो गया था, जिसमें महेंद्र कर्मा (बस्तर टाइगर और सलवा जुडूम के प्रणेता), नंदकुमार पटेल (तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष), विद्याचरण शुक्ल (पूर्व केंद्रीय मंत्री) शामिल थे। इनके अलावा कई सुरक्षाकर्मी और कार्यकर्ता भी शहीद हुए थे जिसे मिलाकर कुल 31 लोगों की मौत हो गई थी। 

 

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मल्लोजुला वेणुगोपाल राव

 

मल्लोजुला वेणुगोपाल राव, भारत के प्रतिबंधित संगठन CPI (माओवादी) का एक बड़ा नेता और रणनीतिकार रहा है। हाल ही में वह चर्चा में इसलिए आया क्योंकि उसने 14 अक्टूबर 2025 को महाराष्ट्र के गड़चिरौली में अपने करीब 60 साथियों के साथ पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया। साल 2010 में आजाद के मरने के बाद वह संगठन के आधिकारिक प्रवक्ता बना और प्रेस बयान जारी करता था। सुरक्षा बलों के अनुसार, 2010 के दंतेवाड़ा हमले जिसमें 76 CRPF जवान शहीद हुए थे और 2011 के चिंतलनार हमले जैसी बड़ी हिंसक घटनाओं के मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक माना जाता है। उन पर कई राज्यों में मिलाकर करीब 6 से 7 करोड़ रुपये के इनाम घोषित थे। 


सीताराम उर्फ विनय

 

सीताराम प्रतिबंधित संगठन CPI (माओवादी) का एक ऐक्टिव और कट्टर सदस्य माना जाता है। वह उत्तर प्रदेश और बिहार के सीमावर्ती इलाकों में संगठन के विस्तार में मुख्य भूमिका निभा रहा था। वह पिछले 13 साल से सुरक्षा एजेंसियों की आंखों में धूल झोंककर फरार चल रहा था। सीताराम पर मुख्य आरोप साल 2011-12 के दौरान पुलिस बल पर हमला करने और हथियार लूटने के प्रयास से जुड़ा है। वह उत्तर प्रदेश के 'रेड कॉरिडोर' (सोनभद्र, मिर्जापुर, चंदौली) में फिर से नक्सली विचारधारा को फैलाने और युवाओं को जोड़ने का काम कर रहा था।

 

थिपिरी तिरुपति उर्फ 'देवजी'

 

देवजी प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) का जनरल सेक्रेटरी है जिसने मई 2025 में नंबला केशव राव (बसवराजू) की मौत के बाद संगठन की कमान संभाली थी। इस पर 1 करोड़ से ज्यादा का इनाम था। पुलिस ने विजयवाड़ा, एलुरु और अन्य क्षेत्रों से 30 से अधिक माओवादियों और उनके सहयोगियों को गिरफ्तार किया। इनमें से कई लोग 'देवजी' की सुरक्षा टीम का हिस्सा थे।

 

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सुकमा में गांधी ताटी उर्फ कमलेश का सरेंडर

 

गांधी ताटी उर्फ अरब उर्फ कमलेश, जो माओवादी डिवीजनल कमेटी का सदस्य था। उसने जनवरी 2025 में नारायणपुर (सुकमा क्षेत्र) में सरेंडर किया। वह 2010 में हुए तड़मेटला हमले में शामिल था। इस हमले में 76 CRPF जवान शहीद हो गए थे उनकी हत्या में शामिल था। इसके साथ ही उसने नेलनार एरिया में 50 गांवों पर 8 वर्षों तक आतंक फैलाया।

 

पिछले 11 सालों में केंद्र सरकार ने नक्सलवाद के खिलाफ अभियानों में आत्मसमर्पण नीति को भी शामिल किया है। सरेंडर समेत विभिन्न नीतियों का सकारात्मक असर दिख रहा है, जिससे नक्सली हिंसा में अब तक 70 प्रतिशत से अधिक की कमी आई है। सरकार ने सैकड़ों नक्सलियों को रोजगार और सुरक्षा की गारंटी देकर उन्हें सफलतापूर्वक मुख्यधारा से जोड़ा है। साथ ही, नक्सलवाद के पूर्ण उन्मूलन के लिए 31 मार्च 2026 की समय-सीमा तय की गई है।

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