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विदेश से पढ़ाई, वित्त मंत्री से PM तक... ऐसा रहा मनमोहन का सफर

26 सितंबर 1932 को मनमोहन सिंह का जन्म हुआ था। उन्होंने कैम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पढ़ाई की थी। 1991 में उन्हें वित्त मंत्री नियुक्त किया गया था। मनमोहन सिंह 10 साल प्रधानमंत्री रहे।

manmohan singh

मनमोहन सिंह। (फाइल फोटो-PTI)

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह अब नहीं रहे। गुरुवार रात तबीयत बिगड़ने के बाद उन्हें दिल्ली एम्स में भर्ती कराया गया था, जहां उनका निधन हो गया। मनमोहन सिंह 10 साल देश के प्रधानमंत्री रहे। उनके निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि देश ने सबसे सम्मानित नेताओं में से एक को खो दिया।


मनमोहन सिंह को आर्थिक उदारीकरण का श्रेय दिया जाता है। उनकी वजह से ही भारत का बाजार दुनियाभर के लिए खुला। ऐसा कहा जाता है कि 1991 में जब मनमोहन सिंह पहला बजट लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के पास गए थे तो उन्होंने इसे खारिज कर दिया था। इसके बाद मनमोहन ने ऐतिहासिक बजट तैयार किया।

पाकिस्तान के पंजाब में हुआ था जन्म

26 सितंबर 1932 को मनमोहन सिंह का जन्म ब्रिटिश इंडिया के पंजाब के गाह गांव में हुआ था। मनमोहन बहुत छोटे थे तभी उनकी मां का निधन हो गया था। पेशावर के एक स्कूल में 10 साल की उम्र तक मनमोहन ने उर्दू मीडियम में पढ़ाई की थी। 


बंटवारे के बाद उनका परिवार पाकिस्तान से विस्थापित होकर हलद्वानी आ गया था। 1948 में उनका परिवार अमृतसर चला गया। गांव में लालटेन की रोशनी में पढ़ाई की। उनके पिता उन्हें डॉक्टर बनाना चहाते थे। उन्होंने प्री-मेडिकल कोर्स में दाखिला भी लिया, लेकिन कुछ वक्त ही छोड़ दिया।

कैम्ब्रिज-ऑक्सफोर्ड से की पढ़ाई

अमृतसर के हिंदू कॉलेज में उन्होंने पढ़ाई की। पंजाब यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में बैचलर और मास्टर्स डिग्री हासिल करने के बाद मनमोहन विदेश चले गए। 1957 में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से उन्होंने इकोनॉमिक्स की पढ़ाई पूरी की।


कैम्ब्रिज में पढ़ाई पूरी करने के बाद मनमोहन भारत लौट आए। यहां आकर उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर की नौकरी की। इसके बाद 1960 में PhD के लिए वो ऑक्सफोर्ड गए। यहां उन्होंने भारत की एक्सपोर्ट परफॉर्मेंस पर थीसीस तैयार की। 

प्रोफेसर से चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर तक

ऑक्सफोर्ड से PhD की डिग्री हासिल करने के बाद मनमोहन फिर पंजाब यूनिवर्सिटी में पढ़ाने लगे। 1966 से 1969 तक वो संयुक्त राष्ट्र में रहे। 1969 से 1971 तक मनमोहन दिल्ली यूनिवर्सिटी में इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर रहे। 1972 में उन्हें भारत का चीफ इकोनॉमिक एडवाइजर नियुक्त किया गया। उसके बाद उन्हें वित्त मंत्रालय का सचिव बनाया गया। जब प्रणब मुखर्जी वित्त मंत्री थे तो 1982 में मनमोहन को आरबीआई का गवर्नर नियुक्त किया गया। 


1985 से 1987 तक मनमोहन योजना आयोग (अब नीति आयोग) के उपाध्यक्ष रहे। इसके बाद वो स्विट्जरलैंड के एक थिंक टैंक 'साउथ कमिशन' के महासचिव बने। स्विट्जरलैंड से लौटने के बाद मनमोहन को तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का सलाहकार नियुक्त किया गया। मार्च 1991 में उन्हें UGC का चेयरमैन बनाया गया।

वित्त मंत्री और फिर प्रधानमंत्री

मनमोहन सिंह 1991 से 1996 तक पीवी नरसिम्हा राव की सरकार में वित्त मंत्री रहे। बीबीसी के पत्रकार मार्क टुली को दिए इंटरव्यू में मनमोहन ने बताया था, 'जिस दिन नरसिम्हा राव अपनी कैबिनेट बना रहे थे, उस दिन उन्होंने अपने प्रधान सचिव को मेरे पास भेजा। उसने कहा कि प्रधानमंत्री चाहते हैं कि आप वित्त मंत्री बने। मैंने इसे गंभीरता से नहीं लिया। अगले दिन वो मुझपर झल्ला गए और कहा कि जल्दी राष्ट्रपति भवन आइए और शपथ लीजिए। इस तरह से राजनीति में मेरी शुरुआत हुई।'


1991 में जब देश आर्थिक संकट से जूझ रहा था तो मनमोहन सिंह ने बतौर वित्त मंत्री इसे संभाला। 1991 में उन्होंने ऐसा बजट पेश किया, जिसकी बदौलत भारत की अर्थव्यवस्था खुली। जल्द ही भारत इस आर्थिक संकट से निकल आया। अक्तूबर 1991 में मनमोहन पहली बार राज्यसभा सदस्य चुने गए।


मार्च 1998 से मई 2004 तक मनमोहन सिंह राज्यसभा में विपक्ष के नेता रहे। 2004 के लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस की अगुवाई में यूपीए ने बहुमत हासिल किया तो मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री चुना गया। मनमोहन 2004 और फिर 2009 में प्रधानमंत्री चुने गए। 


3 जनवरी 2014 को जब मनमोहन ने बतौर प्रधानमंत्री ने कहा था, 'जब इतिहास लिखा जाएगा तो पता चलेगा कि मैं निर्दोष हूं। मैं नहीं कहता कि अनियमितता नहीं हुई। हुई है पर मीडिया में बहुत कुछ बढ़ा-चढ़ाकर लिखा गया है।' एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा था, 'मैं मानता हूं कि आज की मीडिया की तुलना में इतिहास मेरे प्रति ज्यादा दयालु होगा।'

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