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क्या हिंदुओं को भी मिल सकता है 'अल्पसंख्यक' का दर्जा?

जम्मू-कश्मीर के एक संगठन ने केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू से मुलाकात कर हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग की है। ऐसे में जानते हैं कि क्या हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग क्यों हो रही है?

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प्रतीकात्मक तस्वीर। (AI Generated Image)

क्या कश्मीरी हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जा सकता है? इसी मांग को लेकर सोमवार को ऑल इंडिया कश्मीरी समाज (AIKS) ने केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू से मुलाकात की थी। AIKS ने राज्य में अल्पसंख्यक आयोग का गठन करने की भी मांग की।


AIKS ने किरेन रिजिजू से मुलाकात कर कश्मीरी हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग करते हुए कहा कि उन्हें भी अल्पसंख्यकों के लाभ मिलने चाहिए।

पर ऐसा क्यों?

ऐसी मांग करने वालों का दावा है कि जम्मू-कश्मीर में हिंदू अल्पसंख्यक हैं, बावजूद इसके इन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं मिला है, जिस कारण अल्पसंख्यकों के लाभ भी नहीं मिल पाते। 2011 की जनगणना के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में हिंदुओं की आबादी 28 फीसदी है, जबकि मुस्लिमों की आबादी 68 फीसदी से ज्यादा है।


2011 की जनगणना के आंकड़ों की मानें तो उस वक्त जम्मू-कश्मीर की कुल आबादी 1.25 करोड़ थी। इनमें 35.66 लाख हिंदू और 85.67 लाख मुस्लिम थे। 2001 से 2011 के बीच जम्मू-कश्मीर में मुस्लिमों की आबादी 26 फीसदी से ज्यादा बढ़ गई थी। इसी दौरान हिंदुओं की आबादी 19 फीसदी बढ़ी थी।

क्या अल्पसंख्यक हो रहे हैं हिंदू?

सिर्फ जम्मू-कश्मीर ही नहीं, बल्कि कई राज्यों में हिंदुओं के अल्पसंख्यक होने का दावा किया जा रहा है। तीन साल पहले वकील अश्विनी उपाध्याय ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर दावा किया था कि जम्मू-कश्मीर समेत कई राज्यों में हिंदुओं की आबादी घट रही है और वो अल्पसंख्यक हो रहे हैं। अपनी याचिका में उन्होंने मांग की थी कि हिंदुओं को भी अल्पसंख्यक का दर्जा मिले और उन्हें अल्पसंख्यकों को मिलने वाले अधिकार भी दिए जाएं।


उन्होंने अपनी याचिका में कहा था, कश्मीर में 4%, नागालैंड में 9%, मेघालय में 11.5%, अरुणाचल प्रदेश में 29%, पंजाब में 38%, मणिपुर में 41%, मिजोरम में 2.7% और लद्दाख में महज 1% हिंदू हैं। 


उन्होंने कहा था कि इन राज्यों में हिंदू अल्पसंख्यक हैं लेकिन अभी तक केंद्र सरकार ने इन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा नहीं दिया है। इस कारण इन्हें अल्पसंख्यकों के अधिकार नहीं मिलते और ये अपने धार्मिक शैक्षणिक संस्थान भी नहीं खोल सकते।

 

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क्या वाकई घट रहे हैं हिंदू?

पिछले साल मई में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिति की एक रिपोर्ट आई थी। इस रिपोर्ट में बताया गया था कि 1950 से 2015 के बीच हिंदुओं की आबादी 7.8 फीसदी घट गई। इसमें कहा गया था कि भारत में बहुसंख्यक आबादी घटी है, जबकि दूसरे देशों में बहुसंख्यकों की आबादी बढ़ रही है।


2011 की जनगणना के मुताबिक, भारत की 121 करोड़ की आबादी में 96.63 करोड़ हिंदू और 17.22 करोड़ मुस्लिम हैं। आबादी में हिंदू 79.8% और मुस्लिम 14.2% हैं। 2001 की जनगणना की तुलना में आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी थोड़ी कम हुई थी। 2001 की जनगणना के मुताबिक, आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी 80.5% और मुस्लिमों की 13.4% थी।


क्या हिंदुओं को मिल सकता है अल्पसंख्यक का दर्जा?

भारत में हिंदू बहुसंख्यक हैं। हालांकि, कुछ राज्यों में ये अल्पसंख्यक हैं। केंद्र सरकार राष्ट्रीय स्तर पर किसी धर्म से जुड़े लोगों को अल्पसंख्यक का दर्जा देती है। मार्च 2022 में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा था कि राज्य सरकार चाहें तो हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा दे सकती हैं।

 

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अभी किन्हें माना गया है अल्पसंख्यक?

अल्पसंख्यक की कोई परिभाषा तय नहीं है। हालांकि, केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में बताया था कि 1957 में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा था कि अगर किसी राज्य में धर्म या भाषा के आधार पर लोगों की आबादी 50% से कम है तो उन्हें अल्पसंख्यक माना जा सकता है।


अल्पसंख्यक समुदाय कौन होगा? इसे अल्पसंख्यक कानून के तहत केंद्र सरकार अधिसूचित करती है। 1993 में केंद्र सरकार ने मुस्लिम, ईसाई, सिख, पारसी और बौद्ध को अल्पसंख्यक समुदाय का दर्जा दिया था। 2014 में जैन धर्म के लोगों को भी अल्पसंख्यकों का दर्जा मिल गया था। 

अल्पसंख्यक के दर्जे से क्या होगा?

अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को कई फायदे मिलते हैं। संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 में उन लोगों के लिए कुछ विशेष प्रावधान किए गए हैं, जो धर्म या भाषा के आधार पर अल्पसंख्यक हैं। इन लोगों को अपने धर्म के शैक्षणिक संस्थान खोलने और संचालित करने का अधिकार है।

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