भारत के लिए ईरान कितना अहम, जंग बढ़ी तो क्या PAK को होगा फायदा?
मध्य पूर्व में भारत के लिए ईरान न केवल रणनीतिक बल्कि ऐतिहासिक महत्व रखता है। मध्य एशिया तक पहुंच का प्रवेश द्वार है। रूस और भारत की करीबी भी ईरान के रास्ते संभव है।

ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्लाह अली खामेनई। (Photo Credit: X/@khamenei_ir)
ईरान पर इजरायल के हमले के बाद कांग्रेस नेता सोनिया गांधी ने एक लेख लिखा। इसमें उन्होंने भारत सरकार की चुप्पी पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने यह बताया कि ईरान कितना अहम हैं। उन्होंने अपने लेख में गाजा का मुद्दा भी उठाया है। 13 जून को पहली बार इजरायल ने ईरान के अंदर घुसकर हमला किया। जवाब में ईरान भी इजरायल पर सैकड़ों मिसाइल दाग चुका है। शनिवार की रात पहली बार अमेरिका इस जंग में कूद पड़ा है। अमेरिकी हमले के बाद पीएम मोदी ने तुरंत ईरानी राष्ट्रपति से बात की और बातचीत के माध्यम से मुद्दे को हल करने का आह्वान किया। आज जानते हैं कि ईरान कितना अहम हैं और उसका व्यापारिक व रणनीतिक महत्व क्या है?
भारत और ईरान के संबंधों का इतिहास बेहद पुराना है। मगर 15 मार्च 1950 की मैत्री संधि से नई दोस्ती की नींव पड़ी। 2001 में तेहरान और 2003 में नई दिल्ली घोषणा पत्र से दोनों देशों की रिश्तों में गहराई आई। दोनों देशों के बीच प्रधानमंत्री स्तर की 13, उपराष्ट्रपति स्तर की 4, संसदीय स्तर की तीन, मंत्री स्तर की 40 और सचिव स्तर की कुल 19 दौरे हो चुके हैं।
2016 में पहली बार ईरान पहुंचे थे पीएम मोदी
2016 में पीएम मोदी ने पहली बार ईरान का दौरा किया था। इस दौरान दोनों देशों के बीच कुल 12 समझौतों पर सहमति बनी थी। भारत-ईरान और अफगानिस्तान के बीच व्यापार व परिवहन से जुड़ा समझौता भी हुआ था। पीएम मोदी के दौरे के 2 साल बाद 2018 में ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी ने भारत का दौरा किया था। पिछले साल अक्टूबर महीने में रूस के कजान शहर में 16वां ब्रिक्स शिखर सम्मलेन आयोजित किया गया था। यहां पीएम मोदी ने ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेजेशकियन से मुलाकात की थी। पीएम मोदी इससे पहले 2023 में ब्रिक्स शिखर सम्मलेन और 2022 में समरकंद में आयोजित एससीओ मीटिंग में तत्कालीन ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी से मुलाकात कर चुके थे।
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ईरान के साथ भारत के हित
रणनीतिक रूप से ईरान बेहद अहम हैं। भारत के उर्जा सुरक्षा, क्षेत्रीय जुड़ाव और जियोपॉलिटिक्स संतुलन में ईरान बेहद अहम किरदार है। भारत से मध्य एशिया, रूस और अफगानिस्तान तक जाने का रास्ता ईरान से गुजरता है। ईरान में किसी भी प्रकार का संकट भारत के न केवल व्यापारिक बल्कि रणनीतिक हितों को नुकसान पहुंचा सकता है।
चाबहार मुंबई को रूस से जोड़ने वाला बंदरगाह
पाकिस्तान के ग्वादर के जवाब में भारत ने ईरान के साथ मिलकर चाबहार बंदरगाह विकसित किया। 2015 में दोनों देशों के बीच चाबहार में शाहिद बेहेश्टी बंदरगाह के विकास से जुड़ा समझौता हुआ था। भारत ने यहां अरबो डॉलर का निवेश कर रखा है। ऊर्जा जरुरतों के साथ-साथ मध्य एशिया दुर्लभ खनिज के लिहाज से भी बेहद अहम है। भारत यहां सिर्फ चाबहार के रास्ते पहुंच सकता है।
ईरान से अफगानिस्तान तक कनेक्टिविटी
भारत और अफगानिस्तान के बीच सीधी सीमा नहीं है। भारत ईरान के रास्ते ही अफगानिस्तान से व्यापारिक और रणनीतिक संबंध को आगे बढ़ा रहा है। ईरान में किसी भी प्रकार का संकट भारत को अफगानिस्तान से अलग-थलग कर सकता है। ऐसी स्थिति का फायदा चीन उठा सकता है। चीन लंबे समय से अफगानिस्तान में अपना प्रभाव जमाने की कोशिश में है। हाल ही में वह पाकिस्तान और अफगानिस्तान के नेताओं के साथ बैठक भी कर चुका है।
भारत और ईरान के संबंध पर सेंटर पर ईरानी स्टडीज में आसिफ शुजा लिखते हैं, भारत के लिए ईरान का रणनीतिक महत्व है। अगर रिश्ते सिर्फ ऊर्जा पर आधारित होते तो भारत दूर हो गया होता। मध्य एशिया तक भारत की पहुंच में ईरान अहम है। अफगानिस्तान में भारत के रणनीतिक और सुरक्षा हित हैं। यहां तक पहुंचना भी ईरान के बिना संभव नहीं है।
पाकिस्तान को हो सकता फायदा
द डिप्लोमैट में गौरव सेन लिखते हैं कि ईरान से पाकिस्तान की लंबी सीमा लगती है। दोनों देशों के बीच रिश्ते उतने गहरे नहीं है, जितने भारत और ईरान के बीच हैं। 2024 में आतंकियों को शरण देने के मामले में ईरान पाकिस्तान के अंदर एयर स्ट्राइक कर चुका है। ईरान का पड़ोसी होने के नाते पाकिस्तान अमेरिका का मोहरा बन सकता है। बदले में अमेरिका पाकिस्तान को सैन्य और वित्तीय मदद दे सकता है। अगर ऐसा हुआ था भारत इसका विरोध करेगा।
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भारत और ईरान एक-दूसरे से क्या खरीदते हैं?
भारत ईरान के पांच सबसे बड़े व्यापारिक साझेदारों में से एक रहा है। दोनों देशों के अहम व्यापारिक समझौते हैं। ईरान बड़ी मात्रा में भारत से सामानों का निर्यात करता है। साल 2019 से भारत ने ईरान से तेल खरीदना बंद कर दिया है।
ईरान
- चावल
- चाय
- चीनी
- दवाइयां
- मानव निर्मित स्टेपल फाइबर
- विद्युत मशीनरी
- कृत्रिम आभूषण
भारत
- सूखे मेवे
- अकार्बनिक/कार्बनिक रसायन
- कांच के बने सामान
ईरान में चीन का दखल
अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण भारत और ईरान के द्विपक्षीय संबंधों को गति नहीं मिली है। साल 2019 से भारत ईरान से कोई तेल नहीं खरीदता है। एक ओर जहां भारत के रिश्ते इजरायल और अमेरिका से मजबूत हो रहे हैं तो दूसरी तरफ ईरान में चीन का दखल बढ़ा है। भारत के समर्थन के बाद ही साल 2023 में ईरान को एससीओ और ब्रिक्स जैसे संगठनों में जगह मिली। चीन और ईरान के बीच रणनीतिक साझेदारी समझौता है। इसके तहत 25 वर्षों में चीन ईरान के बंदरगाहों, ऊर्जा, उद्योग और परिवहन के क्षेत्र में भारी भरकम निवेश करेगा। आज चीन ईरान के तेल का सबसे बड़ा खरीदार है।
जब ईरान ने भारत को दिए झटके
- ईरान भारत को कई मौकों पर झटके भी दे चुका है। ईरान के फरजाद-बी गैस फील्ड में भारत की कंपनी ओएनजीसी ने गैस की खोज की थी। बाद में भारत को ईरान ने इस प्रोजेक्ट से अलग कर दिया और कहा कि वह खुद ही इसको विकसित करेगा।
- भारत ने ईरान के साथ एक समझौता किया। इसके तहत चाबहार पोर्ट को सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत की राजधानी जाहेदान को रेलवे लाइन से जोड़ना था। बाद में इसी रेल लाइन से अफगानिस्तान को जोड़ने का प्लान था, लेकिन ईरान ने एकतरफा तरीके से भारत से अपना प्रस्ताव वापस ले लिया।
- जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने और नागरिकता संशोधन कानून (CAA) समेत कई मुद्दों पर ईरान खुलकर भारत की निंदा कर चुका है। यहां तक कि ईरान के सर्वोच्च नेता ने भारत में अल्पसंख्यक की स्थिति पर न केवल टिप्पणी की बल्कि भारत के अंदरूनी मामलों में दखल देने की कोशिश की।
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