'पत्नी प्रेमी के साथ है, गुजारा भत्ता मैं देता हूं', पति की आपबीती
अतुल सुभाष की आत्महत्या के बाद विवाहित महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाए गए कानूनों पर नई बहस छिड़ गई है। इन कानूनों से कुछ पीड़ित पुरुषों की कहानी सामने आई है। पढ़ें पहला किस्सा।

घरेलू हिंसा के कानूनों पर नई बहस छिड़ गई है। (तस्वीर- सांकेतिक, फ्री पिक)
अतुल सुभाष की आत्महत्या चर्चा में है। उनकी आत्महत्या के बाद नए सिरे से बहस छिड़ी है कि क्या महिलाओं के संरक्षण के लिए बने कानूनों पर फिर से विचार करना चाहिए। अतुल सुभाष की पत्नी गिरफ्तार चुकी हैं। अदालतों में ऐसे कई मुकदमे हैं, जब महिलाओं के आरोपों के बाद पुरुषों की मानसिक स्थिति बिगड़ी है, उन्होंने भी आत्महत्या की कोशिशें की हैं। कुछ इसी तरह के एक पीड़ित शख्स से टीम खबरगांव ने बातचीत की।
दिनेश यादव पेशे से दिहाड़ी मजदूर हैं। वह उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर जिले के एक छोटे से गांव मैरवां में रहते हैं। दिनेश की उम्र 30 साल है। उन्हें कभी मनरेगा में काम मिल जाता है, कभी पड़ोस के कस्बे में। जब कभी काम नहीं होता तो रेत ढोकर लोगों के घर पहुंचाते हैं। अगर उन्हें काम मिल जाता है तो दिन के 300 रुपये बन जाते हैं, अगर नहीं मिलता है तो चौराहे पर काम की तलाश में बैठे रहते हैं। साल 2018 में उनकी शादी पड़ोस के ही एक गांव में हुई थी।
शादी के कुछ महीने बाद जब पत्नी अपने मायके विदा हुई तो लौटी ही नहीं। वह अपने साथ अपने गहने-जेवर भी लेकर चली गई। जब दिनेश विदाई करने पहुचा तो उसने उसी दिन झगड़कर दहेज उत्पीड़न, घरेलू हिंसा और गुजारा भत्ता की शिकायत दर्ज करा दी। दिनेश की पत्नी ने पुलिस में लिखित शिकायत दी कि उसे ससुराल में मारा पीटा जाता है, दहेज के लिए दबाव बनाया जाता है।
परिवार पर प्रताड़ना का झूठा केस
दिनेश के मां-बाप और भाई-भाभी पर आरोप लगा कि वे दहेज के लिए प्रताड़ित करते हैं। पुलिस ने तलब किया। अधिकारियों ने दिनेश और उसके परिवार को फटकारा। दिनेश का कहना है कि पुलिस ने उसकी सुनी ही नहीं। पुलिस महिला के कहे हुए को सच मान रही थी। शिकायत में कहा गया था कि दिनेश उसकी मां और पिता मिलकर उसकी पत्नी को मारते थे। उसके पड़ोसी, गांव वाले बताते हैं कि दोनों बुजुर्ग हैं, उम्र के 70वें साल में हैं, ऐसे में किसी भी युवा महिला को पीटना उनके लिए शारीरिक तौर पर संभव नहीं रहता। बड़े भाई पर भी मारपीट के आरोप लगे, वह मानसिक रूप से विक्षिप्त है और बाहर ही भटकता है।
दिनेश के अधिवक्ता आनंद कुमार मिश्र बताते हैं कि पुलिस ने समझौता कराया और विवाद को खत्म कराने की कोशिश की। करीब 10 दिनों के लिए वह अगस्त 2018 में दोबारा घर गई। इस बार लौटी तो फिर वही शिकायत पुलिस तक पहुंची। इस बार पंचायत के लोग जुटे। दोनों गांव के प्रधान जुटे। दिनेश की पत्नी ने पंचायत के सामने कहा कि दिनेश उसे तलाक देना चाहता है।
पंचायत में पत्नी ने रखी अजीब शर्त
दिनेश ने कहा कि वह चाहता है कि उसकी पत्नी, अपने ससुराल में रहे, न कि मायके में रहे। जब दबाव पड़ने लगा तो उसने कहा कि अगर दिनेश अलग हो जाए तो साथ रहेगी, वरना उसे छोड़ देगी। दिनेश ने कहा कि वह पहले ही मां-बाप से अलग रह रहा है। दिनेश ने कहा कि मैं तुम्हारे घर के सारे बर्तन-सामान वापस कर रहा हूं। उसने सब ट्रॉली में लदवाकर उसके घर भेज दिया। कहा कि मैं तुम्हारा सारा सामान लौटा दे रहा हूं लेकिन तुम मेरे साथ रहो। वह दिनेश के घर आई और रहने लगी।
मां-बाप को पत्नी ने पीटा, प्रेमी को घर बुलाया और चली गई
दिनेश के घर आकर उसने खूब हंगामा किया। सास ससुर को भी मारा। पड़ोसियों ने भी कहा कि दिनेश के मां-बाप को चोट लगी है। यह सब तब हुआ जब दिनेश पड़ोस के गांव में मजदूरी के लिए गया था। पत्नी ने शिकायत की फिर दिनेश का पूरा परिवार थाने तलब हुआ। समझा-बुझाकर पुलिस ने सबको घर भेजा। इस बार दिनेश की पत्नी दो दिन रही और तीसरे दिन किसी तीसरे शख्स को बुलाकर अपने घर चली गई।
यह केस साल 2018 में सिद्धार्थनगर की फैमिली कोर्ट में पहुंच गया। फैमिली कोर्ट में दिनेश की ओर से वकील आनंद कुमार मिश्र हैं। दिनेश की पत्नी ने अदालत में दंड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 125 के तहत कोर्ट में भरण-पोषण का मुकदमा दायर किया। दहेज उत्पीड़न और घरेलू हिंसा का केस भी दायर किया।
उसकी पत्नी इस बार जाने के बाद किसी और पुरुष के साथ रहने लगी। दोनों पति-पत्नी की तरह साथ में रहते हैं। कोर्ट से दिनेश को हर बार समन जारी होता है। वह पहुंचता है। वह दिन के महज 300 रुपये भी मुश्किल से कमाता है, उसके पास अपने वकील को भी देने के पैसे नहीं होते। एडवोकेट आनंद कुमार मिश्र बताते हैं कि कई बार वह उन्हीं से ही पैसे मांगकर ले जाता है।
वकील के चैंबर में ही दी धमकी- तुम्हें बर्बाद कर दूंगी
दिनेश की पत्नी 2019 में एडवोकेट आनंद के चैंबर में आई। कोर्ट में उसके केस की सुनवाई होने वाली थी। उसकी पत्नी के वकील भी वहीं बैठे थे कि समझौता दायर किया जा सके। दोनों पक्षों के वकीलों का कहना था कि जब वह अलग रह रही है तो केस को आपसी सहमति से वापस ले लेना चाहिए। उसकी पत्नी ने शर्त रखी कि अगर दिनेश उसे 1 लाख रुपये, उसके गहने, बेड-बर्तन लौटा दे तो सुलह हो जाए। दिनेश ने कहा कि वह सामान तो पहले ही लौटा चुका है। 1 लाख रुपये नहीं दे पाएगा। उसके नाम से न तो कोई जमीन है, न ही उसकी आर्थिक स्थिति ऐसी है कि वह यह दे पाए।
दिहाड़ी 300 की, आदेश 5000 प्रति माह का
चैंबर में ही उसकी पत्नी भड़क गई। गाली देकर कहा कि अब वह सब लेगी उसका जीना हराम कर देगी। उसके वकील को भी भला-बुरा कहा। दिनेश की पत्नी ने अपना वकील भी बदल दिया। इस दौरान अदालत में केस चलता रहा। जैसे-तैसे 25000 रुपये के आस-पास उसने अपनी पत्नी को दिए भी। फैमिली कोर्ट ने लंबी सुनवाई के बाद 2020 में अंतरिम आदेश किया कि दिनेश हर महीने 5000 रुपये प्रतिमाह दे। दिनेश को अगर महीने में हर दिन काम मिले तो उसकी कमाई 6000 रुपये प्रति माह होगी।
तारीखों पर क्या धमकी देती है पत्नी?
दिनेश ने अदालत से कहा कि वह इतनी रकम देने में सक्षम नहीं है। उसके पास जमीन भी नहीं है कि वह बेचकर गुजारा-भत्ता दे सके। उसने अदालत से यह भी कहा कि वह यह नहीं दे पाएगा। जज से भी उसे फटकार मिली। कोर्ट ने एडवर्स ऑर्डर दिया। जेल जाने की नौबत आ गई। घरेलू हिंसा का केस भी कोर्ट में चल रहा है। आए दिन तारीखों पर उसकी पत्नी कहती है कि तुम्हें जेल भेजकर रहूंगी।
'प्रेमी के साथ रहती है, फिर भी मांग रही गुजारा भत्ता'
दिनेश लगातार केस चलने की वजह से जिला के बाहर किसी दूसरे शहर कमाने भी नहीं जा पाता है। उसने आत्महत्या की कोशिश भी की थी, अवसाद में आकर नशा भी करने लगा था।
दिनेश ने खबरगांव से बातचीत में बताया, 'भइया अब जीने का मन नहीं करता है। कमाई-धमाई है नहीं। मेरी पत्नी किसी और के साथ रह रही है। कोर्ट में कई तारीख पर कह चुका हूं। वह अपने उसी प्रेमी के साथ कोर्ट में आती है, हर बार गाली देकर जाती है। गांव में लोग चिढ़ाते हैं कि तेरी पत्नी अपने प्रेमी के साथ रह रही है और खर्चा भी तुझसे ले रही है। अब इस उम्र में मुझसे कोई शादी भी नहीं करेगा। कभी-कभी लगता है कि मर ही जाना ठीक रहेगा। जब अदालत में कहता हूं कि वह दूसरे के साथ रह रही है, गुजारा भत्ता मैं क्यों दूं तो कहा जाता है साबित करूं। यह साबित करने की जिम्मेदारी तो पुलिस की होनी चाहिए न?'
दिनेश के वकील कोर्ट के आदेश के खिलाफ हाई कोर्ट गए हैं। वह पैसे न होने की वजह से अपनी पैरवी नहीं कर पा रहा है। एडवोकेट आनंद कुमार मिश्र बताते हैं कि यह पहला केस नहीं है, जिसमें इस तरह के मामले सामने आए हैं। महिलाओं के संरक्षण के लिए लाए गए कई कानून सही और त्वरित जांच न होने की वजह से पुरुषों के उत्पीड़न के साधन बन गए हैं।
नोट: यह केस अभी कोर्ट में विचाराधीन है। गोपनीयता के लिए पक्षकारों के नाम और गांव के नाम बदल दिए गए हैं।
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