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नारायण गुरु को सनातन धर्म से अलग क्यों बता रहे पिनरई विजयन? समझिए

केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने कहा कि नारायण गुरु ने एक ऐसे धर्म का समर्थन किया जो जाति व्यवस्था का विरोध करता था।

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केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन Source- PTI

केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने मंगलवार को बीजेपी पर हमला करते हुए कहा कि संत-समाज सुधारक नारायण गुरु को सनातन धर्म का समर्थक दिखाने की कोशिश हो रही है। उन्होंने कहा कि नारायण गुरु न तो सनातन धर्म की वकालत करते थे और न ही उसके समर्थक थे। बल्कि वह एक महान ऋषि थे जिन्होंने इससे पार पाया, उन्होंने सनातन की रुढ़ियों को खत्म किया और आधुनिक समय के लिए एक नए युग और धर्म का रास्ता दिखाया।

मुख्यमंत्री ने कहा, 'सनातन धर्म से क्या मतलब है? यह वर्णाश्रम धर्म के अलावा और कुछ नहीं है। नारायण गुरु के नए युग के मानवतावादी धर्म ने इस वर्णाश्रम व्यवस्था को चुनौती दी और समकालीन जरूरतों के मुताबिक खुद को ढाल लिया। यह धर्म किसी भी धर्म की सीमाओं से परिभाषित नहीं था। क्या तब तक किसी भी धर्म ने यह घोषणा की थी कि किसी व्यक्ति के लिए बस अच्छा होना ही काफी है, चाहे उसकी आस्था कुछ भी हो? नहीं। क्या किसी धर्म ने यह कहा था कि सभी धर्मों का सार एक ही है?' 

सनातन धर्म पर हमला

विजयन ने आगे कहा, 'जो बात स्पष्ट हो जाती है, वह यह है कि नारायण गुरु ने मानवता के एक सार्वभौमिक दृष्टिकोण को जारी रखा जो धार्मिक सीमाओं से परे था और मानवता के सार को अपनाता था। इस तरह के दृष्टिकोण को सनातन सिद्धांतों के दायरे में सीमित करना गुरु की विरासत का घोर अपमान होगा।'

 

सनातन वंशानुगत व्यवसायों का महिमामंडन करता है

वहीं, सीएम विजयन ने शिवगिरी माधोम में 92वें सिवागिरि तीर्थस्थल के उद्धाटन के मौके पर कहा, 'सनातन धर्म वर्णाश्रम धर्म का पर्याय है या उससे अविभाज्य है, जो चतुर्वर्ण व्यवस्था पर आधारित है। यह वर्णाश्रम धर्म किस बात का समर्थन करता है? यह वंशानुगत व्यवसायों का महिमामंडन करता है।' लेकिन नारायण गुरु ने वंशानुगत व्यवसायों को चुनौती दी। फिर गुरु सनातन धर्म के समर्थक कैसे हो सकते हैं?'

विजयन ने समाज सुधार का संदेश दिया

सिवागिरि तीर्थस्थल के उद्धाटन के मौके पर मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने समाज सुधार का संदेश दिया। उन्होंने सिवगिरि माधोम में द्वारा भक्तों से मंदिरों में प्रवेश करते समय शर्ट उतारने की प्रथा को खत्म करने की अपील को आधुनिक और प्रगतिशील मूल्यों के मुताबिक बताया। उन्होंने कहा, 'नारायण गुरु का तपस्वी जीवन चतुर्वर्ण व्यवस्था पर लगातार सवाल उठाने और उसकी अवहेलना करने वाला था। कोई व्यक्ति जो 'एक जाति, एक धर्म, मानव जाति के लिए एक ईश्वर' की घोषणा करता है, वह सनातन धर्म का समर्थक कैसे हो सकता है, जो एक ही धर्म के दायरे में निहित है?'

 

विजयन ने कहा कि नारायण गुरु ने एक ऐसे धर्म का समर्थन किया जो जाति व्यवस्था का विरोध करता था। भारत में, तीन धाराएं ऐतिहासिक रूप से सनातन धर्म से जुड़ी रही हैं - इसका पालन करना, संदेह के साथ इस पर सवाल उठाना, या इसे चुनौती देना और इसका विरोध करना। गुरु तीसरी धारा का प्रतिनिधित्व करते हैं। महाभारत, उस संक्रमण काल ​​की सांस्कृतिक उपज है, जब जनजातीय व्यवस्थाओं की जगह जाति व्यवस्था ने ले लिया। महाभारत खुद इस बात का जवाब देने से बचता है कि धर्म क्या है?'

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