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जब संसद को घेरने पहुंच गए थे हजारों छात्र, मंडल कमीशन का विरोध क्यों?

साल 1990 में मंडल आयोग की रिपोर्ट का विरोध करते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र सड़कों पर उतर आए थे। छात्रों का गुस्सा केवल दिल्ली में ही नहीं बल्कि इलाहबाद, पटना समेत 22 यूनिवर्सिटी में देखने को मिला।

Mandal Commission protests of 1990

मंडल कमीशन के विरोध में सड़कों पर हुआ था विरोध प्रदर्शन Image Credit: Archive

करीब 34 साल पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी का एक छात्र तिलमिलाते हुए भीड़ से उठता है और खुद पर मिट्टी का तेल छिड़क लेता है। कोई कुछ समझ पाता, इससे पहले ही वह खुद को आग के हवाले कर देता है। आसपास के छात्रों को लगता है कि कोई विरोध में पुतला जला रहा है, लेकिन वहां मौजूद लोग उसकी मदद करने के लिए कंबल और पानी डालने लगते है। वह आधे से ज्यादा जल चुका था, लेकिन जिंदा था।

 

ये शख्स और कोई नहीं बल्कि दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष राजीव गोस्वामी थे, जिन्होंने 1990 में मंडल विरोधी आंदोलन के दौरान खुद को आग लगा ली थी। उस समय राजीव दिल्ली यूनिवर्सिटी साउथ देशबंधु कॉलेज के छात्र थे। 19 सितंबर 1990 में दिल्ली के अलग-अलह हिस्सों में हजारों छात्र भूख-हड़ताल पर बैठे थे। सभी के हाथों में तथ्तियां थीं जिन पर लिखा था ‘वीपी सिंह मुर्दाबाद, मंडल कमीशन डाउन-डाउन’

 

क्या था मंडल कमीशन?

इसी साल मंडल कमीशन के तहत देश में पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण लागू किया गया था। इससे देशभर के छात्रों का दो हिस्सों में बंटवारा हो गया था। सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गों की स्थिति को देखते हुए मोरारजी देसाई की सरकार ने एक 6 सदस्यीय पिछड़ा वर्ग आयोग (OBC) का गठन किया। इसके अक्ष्यक्ष बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल को बनाया गया। इसी आयोग का नाम पड़ा मंडल कमीशन जिसका देशभर में जमकर आंदोलन हुआ।

 

इस कमीशन पर जब भड़क गए थे छात्र

इस कमीशन की रिपोर्ट को लेकर सिफारिश हुई कि पिछड़े वर्ग के लोगों को सामाजिक बराबरी देने के लिए OBC कैटगरी वालों को नौकरियों में 27 प्रतिशत आरक्षण देने की बात की गई। 7 अगस्त, 1990 को तत्कालीन प्रधानमंत्री वी पी सिंह ने इस कमीशन को लागू कर दिया और इसी के साथ नौकरियों में कुल आरक्षण 49.5% हो गया। अगली सुबह बड़े-बड़े अक्षरों में सभी अखबारों पर छपा हुआ था आरक्षण का मुद्दा। जनरल कैटगरी के युवाओं को सरकार का यह फैसला नामंजुर था। मंडल कमीशन का विरोध करने के लिए दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्र सड़कों पर उतर गए और विरोध प्रदर्शन करते हुए ‘कलम चलाना छोड़ दिया, अब बंदूक चलाना सीखेंगे।‘

 

2 हफ्तों तक चला था आंदोलन

2 हफ्तों तक छात्रों का आंदोलन चलता रहा, लेकिन इसका सरकार पर कोई खास असर नहीं दिखाई दे रहा था। 24 अगस्त, 1990 को 10 हजार छात्रों ने संसद को घेरा और बसों पर बैठकर नारे लगाते हुए निकल पड़े। पुलिस भी तुरंत एक्शन में आई और लाठी-डंडो और आंसू गैस के गोले बरसाने लगे। हजारों छात्रों को गिरफ्तार किया गया। माहौल शांत करने के लिए गोलियां भी चलाई गई जिसमें 2 की मौत हो गई।

 

तिलमिला उठा छात्रों का गुस्सा

छात्रों का गुस्सा केवल दिल्ली में ही नहीं बल्कि इलाहबाद, पटना समेत 22 यूनिवर्सिटी में देखने को मिला। छात्रों के गुस्से को शांत करने के लिए सेना तक को तैनात किया गया। ऑप्रेशन ब्लू स्टार के बाद यह दूसरी ऐसी घटना थी जब सेना को बुलाया गया। लेखक देबाशीष मुखर्जी की किताब ‘द डिसरप्टर’ में लिखा हैं कि मंडल आंदोलन में लगभग 150 से अधिक छात्रों ने आत्महत्या करने की कोशिश की थी। वहीं, लगभग 65 छात्र मारे गए थे। मंडल कमीशन के विरोध नें DU के छात्रों ने पढ़ाई का बहिष्कार किया और किंग्सवे कैंप में विरोध प्रदर्शन किया। रामजस कॉलेज के बाहर मंडल चौक पर हजारों छात्र धरने पर बैठे। सड़कों को अवरुद्ध करना। डीटीसी बसों को हाईजैक करना और ड्राइवरों को रिंग रोड पर चक्कर लगाने के लिए मजबूर करना, ये सब विरोध प्रदर्शन में शामिल था।

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