logo

ट्रेंडिंग:

मोहन भागवत के बयान से अलग है RSS के मुखपत्र की राय, संघ में सबकुछ ठीक?

ध्यान देने वाली बात ये है कि संघ के मुखपत्र ऑर्गनाइजर की संपादकीय में मोहन भागवत के मंदिर-मस्जिद विवादों पर दिए गए बयान का कोई जिक्र नहीं किया गया है।

Organiser magazine editorial

मोहन भागवत और ऑर्गनाइजर की राय अलग।

देश में पिछले कुछ महीनों से मस्जिदों में मंदिर खोजने का विवाद गरमाया हुआ है। देश के तमाम बड़े मंदिरों से होते हुए अब मामला सोमनाथ और संभल की जामा मस्जिद पर आकर रूकी हुई है। लेकिन इस बीच राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा है कि ऐसे मुद्दों को उठाना अस्वीकार्य है। 

पिछले दिनों संघ प्रमुख ने एक बयान में कहा, 'राम मंदिर के साथ हिंदुओं की श्रद्धा है लेकिन राम मंदिर निर्माण के बाद कुछ लोगों को लगता है कि वो नई जगहों पर इसी तरह के मुद्दों को उठाकर हिंदुओं का नेता बन सकते हैं। ये स्वीकार्य नहीं है।' ये बात भागवत ने ऐसे समय में कही है जब देश में मंदिर-मस्जिद वाले कई नए चैप्टर लिखे जा रहे हैं।
  
मगर, इसी बीच एक ऐसा वाकया घटित हुआ है, दरअसल संघ के विचार में ही अलग-अलग राय दिख रही है। आरएसएस के मुखपत्र ऑर्गनाइजर की राय मोहन भागवत के बयान से बिल्कुल अलग नजर आ रही है।

वास्तविक इतिहास जानना जरूरी 

ऑर्गनाइजर ने संभल मस्जिद विवाद पर अपनी ताजा कवर स्टोरी पब्लिश की है। इसमें कहा गया है कि विवादित स्थलों और संरचनाओं का वास्तविक इतिहास जानना जरूरी है। पत्रिका में कहा गया है कि जिन धार्मिक स्थलों पर आक्रमण किया गया या ध्वस्त किया गया, उनकी सच्चाई जानना सभ्यतागत न्याय को हासिल करने जैसा है। ऑर्गनाइजर की यह बात संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान से बिल्कुल जुदा है।
 

ऑर्गनाइजर में आगे कहा गया है कि जिन धार्मिक स्थलों पर हमला किया गया या जिन्हें ध्वस्त किया गया, उनकी सच्चाई जानना जरूरी है। 'सभ्यतागत न्याय के लिए और सभी समुदायों के बीच शांति और सौहार्द का प्रचार करने के लिए इतिहास की समझ होना जरूरी है।'

एक समान दृष्टिकोण की जरूरत

ऑर्गनाइजर के संपादकीय में एडिटर प्रफुल्ल केतकर ने कहा है कि देश में धार्मिक कटुता और असामंजस्य को खत्म करने के लिए एक समान दृष्टिकोण की जरूरत है। बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर जाति आधारित भेदभाव के मूल कारण तक गए और इसे खत्म करने के संवैधानिक उपाय दिए। उन्होंने तर्क देते हुए कहा है कि यह तभी हासिल किया जा सकता है जब भारत के मुसलमान सच्चाई को स्वीकार करें।

मुसलमान अन्याय को स्वीकार करें

पत्रिका के लेख में आगे कहा गया है कि भारत के मुस्लिमों के लिए यह जरूरी है कि वह आक्रांताओं द्वारा हिंदुओं के साथ किए गए ऐतिहासिक अन्याय को स्वीकार करें। सोमनाथ से लेकर संभल और उसके आगे के सच को जानने की यह लड़ाई धार्मिक श्रेष्ठता के बारे में नहीं है। यह हमारी राष्ट्रीय पहचान को साबित करने और सभ्यतागत न्याय के बारे में है। लेख में ऐतिहासिक घावों को भरने की भी बात कही गई है। इन सबके बीच सवाल उठने लगे हैं कि क्या संघ के भीतर सबकुछ ठीक है? 

क्या है विवाद?

ध्यान देने वाली बात ये है कि संघ के मुखपत्र ऑर्गनाइजर की संपादकीय में मोहन भागवत के मंदिर-मस्जिद विवादों पर दिए गए बयान का कोई जिक्र नहीं किया गया है। बता दें कि उत्तर प्रदेश के संभल जिले में शाही जामा मस्जिद में कोर्ट के आदेश के बाद एक टीम सर्वे करने पहुंची थी, तभी वहां तनाव फैल गया। तनाव में पुलिस के साथ झड़पें हुईं, पत्तथरबाजी के साथ में आगजनी हुई। इसके बाद जिले में भी सर्वे जारी हैं और कई जगहों पर मूर्तियां और संरचनाएं मिली हैं।   

Related Topic:#Mohan Bhagwat

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

और पढ़ें

design

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap