तप से वर्चस्व तक, जूना अखाड़े की कहानी क्या है?
जूना अखाड़ा को सबसे प्राचीन कहा जाता है। आइए जानते हैं इस अखाड़े का इतिहास और कुछ जरूरी बातें।

महाकुंभ 2025। (Photo Credit: PTI)
जूना अखाड़ा। अयोध्या का राम मंदिर आंदोलन हो या प्रयागराज का महाकुंभ, जब-जब हिंदू धर्म की चर्चा छिड़ती है, अखाड़ों का जिक्र आ ही जाता है। हिंदू धर्म के मान्यता प्राप्त 13 अखाड़े हैं। उन अखाड़ों में सबसे ताकतवर और संख्या बल में सबसे मजबूत अखाड़ा है, 'जूना अखाड़ा।'
जूना अखाड़े के 4 लाख से ज्यादा सदस्य हैं। ये लोग संन्यासी संत हैं, जिन्होंने अपना पिंडदान करके समाज से विरक्ति ले ली है। जिन नागा संन्यासियों की कठिन साधना को लोग आज भी देखकर सन्न रह जाते हैं, उनके बनने की नियमावली तक यही अखाड़े तय करता है।
सनातन धर्म के 13 अखाड़ों में से कुछ अखाड़े शैव संप्रदाय के हैं, कुछ शाक्त हैं, कुछ वैष्णव हैं। जूना अखाड़ा, अवहान अखाड़ा, आतल अखाड़ा, निर्वाणी अणि अखाड़ा, अग्नि अखाड़ा और नवनाथ अखाड़ा शैव परंपरा के माने जाते हैं। निर्मोही, निर्वाणी, दिगंबर, निरंजनी, महानिर्वाणी और नवनाथ अखाड़े में भी बड़ी संख्या में संत दीक्षित हैं।
अखाड़ों का काम क्या था?
अखाडों का मूल अर्थ है योद्धाओं का संगठन। अखाड़े के संत हथियारों से लैस होते थे। अलग-अलग संकटपूर्ण स्थितियों में राष्ट्र और सनातन धर्म की रक्षा के लिए ये अखाड़े आगे आए हैं। जूना अखाड़े के संत शास्त्र और शस्त्र दोनों से दीक्षित होते हैं।

क्या है अखाड़ों की धार्मिक मान्यता?
ऐसी मान्यता है कि आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म की स्थापना के लिए सबसे पहले चार मठों की स्थापना की थी। ये मठ श्रृंगेरी मठ, गोवर्धन मठ, शारदा मठ और ज्योर्तिमठ थे। मठ और मंदिरों की संपत्ति और सनातन धर्म की सुरक्षा के लिए सनातन धर्म के अलग-अलग संप्रदायों में अखाड़े की शुरुआत हुई।
क्यों अखाड़ों की जरूरत पड़ी?
कुछ ऐसी भी जनश्रुतियां हैं कि जब देश में बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार बढ़ने लगता था, शैव और वैष्णव मत के मानने वाले लोगों का उत्पीड़न होने लगा, सनातन धर्म ही संकट में आने लगा, तब इन अखाड़ों ने आदि शंकराचार्य के दिग्विजय रथ को संभाला। कहते हैं कि शस्त्र और शास्त्र दोनों में पारंगत इन अखाड़े के साधुओं ने सनातन धर्म को संभाले रखा।
कौन हैं अखाड़ों के मूल संत?
आदि शंकराचार्य के 4 प्रमुख शिष्य हुए। पद्मनाभ, सुरेश्वराचार्य, हस्तामलकाचार्य और तोटकाचार्य। पद्मनाभ को गोवर्धन पीठ की जिम्मेदारी मिली, सुरेश्वराचार्य को श्रृंगेरी शारदा मठ, हस्तमलकाचार्य को द्वारका मठ और तोटकाचार्य को ज्योतिर्मठ की। शंकराचार्य के इन 4 शिष्यों और उनसे संबंधित मठों से 10 नाम निकले। अरण्य, आश्रम, भारती, गिरि, पर्वत, पुरी, सरस्वती, सागर, तीर्थ, वाना। ये सभी नाम, एक परंपरा से जुड़े रहे।
कैसे अस्तित्व में आया जूना अखाड़ा?
7वीं शताब्दी के आसपास संन्यासियों के 52 संतों ने दत्तात्रेय अखाड़ा बनाया। इसे एक और नाम मिला भैरव अखाड़ा। बाद में इसका नाम बदला तो जूना अखाड़ा कहा गया। जूना का अर्थ पुराना होता है। इसे आप 'प्राचीन मंडल' भी कह सकते हैं।

कब शुरू हुआ जूना अखड़ा?
जूना अखाड़ा इतना पुराना है कि इसकी ठीक-ठीक तिथि बताना कठिन है। सनातन धर्म वैदिक सभा के अध्यक्ष अरविंद सोमयाज्ञी बताते हैं कि जूना अखाड़े के पहले मठ स्थापना 1145 ईस्वी में उत्तराखंड में हुई थी। पहला मठ कर्ण प्रयाग में है।
किसकी आराधना करते हैं जूना अखाड़े के संत?
जूना अखाड़े के ईष्टदेव भगवान शिव हैं। जूना अखाड़े को ही भैरव अखाड़ा भी कहते हैं। इस अखाड़े के आदि गुरु भगवान दत्तात्रेय कहे जाते हैं। बड़ा हनुमान घाट, वाराणसी में पंचदशनाम जूना अखाड़े का मुख्यालय है। इसके 4 अन्य प्रमुख केंद्र हैं। हरिद्वार में भैरव अखाड़ा, उज्जान में दत्त अखाड़ा, नासिक में पंचदशनाम और प्रयागराज में जूना अखाड़ा।

कब अखाड़ों ने दिखाई थी अपनी ताकत?
जूना अखाड़े से जुड़े संतों का कहना है कि आदिशंकराचार्य के बाद जब देश में इस्लामिक आक्रमण हुए, तब मठों और मंदिरों की प्रतिष्ठा की रक्षा करने के लिए इन अखाड़ों से जुड़े संत सामने आए थे। मुगलकाल में भी कई जगहों पर अखाड़ों के संन्यासियों ने बलिदान दिया। इतिहासकार इन घटनाओं का कम जिक्र करते हैं।
और कौन से हैं चर्चित अखाड़े?
देश के 13 अखाड़ों के साथ-साथ ही संन्यासियों का माईवाड़ा और किन्नर अखाड़ा भी अस्तित्व में है। जिसमें पंचायती अखाड़ा, महानिर्वाणी और जूना अखाड़ा सबसे बड़े अखाड़े हैं। महिला नागा साधु भी जूना अखाड़े के ज्यादा करीब हैं।
अखाड़ों का अनुशासन क्या है?
सन्यासी परंपरा के सभी सातों अखाड़े में नागा संन्यासी, महामंडलेश्वर समेत लाखों सदस्य होते हैं। अखाड़ों का अपना अनुशासन होता है। सभी अखाड़ों की अपनी आंतरिक प्रशासनिक व्यवस्था होती है। अखाड़ों की सम्मिलित प्रशासनिक व्यवस्था भी होती है। सभी अखाड़ों को मिलाकर राष्ट्रीय अखाड़ा परिषद काम करती है।

जूना अखाड़े की पद संरचना क्या है?
अखाड़ों का आत्म अनुशासन होता है। प्रशासनिक व्यवस्था को मजबूत करने के लिए पंचों का संगठन काम करती है। आठ सदस्य वाले अष्ट कौशल में महंत शामिल होते हैं। श्रीमहंत में ही अध्यक्ष महामंत्री और सचिव भी बनाए जाते हैं। अखाड़े में थानापति भी एक प्रमुख पद होता है। 8 महंतों वाले अष्ठ कौशल की मदद के लिए भी आठ उप महंत होते हैं। उपमहंत अखाड़े के सभी आध्यात्मिक और धार्मिक कामकाज देखते हैं। अखाड़ों के रुपये-पैसे का हिसाब भी वही रखते हैं।
किसका अनुशासन मान रहे हैं संत?
जूना अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि महाराज हैं। वहीं, जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय संरक्षक श्रीमहंत हरिगिरी हैं।

क्यों पंचों के फैसले बाध्यकारी होते हैं?
गुरु-शिष्य परंपरा की अनिवार्य शर्त अपने गुरु को ईश्वर की तरह मानना है। उनके आदेश बाध्यकारी होते हैं। गुरु-शिष्य परंपरा में धन, वैभव, उम्र नहीं, अनुशासन और पद का मान अहम होता है। जिसे भी अखाड़े या धार्मिक परिषद की अध्यक्षता मिलता है, उसके आदेशों को अखाड़े के सदस्यों को मानना ही होता है। अगर अनुशासन नहीं माना जाता है तो उन्हें परिषद से निष्कासित किया जा सकता है।
कैसे मिलती है जूना अखाड़े की सदस्यता?
जूना अखाड़े के अनुशासन बेहद कठिन हैं। जूना अखाड़े के नागा संन्यासियों की परीक्षा पीड़ातीत है। वैराग्य, संन्यास की पहली शर्त है। अगर साधक ने संन्यास लिया है, ब्रह्मचर्य का व्रत लिया है, संसार से विरक्त है तो जूना अखाड़े का सदस्य बन सकता है। साधक के तप की अवधि 1 साल से 1 दशक तक की हो सकती है। साधक को कठिन व्रत लेने होते हैं, भौतिक वस्तुओं का मोह छोड़ना होता है, जिस पंथ के साधक हैं, उस पंथ के अनुशासन को मानना होता है।

अगर साधक अघोरी है तो अघोर पंथ के 5 वाम-मार्गी तंत्र-साधना को अपनाना होगा। इन्हें पांच मकार भी कहते हैं। मदिरा, मांस, मत्स्य, मुद्रा और मैथुन। अघोर पंथ में यह भी वर्जित नहीं है। अगर साधक नागा संन्यासी बनना चाहते हैं तो महापुरुष, अवधूत और दिगंबर की अवस्थाओं से गुजरना होता है। इन सारी प्रक्रियाओं से पहले आपको अपने गुरु से दीक्षा लेनी होती है। कई परीक्षाएं होती हैं। हर संन्यासी अपना पिंडदान कर चुका होता है।
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