16 दिसंबर 1971 को लगभग 4 बजकर 55 मिनट पर पाकिस्तान पूर्वी कमान के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाजी ने भारत के सामने घुटने टेके और आत्मसमर्पण के डॉक्यूमेंट्स पर हस्ताक्षर किया। ये हस्ताक्षर ढाका में भारतीय पूर्वी कमान के जीओसी-इन-सी लेफ्टिनेंट जनरल जेएस अरोड़ा की उपस्थिति में किए गए।
भारत-पाकिस्तान का युद्ध केवल 13 दिनों के भीतर ही खत्म हो गया था। इस युद्ध के बाद पाकिस्तान दो हिस्सों में बंट गया और बांग्लादेश का जन्म हुआ। भारतीय सेना ने लगभग 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों को बंदी बनाया गया था, जिनमें कुछ बंगाली सैनिक भी शामिल थे जो पाकिस्तान के प्रति काफी वफादार थे।
13 दिन चला था युद्ध
पाकिस्तान पर भारत की जीत की याद में विजय दिवस मनाया जाता है। ये युद्ध 3 दिसंबर, 1971 को उस दौरान शुरू हुआ था, जब पूर्वी पाकिस्तान में स्वतंत्रता दिवस के लिए संघर्ष चल रहा था। 13 दिनों के इस युद्ध के बाद 16 दिसंबर को पाकिस्तानी सेना ने बिना किसी शर्त के भारत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और ऐसे बांग्लादेश आजाद हो गया।
ऐसे शुरू हुआ था युद्ध
1970 के पाकिस्तानी आम चुनावों के बाद पूर्वी पाकिस्तान में बंगाली राष्ट्रवादी आत्म निर्णय की मांग करने लगे। नतीजा ये निकला की 25 मार्च 1971 को पश्चिमी पाकिस्तान ने इस आंदोलन को रोकने के लिए ऑपरेशन सर्चलाइट चलाया। इस दौरान पूर्वी पाकिस्तान में मांग करने वालों को निशाना बनाया गया। जब पूर्वी पाकिस्तान में विरोध भड़का तो बांग्लादेश मुक्ति बाहिनी नामक सशस्त्र बल ने पाकिस्तान सेना पर मोर्चा खोल दिया।
बढते तनाव के बीच भारत का मिला था सपोर्ट
बढ़ते तनाव को देखते हुए भारत ने बांग्लादेशी राष्ट्रवादियों का पूरा सहयोग किया और नाराज पाकिस्तान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। कई हवाई हमले किए गए। इस दौरान पाकिस्तान ने ऑपरेशन चंगेज खान के नाम से भारत के 11 एयरेबसों पर धाबा बोल दिया। इसी के साथ 3 दिसंबर, 1971 को भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो गया।
जब भारतीय सेना के सामने 93 हजार पाकिस्तान सैनिकों ने किया था सरेंडर
भारतीय सेना ने पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) में चारों तरफ से मार्च किया। भारतीय सेना का उद्देश्य केवल पाकिस्तानी सैनिकों के बनाए गए किले शहरों पर कब्जा करना था ताकि दुश्मनों के लिए भागने का कोई रास्ता न बचे। भारत के तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल सैम मानेकशॉ ने 8 दिसंबर को पाकिस्तान सैनिकों के लिए एक संदेश भेजा जिसमें आत्मसमर्पण करने की बात लिखी गई थी। पूर्वी मोर्चे पर पाकिस्तानी सेना के चीफ जनरल आमिर अब्दुल्ला खान नियाजी ने आखिरकार युद्ध की जगह शांति को चुना और 16 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान ने अपनी पराजय स्वीकार कर ली। लगभग 93 हजार पाकिस्तान सैनिकों के साथ भारत के सामने सरेंडर कर दिया था।