राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शनिवार को गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र को संबोधित किया। राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कहा कि देश का संविधान भारतीयों के रूप में हमारी सामूहिक पहचान को आधार देता है। संविधान हमें एक परिवार के रूप में एक साथ बांधता है।
राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व हमेशा से भारत की सभ्यता के विरासत का हिस्सा रहे हैं। उन्होंने कहा, 'पिछले 75 वर्षों में संविधान ने हमारी प्रगति का मार्ग प्रशस्त किया है। आज हम संविधान के प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ. भीमराव अंबेडकर और अन्य सदस्यों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं, जिनके प्रयासों से हमें संविधान मिला है। संविधान के लागू होने के बाद के ये 75 वर्ष हमारे युवा गणतंत्र की सर्वांगीण प्रगति के साथी हैं।'
मुर्मू का राष्ट्र के नाम तीसरा संबोधन
राष्ट्रपति मुर्मू का गणतंत्र दिवस के अवसर पर राष्ट्र के नाम यह तीसरा संबोधन है। उन्होंने कहा, 'सरकार ने खुशहाली की अवधारणा को फिर से परिभाषित किया है। सरकार ने बुनियादी जरूरतों को अधिकार का विषय बना दिया है। इस तरह के बड़े पैमाने पर सुधारों के लिए दूरदर्शिता की जरूरत होती है।'
'एक राष्ट्र, एक चुनाव' विधेयक की सराहना
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने संबोधन में एक राष्ट्र, एक चुनाव' विधेयक की तारीफ की। उन्होंने कहा कि देश में चुनाव कार्यक्रमों को एक साथ करने के लिए संसद में पेश किया गए विधेयक ने देश में सुशासन की शर्तों को फिर से परिभाषित करने का रास्ता दिखाया है।
राष्ट्रपति ने कहा कि एक राष्ट्र एक चुनाव योजना गवर्नेंस में स्थिरता को बढ़ावा दे सकती है। यह नीतिगत भेदभाव को रोक सकता है, संसाधनों को बर्बाद होने से रोक सकता है और वित्तीय बोझ को कम कर सकता है। इसके साथ ही यह विधेयक देश को कई अन्य फायदे दे सकता है।
आपराधिक कानूनों की भी तारीफ
उन्होंने कहा कि पिछले दशक में शिक्षा की गुणवत्ता, बुनियादी ढांचे और डिजिटल इंक्लूजन के मामले में बदलाव आया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने देश में लागू किए गए नए आपराधिक कानूनों की भी तारीफ की। उन्होंने कहा कि हमें 1947 में आजादी मिली, लेकिन औपनिवेशिक मानसिकता के कई अवशेष हमारे बीच लंबे समय तक बने रहे। हाल ही में हम उस मानसिकता को बदलने के लिए ठोस प्रयास देख रहे हैं।