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कारगिल विजय दिवस: 5 वीर सपूत जिन्होंने किया था अदम्य साहस का प्रदर्शन

मई से जुलाई 1999 के बीच लड़े गए कारगिल युद्ध में भारतीय सेना के साहस को पूरे विश्व ने सराहा था।

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सांकेतिक चित्र(Photo Credit: Freepik AI)

कारगिल युद्ध, जो मई से जुलाई 1999 के बीच लड़ा गया भारत और पाकिस्तान के बीच एक महत्वपूर्ण युद्ध था। इस युद्ध में भारत ने वीरता और रणनीति का ऐसा परिचय दिया, जिसे पूरी दुनिया ने सराहा। बता दें कि हर 26 जुलाई के दिन कारगिल विजय दिवस मनाई जाती है और इस दिन देश के उन सपूतों को स्मरण किया जाता है, जिन्होंने अपनी मातृ भूमि की रक्षा के लिए इस युद्ध में अपने प्राण न्योछावर किए।

 

कई वीर जवानों ने अपने प्राणों की आहुति देकर देश की रक्षा की। उनमें से कुछ योद्धा आज भी हमारे दिलों में जीवित हैं। आइए जानते हैं कारगिल युद्ध के 5 महान नायकों के बारे में, जिनका योगदान अविस्मरणीय है।

कैप्टन विक्रम बत्रा (परम वीर चक्र)

हिमाचल प्रदेश में जन्में कैप्टन विक्रम बत्रा कारगिल युद्ध के सबसे चर्चित और वीर नायकों में से एक थे। उन्होंने 5140 चोटी पर कब्जा करने के लिए दुश्मनों से जमकर लड़ाई की। उनका कोड वाक्य था – 'यह दिल मांगे मोर', जो पूरे देश में लोकप्रिय हो गया।

 

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उन्होंने अपने साहस, रणनीति और नेतृत्व से न केवल दुश्मनों को हराया, बल्कि अपने साथी जवानों की जान भी बचाई। जब वह एक घायल सैनिक को बचाने के लिए आगे बढ़े, तभी 7 जुलाई 1999 को दुश्मनों की गोली से वीरगति को प्राप्त हुए। उन्हें मरणोपरांत परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया।

लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडेय (परम वीर चक्र)

उत्तर प्रदेश के लाल लेफ्टिनेंट मनोज पांडेय ने खालूबार क्षेत्र में दुश्मनों की पोस्ट पर हमला करते समय अपनी वीरता का परिचय दिया। उन्होंने अपने सैनिकों का नेतृत्व करते हुए दुश्मनों की गोलियों का डटकर सामना किया।

 

गंभीर रूप से घायल होने के बावजूद वे तब तक आगे बढ़ते रहे जब तक कि दुश्मनों को दांतों तले चने नहीं चबवा दिए। उन्होंने यह साबित कर दिया कि एक सच्चा सैनिक कभी पीछे नहीं हटता। उनकी शहादत पर उन्हें भी परम वीर चक्र प्रदान किया गया।

राइफलमैन संजय कुमार (परम वीर चक्र)

देवभूमि हिमाचल प्रदेश के राइफलमैन संजय कुमार को टाइगर हिल की लड़ाई में अद्भुत साहस दिखाने के लिए जाना जाता है। जब उनके यूनिट को भारी गोलीबारी का सामना करना पड़ा, तब संजय कुमार अकेले दुश्मन की बंकर पर चढ़ गए और दो आतंकियों को मार गिराया।

 

वह खुद भी घायल हुए लेकिन रुके नहीं। उन्होंने अपने साथियों के लिए रास्ता साफ किया, जिससे उनकी यूनिट टाइगर हिल पर कब्जा करने में सफल रही। उनके अद्भुत साहस के लिए उन्हें परम वीर चक्र से नवाजा गया।

 

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ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव (परम वीर चक्र)

योगेंद्र सिंह यादव उस समय केवल 19 वर्ष के थे जब उन्होंने टाइगर हिल की चढ़ाई की। दुश्मन की गोलियों से वे तीन बार घायल हुए, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी।

 

उन्होंने अपने साथियों के लिए दुश्मन की बंकरों को साफ किया, जिससे बाकी सैनिक ऊपर चढ़ सके। उनके इस बहादुरी से भारत को टाइगर हिल पर विजय मिली। वह इस युद्ध में घायल होने के दुश्मनों को झुकने पर मजबूर कर दिया। उन्हें भी परम वीर चक्र से सम्मानित किया गया।

मेजर राजेश सिंह अधिकारी (महावीर चक्र)

उत्तराखंड नैनीताल मेजर राजेश अधिकारी ने युद्ध के शुरुआती दिनों में रणनीतिक स्थिति पर कब्जा करने की योजना बनाई। उन्होंने दुश्मनों के खिलाफ जिस साहस और नेतृत्व का प्रदर्शन किया, वह प्रेरणादायक था।

 

उन्होंने अपने सैनिकों के साथ मिलकर भारी गोलीबारी में दुश्मन को पीछे धकेला और भारत के लिए प्रमुख पोस्ट पर कब्जा किया। इस दौरान वह वीरगति को प्राप्त हुए। उन्हें मरणोपरांत महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।

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