एक चूक और हजारों की मौत, क्या है ओडिशा के सुपर साइक्लोन की कहानी?
कहने वाले कहते हैं कि हजारों लोगों की जान बचाई जा सकती थी अगर सही वक्त पर IMD ने अलर्ट जारी कर दिया होता। क्या है इसकी पूरी कहानी, आइए समझते हैं।

ओडिशा के सुपर साइक्लोन में कम से कम 10000 लोग मारे गए थे। (तस्वीर- प्रतीकात्मक, Meta AI)
प्रलय की तस्वीर कैसी होती होगी जिसकी कल्पना आपने धार्मिक ग्रंथों, पौराणिक कहानियों या गल्प कथाओं में पढ़ी है? जिस 'जलजले' या कयामत के नाम से ही लोग खौफ खाते हैं, वह आए तो उस जगह की तस्वीर कैसी होती होगी? उसकी जद में आने वाले लोगों पर क्या बीती होगी, वे क्या सोच रहे होंगे। जिस सुंदर दुनिया पर उन्हें बेहद गुरूर रहा हो, उसे तबाह होते देखकर उन्हें कैसा लगा होगा। अगर इन सवालों के जवाब चाहिए तो आपको ओडिशा जाना होगा। ओडिशा ने महाप्रलय देखा है, हजारों लोगों की मौत देखी है और यह भी देखा है कि कैसे संसाधनों की कमी, मौसम विभाग की चेतावनी की विफलता, देखते-देखते 1000 हजार लोगों की 'जल समाधि' बना देता है।
लोग प्रलय देख रहे थे, तेज हवाएं चल रही थीं, मूसलाधार बारिश हो रही थी, तटो पर समुद्र में 20-20 फीट ऊंची लहरे उठ रही थीं। यह इशारा साफ था कि आज सब मिट जाएगा। कुछ लोग फिर भी जिंदगी आस में, अपनी गाढ़ी मेहनत की कमाई हुई पूंजी निकाल रहे थे, बटुए, हाथों और कमर में पैसे पकड़कर, सामान लेकर अचानक फरार हो रहे थे लेकिन जब मौत पीछे पड़ी हो तो जिंदगी की रफ्तार थमने लगती है। वे खत्म हो गए, मर गए, मिट गए। हाथों पैसे थे, जीने के अरमान थे और परिवार संग पलायन कर जान बचाने का सपना था लेकिन सपना सपना रह गया। सब खत्म हो गया, परिवार के परिवार साफ हो गए। ये कहानी है ओडिशा में आए अक्टूबर 1999 के विनाशकारी भूकंप की।
कैसे जानलेवा हो गया ये तूफान?
अक्टूबर 1999 के आखिरी दिनों में दक्षिणी चान सागर में एक उष्णकटिबंधीय विक्षोभ पैदा हुआ। यह पश्चिमी इलाके की ओर खिसकने लगा। जॉइंट टाइफून वार्निंग सेंटर (JTWC) ने एक अलर्ट जारी किया कि एक तूफान पैदा हो रहा है। 25 अक्टूबर आते-आते वॉर्निंग दी गई कि ये खतरनाक तरीके से आगे बढ़ रहा है। इसका रूट मलय प्रायद्वीप था। मलेशिया के रास्ते एक उष्णकटिबंधीय डिप्रेशन 05बी बंगाल की खाड़ी की ओर बढ़ने लगा। अंडमान के समुद्री हिस्से में यह धीरे-धीरे बड़े तूफान में तब्दील होने लगा। 26 अक्टूबर तक यह तेजी से पश्चिम बंगाल की खाड़ी पर मंडराने लगा और एक उष्णकटिबंधीय तूफान में बदल गया।
27 अक्टूबर 1999 तक यह तूफान, सुपर साइक्लोन में बदल गया। यह पहला चक्रवात था, जिसे ये टैग मिले। 29 अक्टूबर आते-आते ये तूफान भुवनेश्वर तक पहुंच गया था। उस वक्त इस तूफान की रफ्तार 220 से 250 किलोमीटर प्रति घंटे की हो गई थी। इसका केंद्रीय दबाव 912 एमबी तक पहुंच गया था। यह तय था कि इससे बड़ी तबाही मचने वाली है, जिसमें बचने की उम्मीद बेमानी है। इस तूफान ने 30 मील के इलाके में ऐसी तबाही मचाई, जिसकी परिकल्पना तक किसी ने कभी नहीं की होगी लेकिन यह इतनी बड़ी तबाही कैसे मचा गया, इसकी भी एक कहानी है।
किसने की गलती, किसको भुगतना पड़ा?
भारतीय मौसम विभाग (IMD) की ओर से अलर्ट जारी हुआ कि यह तूफान 28 अक्टूबर को रात में ये तूफान पारादीप होकर गुजरेगा, यहीं सबसे ज्यादा नुकसान होगा। पारादीप जगतसिंह जिले का हिस्सा है। इस अलर्ट के जारी होने के बाद, आईएमडी के क्षेत्रीय दफ्तर कोलकाता से एक अलर्ट भेजा जाता है कि जिसमें दावा किया जाता है कि यह सुपरसाइक्लोन पारादीप होकर नहीं गुजरेगा, यह सागर आइलैंड होकर गुजरेगा। सरकार को बड़ी राहत मिलती है। सरकार को लगता है कि खतरा टल गया है, ज्यादा लोगों को सुरक्षित इलाकों में पहुंचाने की जरूरत नहीं है, तूफान, सामान्य तूफान साबित होगा, जिसका ज्यादा असर नहीं होगा।
मौसम विभाग के कोलकाता केंद्र से एक बार फिर अलर्ट जारी किया जाता है कि तूफान, पारादीप से ही होकर गुजरेगी और तूफान की रफ्तार 220 से लेकर 250 तक के बीच की होगी। आधी रात को आई इस सूचना को सरकार, पूरे इलाके तक पहुंचा नहीं पाई। ओडिशा सरकार के पास अब कोई विकल्प ही नहीं बचता कि ये सूचना लोगों तक पहुंचा दी जाए। तेज हवाएं चलनी शुरू हो जाती हैं।
सामने मौत थी और लोग तड़प-तड़पकर मर गए
जब सुबह लोगों की नींद टूटती है तो वे तूफान देखते हैं। तेज हवाएं इशारा करती हैं कि अब सब उड़ा ले जाएंगी। छोटे घास-फूस के छप्पर उड़ने लगते हैं। लोग जान बचाकर भागने की कोशिश करते हैं लेकिन उनकी रफ्तार हवा की रफ्तार से तेज नहीं होती है। 250 किलोमीटर से तेज बह रही हवाएं, तेज बारिश और तूफान सब तहस नहस कर डालता है। ये कुदरती कहर करीब 4 घंटे तक जारी रहता है।
29 अक्टूबर तक कई जिलों में महातबाही मच चुकी होती है। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि इस तूफान में जान गंवाने वाले लोगों की संख्या 10000 थी। मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जाता है कि मृतकों के आंकड़े कहीं ज्यादा थे। 300000 से ज्यादा मकान ध्वस्त हो चुके थे, लाखों पेड़ टूटकर नष्ट हो चुके थे, लाखों जानवर मारे गए थे। जिन इलाकों में आबाद गांव थे, वहां की जमीन में दबी लाशें नजर आ रही थीं। बालासोर, भद्रक, केंद्रपाड़ा, जगतसिंहपुर, पुरी और जंगम जैसे इलाकों में सबसे ज्यादा तबाही मची। इस प्राकृतिक आपदा में सबसे ज्यादा मार पड़ी जगतसिंहपुर जिले में। सिर्फ इस जिले में ही आधिकारिक तौर पर 8000 से ज्यादा लोग मारे गए थे।
कुछ गांवों में सबसे ज्यादा त्रासदी मची। एरसामा में लोग ऐसे थे, जिन्होंने अपना पूरा परिवार खो दिया था। लोगों ने जान बचाने के लिए क्या-क्या नहीं किया। पेड़ों पर चढ़े, छतों पर बाढ़ से बचने के लिए गए, ऊंचे टीलों पर बैठे लेकिन तूफान ने सब खत्म कर दिया। ऐसी त्रासदी, शायद ही कभी दोबारा आई। 140 मील से ज्यादा फसलें तबाह हो गईं।
हादसे से ओडिशा ने क्या सीखा?
साल 1999 में आई विनाशकारी त्रासदी के बाद ओडिशा सरकार और केंद्र सरकार, दोनों ने सबक लिया। मौसम विभाग और सटीक भविष्यवाणियां करने लगा। जगह-जगह जिलों में केंद्र बनाए जाने लगे। मौसम विभाग सही समय पर, कई दिन पहले ही अलर्ट जारी करने लगा। तूफान आने से कई दिन पहले ही लोगों को वहां से बाहर निकालकर सुरक्षित केंद्रों पर पहुंचा दिया जाता है। साल दर साल मृतकों के आंकड़े भी घटने लगे।
अब ओडिशा में 120 से ज्यादा तटीय इलाकों में सुरक्षा केंद्र बनाए गए हैं। ओडिशा के आपदा प्रबंधन केंद्रों के पास अब समय से पहले चेतावनी जारी करने का मजबूत तंत्र है। ओडिशा के पास बेहतरीन 'अर्ली वार्निंग डिसेमिनेशन सिस्टम (EWDS)' है। लोगों को WhatsApp, मैसेज, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर पहले ही मैसेज भेजे जाते हैं। नेशनल साइक्लोन रिस्क मिटिगेशन प्रोजेक्ट के तहत कई ऐसी इमारते बनी हैं, जहां लोग शरण लेते हैं। ओडिशा में तटीय इलाकों में पक्के घर बनाए गए, जिससे तूफान का असर कम से कम हो। ओडिशा में कई स्तर की डिजास्टर मैनेजमेंट समितियां हैं।
1999 हादसे से ओडिशा में सीखा प्लान, एक नजर तूफानों पर
- साल 2013 में एक तूफान आया फाइलिन। इस आफदा में ओडिशा सरकार ने समय से 171083 लोगों को प्रभावित इलाकों से रेस्क्यू करके बाहर निकाल लिया था। 15 जिलों में तबाही मची थी। इस हादसे में करीब 45 लोगों की मौत हुई थी। हवाओं की रफ्तार 200 किलोमीटर प्रति घंटे तक थी।
- 2014 में तूफान हुदहुद आया था। 12 अक्टूबर 2024 को यह तूफान ओडिशा के तटीय इलाके में पहुंचा। 170 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हवाएं चलीं, तूफान में 21 लोगों ने जान गंवाई, जिसमें आंध्र प्रदेश के लोग भी शामिल थे।
- साल 2018 में तितली चक्रवाती तूफान ने दस्तक दी। 11 अक्टूबर 2018 को आए इस तूफान की रफ्तार 150 किलोमीटर प्रति घंटे की थी। बाढ़ और भूस्खलन की वजह से करीब 60 लोगों की मौत हो गई थी।
- 2019 में फानी ने दस्तक दी थी। यह चक्रवात भी विनाशकारी साबित हुआ था, जिसमें करीब 89 लोगों ने जान गंवाई थी।
- साल 2020 में अम्फान तूफान ने दस्तक दी थी, जिसमें करीब 2 लोगों की मौत हुई थी।
- 2021 में चक्रवाती तूफान यास आया थआ, जिसमें करीब 14 लोगों ने जान गंवाई थी।
- 2021 में ही जवाद तूफान भी आया था लेकिन इसकी वजह से मौतें नहीं हुईं।
- साल 2022 में चक्रवाती तूफान आसानी आया था, जिसकी वजह से मौतें नहीं हुईं।
राज्य और केंद्र सरकार की संयुक्त कोशिशों के चलते ओडिशा में फिर वैसी तबाही कभी नहीं आई। लोगों को समय रहते बचा लिया गया। वजह सही समय पर लोगों को आपदा प्रभावित जगहों से बाहर निकाल लेना रहा। प्राकृतिक हादसों को टाला नहीं जा सकता लेकिन हादसों के सटीक अनुमान और सही प्लानिंग से ऐसे हादसों से बचा जा सकता है।
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