क्या छठ करने लायक है यमुना का पानी? क्वालिटी पता चली तो होश उड़ जाएंगे
दिल्ली में यमुना में छठ मनाने पर रोक के बावजूद अक्सर लोग कालिंदी कुंज जैसे घाटों पर नदी में स्नान करते दिख जाते हैं लेकिन क्या आपको इस पानी की क्वालिटी पता है?

यमुना नदी में छठ पूजा करती एक महिला, Image Credit: PTI
वैसे तो दिल्ली डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (DDMA) ने 29 अक्टूबर 2021 से ही दिल्ली के अंदर यमुना में छठ पूजा करने पर पाबंदी लगा रखी है। इसके बावजूद मंगलवार सुबह दिल्ली में तमाम महिलाओं ने नहाय-खाय के साथ छठ पूजा की शुरुआत की। यह वही यमुना नदी है जिसमें दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल ने डुबकी लगाने का वादा किया था। यह वही यमुना है जिसमें भारतीय जनता पार्टी (BJP) के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा ने डुबकी लगाई तो बीमार पड़ गए। तमाम दावे एक तरफ और प्रदूषित यमुना में डुबकी लगाने को मजबूर जनता एक तरफ। आने वाले एक-दो दिनों में वे तस्वीरें सोशल मीडिया पर छा जाने वाली हैं जिनमें छठ करने वाली महिलाएं झाग के बीच यमुना में डुबकी लगाती दिखेंगी। जो नहीं दिखेगा वह है यमुना के पानी का जहरीलापन जो इतना ज्यादा है कि इंसानों के साथ-साथ जानवरों तक के लिए हानिकारक है।
हाल ही में दिल्ली की सीएम आतिशी ने कहा है कि दिल्ली सरकार 1000 आर्टिफिशियल छठ घाट तैयार करवा रही है ताकि महिलाओं को अपने घर से ज्यादा दूर न जाना पड़े। हर साल सरकार की तरफ से तरह के प्रयास होते रहे हैं लेकिन यमुना के घाटों पर उमड़ने वाली भीड़ भी एक अलग और कड़वा सच है। यह चिंताजनक इसलिए है कि यमुना का जल नहाने लायक भी नहीं बचा है। जब से यमुना में झाग दिखने लगी है तब से इसे खत्म करने के तमाम प्रयास किए गए हैं। हालांकि, वे प्रयास ऐसे हैं जिनसे सिर्फ झाग का दिखना खत्म किया जा सकता है, यमुना का प्रदूषण खत्म नहीं हो सकता।
यमुना में झाग के सवाल पर दिल्ली सरकार के मंत्री गोपाल राय इसका ठीकरा उत्तर प्रदेश पर फोड़ देते हैं। वह कहते हैं, 'झाग केवल कालिंदी कुंज में ही क्यों बनता है? उत्तर प्रदेश की ओर से यमुना में प्रदूषित पानी छोड़ा जा रहा है। दिल्ली सरकार हालात से निपटने के लिए काम कर रही है।' हालांकि, आंकड़े बताते हैं कि यमुना जब दिल्ली में घुसती है तो उसमें प्रदूषण का स्तर जितना होता है, दिल्ली के दूसरे बॉर्डर तक पहुंचते-पहुंचते प्रदूषण का स्तर कई गुना बढ़ ज्यादा है। प्रदूषित करने वाले कारकों में ऐसी चीजें शामिल हैं जो इस पानी को नहाने या पीने लायक नहीं छोड़ती हैं।
कितना जहरीला है यमुना का पानी?
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमेटी (DPCC) के आंकड़े बता रहे हैं कि यमुना में प्रदूषण का स्तर पल्ला से ओखला बैराज के बीच कई गुना बढ़ जाता है। प्रदूषण का यह स्तर इतना ज्यादा होता है कि यह पानी इंसानों, जानवरों और यहां तक कि पानी में पाई जाने वाली वनस्पतियों के लिए भी ठीक नहीं होता। पानी में प्रदूषण का स्तर मापने के लिए DPCC कुल 4 पांच मानक देखता है। इन पांच मानकों में से ज्यादातर पर यमुना का पानी खरा नहीं उतरता है।
पानी का pH बताता है कि वह अम्लीय है या क्षारीय है। COD का मतलब है केमिकल ऑक्सीजन डिमांड, BOD का मतलब है बायो केमिकल ऑक्सीजन डिमांड। DO का मतलब है डिजॉल्व ऑक्सीजन और पाँचवाँ पैमाना फीकल कॉलीफॉर्म है। इनमें से ज्यादातर पैमानों के लिए जो मानक हैं, उन पर यमुना तब ही खरी नहीं उतरती जब वह दिल्ली में प्रवेश करती है। पल्ला में यमुना के प्रवेश करने के बाद वजीराबाद बराज के पास भी यमुना में पक्का घाट बना है। इसके बाद यमुना के लगभग सभी पुलों के पास कच्चे या पक्के घाट बने हुए हैं और रोक के बावजूद छठ के मौके पर यहां श्रद्धालु इस 'पवित्र' जल में डुबकी लगाते देखे जाते हैं।
कितना हुआ है सुधार?
यमुना के प्रदूषण के स्तर को कम करने के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण के आदेश पर एक हाई लेवल कमेटी बनाई गई है। इस कमेटी की 10वीं और आखिरी मीटिंग 23 जुलाई 2024 को हुई थी। इस मीटिंग में जो आंकड़े रखे गए वे बताते हैं कि अभी भी यमुना को साफ कर पाने का ख्वाब बहुत दूर है। इन आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली में जुलाई तक 964.5 MGD गंदे पानी को साफ करने की क्षमता विकसित करने का लक्ष्य था लेकिन यह 712 MGD तक ही पहुंच पाया। वह भी तब जब दिल्ली के घरों से निकलने वाले दूषित पानी की मात्रा एक हजार MGD के आसपास तक पहुंच गई है। 712 MGD की क्षमता के बावजूद सिर्फ 607.1 MGD गंदे पानी को ही साफ किया जा रहा है और बाकी का गंदा पानी नालों के जरिए सीधे यमुना नदी में ही जा रहा है।
लक्ष्य रखा गया था कि नजफगढ़ और सप्लीमेंट्री ड्रेन में गिरने वाले 74 नालों को जुलाई 2024 तक टैप कर लिया जाएगा लेकिन इस मीटिंग तक सिर्फ 50 नालों को ही टैप किया जा सका था। 1437 में 1168 अनअथरॉइज्ड कॉलोनी ही ऐसी हैं जिनमें इस मीटिंग तक सीवर लाइन बिछाई जा सकी थी। इन आंकड़ों के मुताबिक, दिल्ली का 23.55 पर्सेंट गंदा पानी यानी 184.9 MGD गंदा पानी सीधे यमुना नदी में जाता है। ये आंकड़े दर्शाते हैं तमाम दावे कर रही सरकार NGT के आदेशों के हिसाब से तय डेडलाइन के हिसाब से भी काम नहीं कर पा रही है और यमुना का हाल जस का तस बना हुआ है।

आंकड़ों से समझिए खतरा
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से तय मानकों के मुताबिक, जिस पानी का BOD 3 मिलीग्राम/लीटर या उससे कम हो उसी में नहाया जा सकता है। इसी तरह से DO 5 मिलीग्राम/लीटर या उससे ज्यादा होनी चाहिए। फीकल कॉलीफॉर्म का स्तर 500 होना चाहिए और यह अधिकतम 2500 तक हो सकता है। 1 अक्टूबर 2024 को DPCC की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक, यमुना में प्रदूषण का स्तर मानक से बेहद ज्यादा था।
जो BOD 3 होना चाहिए वह पल्ला में 3 था तो वजीराबाद तक वह 5 पहुंच गया। ISBT ब्रिज पर 11, आईटीओ ब्रिज पर 23, निजामुद्दीन पर 21, ओखला बैराज पर 25 और आगरा कैनाल (ओखला बैराज) पर 27 था। यानी मानक से 9 गुना ज्यादा खतरनाक स्तर पर BOD। ये आंकड़े बताते हैं कि पानी में प्रदूषण की मात्रा कितनी ज्यादा है।
डिजॉल्व ऑक्सीजन की मात्रा बताती कि पानी कितना बेहतर है। मानक है कि यह 5 मिलीग्राम प्रति लीटर या उससे ज्यादा होना चाहिए। 1 अक्टूबर के आंकड़ों के मुताबिक, पल्ला में DO 8 था और वहीं से इसके घटने का क्रम शुरू हो जाता है। वजीराबाद में 7.6, आईएसबीटी ब्रिज पर 6.4 और आईटीओ ब्रिज पर 4.1 पहुंच गया। यानी आईटीओ आते-आते ही DO की मात्रा मानक से नीचे आ गई। ये आंकड़े तो सितंबर महीने के हैं जिन्हें अक्टूबर में जारी किया गया था। अक्टूबर महीने के आखिर में जारी किए गए आंकड़े और भयावह तस्वीर पेश करते हैं।
हर दिन और बुरे हो रहे हालात
DPCC की ओर से 28 अक्टूबर को जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक, पल्ला में ही यमुना के पानी में BOD 4 था जबकि इसे 3 या इससे कम होना चाहिए। यानी यहीं पर पानी प्रदूषित था। 28 अक्टूबर को जो आंकड़े जारी किए गए हैं उनके लिए सैंपलिंग 8 अक्टूबर को की गई थी। तब वजीराबाद में BOD 9 था तो ISBT ब्रिज पहुंचते ही इसकी मात्रा 35 पहुंच गई। हालांकि, आगे चलकर इसमें थोड़ी कमी आती है लेकिन यह कमी नाकाफी है। आईटीओ ब्रिज पर BOD 24, निजामुद्दीन पर 31 और ओखला बैराज पर 29 था। वहीं, यमुना नदी में शाहदरा ड्रेन और तुगलकाबाद ड्रेन मिल जाने के बाद BOD 44 तक पहुंच जाता है जो कि तय मानक से 14 गुना ज्यादा खराब है।
डिजॉल्व ऑक्सीजन की बात करें तो 28 अक्टूबर के आंकड़ों के मुताबिक, पल्ला में यह 7.1 था तो वजीराबाद में 4.2 ही दर्ज किया गया। यानी पल्ला में तो DO ठीक था लेकिन आगे बढ़ते ही यह भी कम होने लगा। ओखला बैराज पहुंचते-पहुंचते पानी में डिजॉल्व ऑक्सीजन की मात्रा सिर्फ 1.1 रह जाती है जबकि मानक 5 या उससे ज्यादा का है। असगरपुर में यह शून्य हो जाता है।
कितना खतरनाक है फीकल कॉलीफॉर्म?
यमुना के पानी में मिलने वाले प्रदूषकों में सबसे बड़ा हिस्सा फीकल कॉलीफॉर्म का है। यह मुख्य रूप से मानव मल में पाया जाता है। तय मानकों के मुताबिक, इसकी मात्रा 500 MPN प्रति 100 मिलीलीटर होनी चाहिए। इसका अधिकतम स्तर 2500 तक स्वीकार्य है। 28 अक्टूबर के आंकड़ों के मुताबिक, पल्ला में यमुना नदी के पानी में इसका स्तर 920 पर था। यानी 500 के लगभग दो गुने के बराबर। वजीराबाद में यह 1600 पहुंचता है तो ISBT ब्रिज पहुंचते पहुंचते इसकी मात्रा 28000 हो जाती है। दिल्ली के नालों की कृपा ऐसी है कि आगरा ओखला ब्रिज पहुंचने पर पानी में फीकल कॉलीफॉर्म की मात्रा 22,00,000 पहुंच जाती है जो तय मानक से सैकड़ों-हजारों गुना ज्यादा है।
यमुना के पानी में BOD, DO और फीकल कॉलीफॉर्म के आंकड़े यह साफ बता रहे हैं कि पीना तो दूर की बात है, यह पानी नहाने या छूने के लायक भी नहीं है। शायद यही वजह है कि दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा जब पानी में डुबकी लगाने उतरे तो उसके तुरंत बाद उन्हें अस्पताल ले जाना पड़ा था।
कैसे बचेगी यमुना की जान?
अब अगर यमुना को इस लायक बनाना है तो यह जरूरी है कि उन योजनाओं को जमीन पर उतारा जाए जिन्हें यमुना एक्शन प्लान का नाम दिया जाता है। सबसे पहले दिल्ली के उन नालों को तुरंत रोकने की जरूरत है जो सीधे या दूसरे नालों में गिरकर यमुना तक पहुंचते हैं। इसके लिए वाटर ट्रीटमेंट प्लांट और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट को अपग्रेड करने की जरूरत है ताकि वे अपनी पूरी क्षमता के साथ काम कर सकें।
दिल्ली की बढ़ती जनसंख्या के साथ सरकार और आम लोगों को भी यह सोचना होगा कि अपनी ओर से गंदा पानी नदी में न फेंके। साथ ही, अवैध डाइंग इंडस्ट्री, प्रदूषण मानकों का पालन न करने वाले उद्योगों और नदी में केमिकल छोड़ने वाली फैक्ट्रियों पर तत्काल नकेल कसने की भी जरूरत है, वरना एक दिन ऐसा भी आ सकता है जब यमुनोत्री से निकलने वाली यमुना नदी दिल्ली के बाहर सिर्फ नाला बनकर रह जाएगी।
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