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पहलगाम हमला: अमेरिका की 4 साल पुरानी चूक कैसे बनी आतंकियों की ताकत

पहलगाम हमले में आतंकवादी एके-47 और अमेरिका निर्मित एम4 कार्बाइन राइफलों से लैस थे। आखिर कहां से आतंकवादियों को मिले M4 राइफल और राइफलें बंदूकधारियों के पास कैसे पहुंचीं?

Use of M4 rifles in past J&K terror attacks

पहलगाम आतंकी हमले, Photo Credit: PTI

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम के बैसरन घाटी में हुए हमले में 6 आतंकियों में 20 से 25 मिनट तक गोलीबारी की, जिसमें 26 लोग मारे गए जिसमें दो विदेशी नागरिक भी शामिल थे। शुरुआती जांच में पता चला की दो आतंकियों के पास M4 कार्बाइन राइफलें थीं जबकि अन्य के पास AK-47 थीं।  M4 कर्बाइन एक हल्की, गैस-संचालित, मैगजीन-फेड असॉल्ट राइफल है। इसकी रेंज 500 से 600 मीटर और अधिकतम रेंज 3600 मीटर है। यह प्रति मिनट 700 से 970 राउंड स्टील बुलेट्स दाग सकती है, जो बुलेटप्रूफ वाहनों को भेदने में सक्षम हैं। नाइट विजन और सटीक निशाना इसकी खासियत हैं। अब सवाल है कि M4 राइफलें आतंकियों तक पहुंची कैसे? M4 राइफलें अमेरिकी सेना और नाटो बलों के लिए डिजाइन की गई थीं जो अब आतंकियों तक कई रास्तों से पहुंच रही है। कैसे समझिए...

 

अफगानिस्तान से तालिबान कनेक्शन

अगस्त 2021 में अमेरिकी सेना ने अफगानिस्तान से वापसी के दौरान लगभग 7 अरब डॉलर मूल्य के सैन्य उपकरण, जिसमें 300,000 छोटे हथियार और हजारों M4 राइफलें शामिल थीं, छोड़ दिए। तालिबान ने इन हथियारों पर कब्जा कर लिया था। तालिबान ने इन M4 राइफलों को काला बाजार में बेचना शुरू किया। माना जाता है कि पाकिस्तानी आतंकी समूह ने पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI की मदद से ये हथियार खरीदे।

 

पहलगाम हमले में इस्तेमाल हुई राइफलें इसी रास्ते से आईं। अमेरिकी और नाटों बलों को कराची से खैबर पख्तूनख्वा के रास्ते अफगानिस्तान तक हथियारों की आपूर्ति की जाती थी। इस दौरान सशस्त्र समूहों ने ट्रकों पर हमला कर हथियार लूटे। कुछ मामलों में , पाकिस्तानी सेना और ISI ने इन हमलों का फायदा उठाकर हथियार छिपाए और बाद में आतंकी समूहों को बेचे। 

 

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पाकिस्तान की भूमिका 

नेशनल इंटेलिजेंस एजेंसी (NIA) की जांच में पाकिस्तान के शामिल होने के सबूत मिल हैं। पहलगाम हमले में लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े द रेसिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने जिम्मेदारी ली, जिसे ISI का समर्थन प्राप्त है। M4 राइफलें पाकिस्तान के ज़रिए कश्मीर में आतंकियों तक पहुंचाई गईं। पाकिस्तान ने एक तरफ अफगानिस्तान में तालिबान द्वारा M4 राइफलों के दुरुपयोग की शिकायत की लेकिन दूसरी तरफ ISI इन हथियारों को कश्मीर में आतंकियों तक पहुंचाने में शामिल रही। किश्तवा़ड़ और अन्य हमलों में भी M4 राइफलें बरामद हुईं, जो पाकिस्तान की संलिप्तता को दर्शाता है। पाकिस्तान ने ड्रोन के जरिए हथियार भेजने की कोशिश की। ये हथियार जैश और लश्कर के आतंकियों के लिए थे। 

 

इंटरनेशनल काला बाजार

इराक युद्ध और सीरीया गृह युद्ध के दौरान हजारों M4 राइफलें ISIS और अल-कायदा जैसे संगठनों ने अमेरिकी और इराकी डिपो से लूटीं। ये हथियार काला बाजार के जरिए दक्षिण एशिया तक पहुंचे। यमन में हूती विद्रोहियों, अफ्रीका में अल-शबाब और बोको हराम जैसे समूह भी M4 राइफलें इस्तेमाल करते हैं। वैश्विक हथियार तस्करी नेटवर्क ने इन राइफलों को पाकिस्तान और कश्मीर तक पहुंचाया। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में आतंकी समूहों के पास 10 हजार से अधिक M4 राइफलें होने का अनुमान है जो काला बाजार और लूट के जरिए हासिल हुईं। जम्मू-कश्मीर में M4 राइफल पहली बार 2017 में पुलवामा में जैश-ए-मोहम्मद के कमांडर ताल्हा रशीद मसूद के पास से बरामद हुई थी।

 

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M4 राइफलें बरामद 

8 जुलाई, 2024 कठुआ, 9 जून, 2024 को रियासी , पुंछ, राजौरी, और गांदरबल (2024) जैसे आतंकी हमलों में भी M4 राइफलें बरामद हुईं। इन मामलों ने सुरक्षा बलों को इस हथियार की बढ़ती मौजूदगी पर ध्यान देने के लिए मजबूर किया। पहलगाम हमले में M4 राइफलों का इस्तेमाल आतंकियों की उन्नत तैयारी और हथियारों तक उनकी पहुंच को दर्शाता है। 

 

M4 राइफलें इराक, सीरीया और अफगानिस्तान जैसे संघर्ष क्षेत्रों से लूटकर वैश्विक काला बाजार तक पहुंची। अमेरिका द्वारा अफगानिस्तान में हथियार छोड़ना और उनकी निगरानी में कमी इस समस्या की जड़ है। एनआईए इस बात की जांच कर रही है कि M4 राइफलें कैसे कश्मीर पहुंचीं और स्थानीय सहयोगियों की क्या भूमिका थी। जांच में पाकिस्तान और तालिबान कनेक्शन पर ध्यान दिया जा रहा है।

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