1978 में सेना ने एक शख्स की जमीन पर अपना कब्जा किया लेकिन इसके लिए कभी पैसे नहीं दिए। अब कोर्ट ने कहा है कि सेना पूरे 46 साल का किराया चुकाए। समझिए क्या है केस।
जम्मू-कश्मीर के कई इलाकों में भारतीय सेना कैंप बनाकर रह रही है। कई जगहों पर सेना खुद की जमीन पर कैंप बनाती है तो कुछ ऐसी जगहें भी हैं जहां किसी की निजी संपत्ति पर सेना अपना डेरा डाल लेती है। ऐसे ही एक मामले में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट ने अब सेना को आदेश दिया है कि वह 46 साल का किराया चुकाया। यह किराया उस शख्स को चुकाया जाना है जिसकी जमीन पर लंबे समय तक सेना का कब्जा था।
रिपोर्ट के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर के बडगाम जिले में साल 1978 से सेना ने एक शख्स की निजी जमीन पर कब्जा किया हुआ था। उस शख्स ने लंबे समय तक कोर्ट में मुकदमा लड़ा और अपनी संपत्ति इस्तेमाल करने के एवज में मुआवजा मांगा है। अब अदालत ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा है कि सेना इस शख्स को तब से लेकर अब तक का किराया चुकाए, जब से इस जमीन पर कब्जा किया गया था। जस्टिस संजय धर ने अपना फैसला सुनाते हुए इस बात पर जोर दिया कि अगर किसी की जमीन का इस्तेमाल किया जाता है तो उसका हक है कि वह राज्य की संस्थाओं या सेना से भी इसका मुआवजा ले सके।
क्या है मामला?
याचिका के मुताबिक, सेना ने 1978 में अस्थायी तौर पर यह जमीन अपने कब्जे में ली थी। इसके लिए कोई औपचारिक आदेश जारी नहीं किया और जमीन के मालिक को इसके लिए पैसे भी नहीं दिए गए। नतीजा यह हुआ कि दोनों पक्षों यानी जमीन के मालिक और सेना के बीच विवाद हो गया और मामला अदालत तक पहुंच गए। जमीन के मालिक ने बार-बार स्थानीय संस्थाओं और अदालत से मदद मांगी। अब अदालत का मानना है कि लंबे समय से किराया न दिए जाने का मतलब यह है कि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 300A के मुताबिक, जमीन के मालिक के मौलिक अधिकारों का हनन है। यही वजह है कि कोर्ट ने ऐसा फैसला सुनाया है।
इसके लिए एक सक्षम राजस्व संस्था मार्केट रेट के हिसाब से किराया तय करेगी और सेना पूरे 46 साल का किराया चुकाएगी। कहा जा रहा है कि सेना इस फैसले की समीक्षा कर रही है और उसी के हिसाब से आगे कदम उठाएगी। अभी उसके पास सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प भी मौजूद है।