logo

ट्रेंडिंग:

किसानों का पंजाब बंद.. क्या नॉर्थ से अलग है साउथ के किसानों की समस्या?

अपनी मांगों को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों ने सोमवार को पंजाब बंद बुलाया है। पंजाब के किसान लंबे वक्त से अपनी मांग को लेकर पंजाब-हरियाणा बॉर्डर पर डटे हैं। ऐसे में जानते हैं कि क्या नॉर्थ और साउथ के किसानों की समस्या अलग-अलग हैं?

farmers punjab bandh

पंजाब बंद के दौरान प्रदर्शन करते किसान। (फोटो-PTI)

पंजाब में किसानों का बड़ा प्रदर्शन हो रहा है। किसानों ने सोमवार को बंद का ऐलान किया है। इसका असर भी देखने को मिल रहा है। किसानों के बंद के ऐलान का सबसे बड़ा असर ट्रेनों पर दिख रही है। बताया जा रहा है कि इस कारण 220 से ज्यादा ट्रेनें या तो कैंसिल हो गई हैं या फिर उनका रूट बदलना पड़ा है।


संयुक्त किसान मोर्चा और किसान मजदूर मोर्चा ने ये बंद बुलाया है। अपनी मांगों को लेकर किसानों का पंजाब बंद सुबह 7 बजे से शाम 4 बजे तक रहेगा। हालांकि, बंद के दौरान आपातकालीन सेवाएं जारी हैं।

किसानों की मांगें क्या?

किसान लंबे वक्त से MSP पर लीगल गारंटी की मांग कर रहे हैं। 2020-21 में जब तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों ने प्रदर्शन किया था, तब भी उनकी यही मांग थी। संयुक्त किसान मोर्चा और किसान मजदूर मोर्चा के बैनर तले किसान 13 फरवरी से पंजाब-हरियाणा के बीच शंभू और खनौरी बॉर्डर पर डेरा जमाए हुए हैं।


101 किसानों के जत्थे ने 6 से 14 दिसंबर के बीच तीन बार दिल्ली कूच करने की कोशिश की थी, लेकिन हरियाणा पुलिस ने उन्हें बॉर्डर पर ही रोक दिया था। 


MSP की लीगल गारंटी, कर्ज माफी समेत कई मांगों को लेकर किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल 35 दिन से भूख हड़ताल पर बैठे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार को डल्लेवाल को अस्पताल में भर्ती कराने के लिए मनाने के लिए 31 दिसंबर तक का समय दिया है। हालांकि, डल्लेवाल का कहना है कि जब तक मांगें नहीं मानी जाएंगी, तब तक वो अपना अनशन खत्म नहीं करेंगे।

पंजाब-हरियाणा में होता है विरोध?

MSP पर लीगल गारंटी को लेकर सबसे ज्यादा विरोध पंजाब-हरियाणा जैसे उत्तर भारतीय राज्यों में ही देखने को मिलता है। उसकी वजह भी है, क्योंकि MSP पर गेहूं और धान की सबसे ज्यादा खरीद पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में ही होती है।


आंकड़ों के मुताबिक, खरीफ सीजन 2022-23 में सरकार ने कुल 846.45 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद MSP पर की थी। सरकार ने इस पर 1.74 लाख करोड़ रुपये खर्च किए थे। सरकार ने सबसे ज्यादा धान पंजाब के किसानों से खरीदा था। पंजाब के 9 लाख से ज्यादा किसानों से 182.11 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा था और इसके लिए 37,514 करोड़ रुपये दिए थे। वहीं, हरियाणा के 2.82 लाख किसानों से 59.36 लाख मीट्रिक टन और यूपी के 9.40 लाख किसानों से 65.50 लाख मीट्रिक टन धान की खरीद की थी।


वहीं, रबी सीजन 2022-23 में सरकार ने 262 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद MSP पर की थी, जिसमें से 70 फीसदी से ज्यादा खरीद पंजाब, हरियाणा और यूपी के किसानों से हुई थी। पंजाब के करीब 8 लाख किसानों से 121.17 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदा था। इसके लिए 25,748 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। हरियाणा के सवा 3 लाख किसानों से 63.17 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद हुई थी और इस पर सरकार ने 13,424 करोड़ रुपये खर्च किए थे। जबकि, उत्तर प्रदेश के 81 हजार से ज्यादा किसानों से 2.20 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदा गया था। इस पर सरकार ने 468 करोड़ रुपये का खर्चा किया था।


इसके उलट, दक्षिण के 5 राज्यों- आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु के किसानों से 214.34 लाख मीट्रिक टन धान खरीदा था। जो कुल धान की खरीद का 25 फीसदी है। वहीं, दक्षिण के किसी भी राज्य से सरकार MSP पर गेहूं की खरीद नहीं करती है।

दक्षिण के राज्यों में नहीं आते आंदोलन?

ऐसा कहा जाता है कि दक्षिण भारत के किसान आंदोलन नहीं करते हैं। एक बार सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने हलफनामा कर दावा किया था कि किसान आंदोलन में दक्षिण के किसान शामिल नहीं हैं। हालांकि, ऐसी कई खबरें आई थीं, जिनमें सामने आया था कि इस आंदोलन में दक्षिण के किसान भी शामिल हैं।


इस साल फरवरी में जब किसानों ने दिल्ली कूच का ऐलान किया था, तो इसमें शामिल होने के लिए दक्षिण के किसान भी पहुंच रहे थे। हालांकि, किसानों को रास्ते में ही रोक दिया गया था। संयुक्त किसान मोर्चा ने दावा किया था कि कर्नाटक के 100 से ज्यादा किसानों को भोपाल स्टेशन पर रोक दिया गया। इसी तरह तमिलनाडु के भी सैकड़ों किसानों को थंजावुर रेलवे स्टेशन पर ही हिरासत में ले लिया गया था।


हालांकि, MSP पर लीगल गारंटी को लेकर दक्षिण के किसान बहुत ज्यादा उत्साहित नहीं दिखाई पड़ते। उसकी वजह ये है उत्तर की तुलना में दक्षिण में फसलों का पैटर्न अलग है। दक्षिण के राज्यों में गन्ना, धान, कॉफी, सुपारी, दालें, काली मिर्च और इलायची जैसी फसलों की खेती ज्यादा होती है। इसमें धान को छोड़ दिया जाए तो बाकी फसलें ऐसी हैं जिनपर MSP का कोई फर्क नहीं पड़ता।


इतना ही नहीं, दक्षिण के राज्यों में ज्यादातर किसान अपनी फसल सरकारी मंडियों में बेच देते हैं। यहां उन्हें MSP से ज्यादा दाम मिल जाता है। इसके अलावा कॉफी बोर्ड और राज्य सरकारें भी MSP से ज्यादा कीमत पर किसानों से फसल खरीदती हैं। इसके अलावा, अगर सूखा या बाढ़ की स्थिति बनती है और फसलों को नुकसान पहुंचता है तो यहां की राज्य सरकारें किसानों के लिए मुआवजे की व्यवस्था भी करती हैं। उनके कर्ज भी माफ कर दिए जाते हैं। कर्नाटक सरकार ने 2024-25 के बजट में 'रायथा समृद्धि' योजना शुरू की थी। इसके तहत 57 हजार किसानों के कर्ज पर ब्याज को माफ किया गया।

शेयर करें

संबंधित खबरें

Reporter

और पढ़ें

design

हमारे बारे में

श्रेणियाँ

Copyright ©️ TIF MULTIMEDIA PRIVATE LIMITED | All Rights Reserved | Developed By TIF Technologies

CONTACT US | PRIVACY POLICY | TERMS OF USE | Sitemap